शिव से प्रेम करना किसी व्यक्ति या देवता से नहीं, बल्कि स्वयं से प्रेम करना है।
वे कोई बाहर खड़े देवता नहीं, बल्कि भीतर जलती हुई चेतना की ज्योति हैं।
उनसे जुड़ना, अपने भीतर के शून्य से मिल जाना है।
जहाँ अहंकार पिघलकर समर्पण बन जाता है,
जहाँ समय रुककर अनंत में विलीन हो जाता है।
शिव