"निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
गुणाति तत्त्वं हितमिछुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु निर्गद्यते ।"
अर्थात - "जो दूसरों को प्रमाद (गलत कार्य) से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप मार्ग पर चलते हैं, हित/कल्याण चाहने वालों को तत्त्वबोध कराते हैं, उन्हें गुरु कहते
"वयसनेष्वेव सर्वेषु यस्य बुद्धिर्न हीयते ।
स तेषां पारमभ्येति तत्प्रभावादसंशयम् ॥"
अर्थात - "विपत्तियों में अपंग न होने वाली बुद्धि ही उसे उन विपदाओं से निकलने में सहायता करती है ।"
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"सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते घनान्धकारेष्विव दीपदर्शनम् ।"
अर्थात - "दुःख अनुभव करने के बाद सुख का मान अधिक होता है, जैसे घने अन्धेरे में एक दीपक से सब कुछ प्रदीप्त हो जाता है ।"
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सवाल जवाब सीरीज 10
सवाल -मेरे पिताजी ने 1998 में 2 मुरब्बा जमीन बीकानेर में खरीदी थी।अब वो उसको हम तीन भाइयों में से सिर्फ मझले भाई को गिफ्ट रजिस्ट्री करवा रहे हैं।क्या मैं और छोटे वाला भाई उसमें हिस्सा कानूनन मांग सकते हैं, हमारा भी तो उसमें हक बनता है,इसका क्या समाधान है?
#मृतकों के #आधार का दुरुपयोग रोकने के ज़रूरी है कि उन्हें शीघ्र #निष्क्रिय किया जाए। #UIDIA को सूचना देने की जिम्मेदारी परिवार की है।
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"कर्मणा वर्धते धर्मो यथा धर्मस्तथैव सः ।।"
अर्थात - "कर्म से भी धर्म बड़ा होता है अतः आप जैसा धर्म अपनाते हैं, आप भी वैसे ही हो जाते हैं ।"
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