दिल, दरख़्त और दिल्ली। (@dildarakhtdilli) 's Twitter Profile
दिल, दरख़्त और दिल्ली।

@dildarakhtdilli

Everyday Aesthete | ©Photographs | Writing

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calendar_today03-11-2022 11:18:52

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अँधेरे के नाम पर महज़ एक धूमिल पीली रोशनी-सी फैल गई थी, हवा में पीली-मटियाली रोशनी, जो आधी रात तक समूचे शहर पर चमकीले, ठंडे ज़र्रों-सी बरसती रहेगी... निर्मल

अँधेरे के नाम पर महज़ एक धूमिल पीली रोशनी-सी फैल गई थी, हवा में पीली-मटियाली रोशनी, जो आधी रात तक समूचे शहर पर चमकीले, ठंडे ज़र्रों-सी बरसती रहेगी...

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बादल का कोई टुकड़ा कहीं से भी उभरता, और बिना निशान छोड़े कहीं भी गुम हो जाता। आँखों के सामने शाम की छोटी-सी दुनिया फैलकर कितनी दूर-दूर तक चली जाती थी।

बादल का कोई टुकड़ा कहीं से भी उभरता, और बिना निशान छोड़े कहीं भी गुम हो जाता। आँखों के सामने शाम की छोटी-सी दुनिया फैलकर कितनी दूर-दूर तक चली जाती थी।
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ज़िन्दगी के इस लंबे रास्ते पर बहुत-सा सामान पीछे छूट जाएगा- कुछ अपनी मर्ज़ी से, कुछ बिना बताए। फिर भी इच्छा है, किसी एक स्मृति को ऐसे बचाकर ले जाने की, जैसे कोई अकेला यात्री अँधेरा घिरने से पहले आख़िरी उजाले को अपनी मुट्ठी में थामे चलता हो।

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“You sit by the window and watch the rain falling, you miss the time when happiness was all about collecting raindrops on your palms.” ― Nitya Prakas

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― Nitya Prakas
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हमने विस्मृति के बीज डाले तो यादों का दरख़्त उग आया कुछ चीज़ों को भूलना कितना कठिन है जैसे इस उम्र में कुछ चीज़ों को याद रखना! ( मदन कश्यप )

हमने विस्मृति के बीज डाले
तो यादों का दरख़्त उग आया
कुछ चीज़ों को भूलना कितना कठिन है
जैसे इस उम्र में
कुछ चीज़ों को याद रखना!

( मदन कश्यप )
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शाम को किसी ना किसी तरह किसी न किसी की याद में गुजार देना चाहिए। अकेले ही। बलदेव वैद ( डायरी )

शाम को किसी ना किसी तरह किसी न किसी की याद में गुजार देना चाहिए। अकेले ही।

बलदेव वैद ( डायरी )
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एक शाम अपने में डूबता चला जा रहा हूँ मुझमें घर लौटती चिड़ियों का शोर। यह कैसी है शाम जो इतनी तरह से मेरी होती जा रही है। ( कुँवर नारायण )

एक शाम 
अपने में डूबता चला जा रहा हूँ 

मुझमें घर लौटती चिड़ियों का शोर। 

यह कैसी है शाम 
जो इतनी तरह से मेरी होती जा रही है।

( कुँवर नारायण )