ज़मीं काफ़ी न थी और आसमाँ कम-कम बहुत ही कम
मिरी वुसअत को थे दोनों जहाँ कम-कम बहुत ही कम
मिरे तो रोज़-ओ-शब होते रहे हैं ख़र्च औरों पर
मिरे काम आए मेरे जिस्म-ओ-जाँ कम-कम बहुत ही कम
मुहब्बत नाम है जिसका इक ऐसी आग है जिसमें
जलन भरपूर होती है धुआँ कम-कम बहुत ही कम
- राजेश रेड्डी