@pratishthainc
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calendar_today13-12-2015 14:49:34
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a year ago
“सच मानो प्रिय इन आघातों से टूट- टूट कर रोने में कुछ शर्म नहीं , कितने कमरों में बंद हिमालय रोते है। मेजों से लग कर सो जाते कितने पठार, कितने सूरज गल रहे है अंधेरो में छिपकर *हर आंसू कायरता की खीझ नहीं होता*।” - Vijay Dev Narayan Sahi #Gaza