हम हमारे मूल जड़ से जुड़े रहे
रहे छायादार पेड़ बन खड़े रहे।
जो निकले गिरे अंधकूप में
टटोले राह डूबे या डूबाते मरे।
उदय की लालिमा से आगे बढ़े
दिन मेरा,तुम अस्त में पले बड़े
हमको दशो दिशा का ज्ञान
तुम तुम किस राह में भटके पड़े।
जान लो आगे भी दिन हमारा
कोई मिटाने की न कोशिश करे।
धार पानी का,मोड़ना पड़ेगा
खड़ा पहाड़ किया तोड़ना पड़ेगा।
कि,करते रहो हमें लहूलहुआन
तुम्हें सिंधु जलपान कराते मरें।
चलो ले के देखते परीक्षा तेरी
कि,हम ही इंतहान देते मरें।
एक संतति एक संतान मान हम चुप
कि,तुम मानो एक म्यान हम मरते फिरें।
जरूरत नहीं आग में हाथ जलाने की
जल रही उधर,उसी को उचकाने की।
छली से छल बलि से बल लगाने की
नीत चाणक्य घ्यान धर,युगत लगाने की।
भिगमंगे के प्राण छोड़,कहाँ कुछ लुटाने की
दंडित करना,हो योजना खंडित करवाने की।
टूकड़े टूकड़े कर देना,शपथ यही उठाने की
एक सिंध,एक बलूच को,बाकी हथियाने की।
उस देश की हर गतिविधि आतंकी
मुँह भौकते,मगर पाँव काँपते हो।
परमाणु बम फुस्स,चले शब्दों के
औकाद भिखमंगे की आँकते हो।
कर जाए कुछ,पागलों में साहस नहीं
मर चुका,जिंदा नहीं,क्या ताकते हो।
काल सामने हो,बुद्धि भुला जाती है
बुझती दीया,गति हवा की,माँपते हो।
दुनियाँ से नहीं,घर में डरना होगा
नदियाँ पर्वत,चौखट पढ़ना होगा।
कितना बदला चंदा सूरज
बदली घरती पढ़ना होगा
डिग रहा अडिग,पेड़ो की
चाल भी पढ़ना होगा।
कड़वी बोली से मीठी भाषा
भेद व्याकरण समझना होगा
और लोकोक्ति अर्थ मुहावरा
हाल संस्करण से पढ़ना होगा।
टूट सकता है तो तोड़ दो
नासूर है तो,काट छोड़ दो।
बरबाद के कगार पर है खड़ा
गढ्ढ़े में धकेल,छोड़ दो।
रखो उसे तैयारियों में व्यस्त
थके,तो वजन जोड़ दो
मिला है अवसर तो जाने दो
पानी के हर सोतो को तोड़ दो।
आनेवाली पीढ़ियों के लिए
याद करने को रहे।
प्रश्न हल करने के लिए
सोदारहण रहे।
उनको अंधेरे की आदत
सो आज तक अंधेरे मे रहे।
हमको ललक रौशनी की
खोज किरणों को,उजाले में रहे।
दुनियाँ को परिवार माना
किसके घराने यहाँ नहीं रहे
सोच थी एक पालना की
कोई वीराने में न रहे।
हम से निकल मिटाने चला
हम जिसे हम जिलाने मे रहें।
उसकी सोच भँवर में डूबेगा
वो तूफान उड़ाने में रहे।
सीजफायर बाद भी उल्लंघन जारी है
चूकाये कुछ नहीं,चुकाना अभी भारी है।
आत्मघाती उसका हर कदम
बचा के मार,हमारी जारी है।
कल किस मुँह टेकोगे घुटने
टूटी कमर पर बोझ भारी है।
रूक रूक कर शांति तोड़ना
दिखा दे तांडव,अब उसी की बारी है।
चलो देखेंगे अगले वार कहीं
फिर एक बार मँझधार सही
बात तो आर पार की थी
चलो फिर एक बार वही।
इस वार अंदर हवा रूख सही
पर बाहर रूख हवा वार नहीं।
कहाँ कोई आदत से बाज आए
चलो एक फिर इंतजार सही।
आज न कल आएगा जद में फिर
रखते है गुलेल फिर तैयार यहीं।
रूको हम तुम सब से प्यार करेंगे
दोंनो से बहुत सारा व्यापार करेंगे।
आदतन,एकत्तर को भी,जीत बोलता है
लीक शुरू,मानवता न शर्मसार करेंगे।
अरे ठहरो चार दिन न झेल सका
खाक मुकाबला,चलो पुचकार करेंगे।
तिब्बत भी था संप्रभु मिला लिया
सीपैक का फंदा,गुलामी यार करेंगे।
कि,कमजोंरो का कोई घर नहीं होता
न कहीं उसका जमीन न शहर होता।
मेमने बकरियों सा इंतजार भेड़ियों का
ले जाए,क्या अब शहर में नहीं होता?
कहाँ मजबूतों से छीनी जाती आजादी
सुना शेरों की दहाड़,कहे खबर नहीं होता?
दूसरों के पैरों के बल न चला जाता कभी
अपनी लाठी है संबल,कहीं धोखा नहीं देता।
बहुत बहुत बधाई हो
2%भत्ता-ए-मँहगाई वो।
गम न कर दम तो धर
किससे कम कमाई वो।
पाँव कटा क्या पंख माँगना
उड़ी कभी न गगन ऊँचाई वो
बुँद बुँद से घरा भरा है
हमने कंकड़ कभी न गिराई वो।
सर्वोत्तम मकईया जीवन
धत् थू जीवन गन्ना पेराई वो
सर्वे हुआ जब सादगी पर
खड़ा मिला आकड़ा जुटाई वो।
हम से उलझे,तो
दिन में तारे,रात में
चकमक सूरज देखोगे।
भटक गये हो जंगल में
सही राह कभी न देखोगे।
उलझ मरोगे अपने जाल मे
कूप मंडूक अपने चाल में
हम से बँट कर हमसे
सबसे छँट कर
दिन देखोगे
सुबह कभी न देखोगे।
रात रात का चुना सफर
गुम रह कर अपने हाथो
अपना दम घोटोगे
मर मर कर जी भर सब देखोगे।
अब तो जा के तन लोहा हुआ है
हमारी प्रभुता का अंदाजा हुआ है।
उसके मददगार अचंभित है
दुनियाँ के ठेकेदार चिंचित है।
रोकी त्रासदी जो हो सकता था
वो चोट वहन न हो सकता था
हमारी प्रतिज्ञा है इस क्षण में
विरूद्ध युद्ध आतंक,है प्रण में
होगी हमारी यश हमारी जय है
उसके सर्वनाश पर,न शंशय है।
राजनीति में कुछ भी अनीति नहीं
समय अवसर देख हो नीति सही।
जिस कदम से दो वोट बढ़ जाए
उसी दिशा में उठे पग,राह वहीं।
लोकतंत्र में हो न्यायसम्मत सब
यह कदापि दिखता संभव नहीं।
देखो बदलते मौसम की करवट
समय से पहले धमकाती नहीं।
किस राज परिवार के अंदर क्या
चेहरे बदले राजशाही है वहीं।
जान रहे न मेरे देश को
अणु परमाणु से नहीं डरता
जब जन्म हुआ था तेरा
तब यहाँ था चला करता।
उलुक कणाद दर्शन वैशेषिक
अंधे तुम,प्रमाण नहीं दिखता
ये धमकी,छिटपुट आक्रमण
इससे ये भूमि देश नही डरता।
जो कौम बना देश,लड़ मर कर
कट कर एक नही रहा करता
संदेशा विश्व को भेज दिया
नव भारत नहीं डरता।
चल सको,तो चलो सबेरा हुआ
फट गई पौ,अंधेरा गया
पर चलोगे तुम क्या?
हो,ऐसे भटके हुए ?
दिशा कुछ पता न हुआ।
उगता है सूरज पूरब में ही कहीं
तुम्हें क्या पता?
न जाने पश्चिम ओर
क्या देखता रह गया!
इतना घुल चूका है जहर
मरा नहीं,तो हुआ अमर।
खून से नस में फिर माथे
चुप धड़कन बंद जिगर।
हर ओर से है,हवायें बंद
जाएँ तो हम जाते किधर।
उषा किरण ही तो आस है
जाग सुबह ताकता हूँ उथर।
एक पुँज से आया हूँ इधर
झटके एक लौटना है उधर।
जंग के लिए जगह ढूँढ़
हथियार खपाए जाते हैं।
वर्चस्व स्थापित करने को
निर्दोष जलाए जाते हैं।
भू जल से नभ तक
रणक्षेत्र बनाये जाते हैं।
धू धू कर जलती है धरती
अपनी अस्तित्व बचाए जाते है।
युद्ध कहीं आरंभ हो जाए
शांतिदूत न आए आते हैं।
छद्म शांति तृषा मानवता
रेत पर पानी दिखाये जाते हैं।
हर हर महादेव शिव शंकर होगा
अब भीषण युद्ध भयंकर होगा।
बसुधा जल हीन पत्थर कंकर होगा
घर छोड़ मानव,शरण बंकर होगा।
किस देव से माँगने जाए नर शांति
अस्त्र शस्त्र ही अंतिम मंतर होगा।
कटेगी लड़ेगी मिटेगी सभ्यता
सत्य असत्य में न अंतर होगा।
अंतिम दौर शुरू युद्ध का
ये अंतहीन निरंतर होगा।