
चाय, इश्क और राजनीति।
@chayisquerajnit
गांधीवादी/क्रिकेट/मूवी/राजनीति/इतिहास/राही मासूम रज़ा/विनोद कुमार शुक्ल/अमृता प्रीतम/गुलज़ार/जावेद/पाकिस्तानी शायर और म्यूजिक के बड़े फैन और ख़त लिखने वाला।
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🇫 🇦 🇷 🇭 🇦 🇳 𝖐𝖍𝖆𝖓 मेरा मानना है, जब तक तुम मेरे से सहमत हो, विचारधारा सेम है, तुम्हें लग रहा है क्रांतिकारी लेखक है, तब तक पढ़ो। जिस दिन लगने लगे कि सत्ता की दलाली करने लगा, और ठीक से नहीं लिख पा रहा उस दिन ब्लॉक कर देना या फिर पढ़ने छोड़ देना। यहां ना मैं आपका रिश्तेदार हूं, और ना आप मेरे, जो

"भक्तों का संपादक, सत्ता का दलाल।" प्रिय हर्षवर्धन त्रिपाठी, हर्ष वर्धन त्रिपाठी 🇮🇳Harsh Vardhan Tripathi तुम्हारे शब्दों में राष्ट्रभक्ति की खड़खड़ाहट है, लेकिन जब उन्हें छूता हूँ तो उनमें से सस्ती दलाली की बू आती है। तुम्हारी पत्रकारिता वैसी ही लगती है जैसे मंदिर में बैठा पुराना पुजारी, जो अब आरती नहीं,


“सूचनाओं की सौदागर, मीनाक्षी जोशी।" प्रिय मीनाक्षी जोशी, Meenakshi Joshi मैं ये ख़त नहीं लिख रहा हूँ, मैं बस तुम्हारी उस मुस्कान का विश्लेषण कर रहा हूँ जो कैमरे पर चमकती है ,- ठीक वैसे ही जैसे सत्ता की तलवार धूप में चमकती है: बेहतरीन, निर्मम और लोभ से लिपटी हुई। तुम्हारी आँखों




"पत्रकारिता की चिता पर बैठी चित्रा त्रिपाठी" प्रिय चित्रा त्रिपाठी, Chitra Tripathi तुम्हें यह ख़त उस समय लिखा जा रहा है जब दिल्ली के आसमान में जून की तपती दोपहरें धुएँ और झूठ से भर चुकी हैं - और उसी धुएँ में तुम्हारा चेहरा एक 'न्यूज़ एंकर' का नहीं, बल्कि सत्ता के दरबार में घुटनों


"स्मिता की मुस्कुराहट और सत्ता का शीशा" प्रिय स्मिता प्रकाश, Smita Prakash तुम्हारी मुस्कान कैमरे पर कुछ ऐसी दिखती है, जैसे कोई फटी पुरानी किताब पर चमकदार जिल्द चढ़ा दी गई हो। ऊपर से झलकता है तेज, भीतर से रिसता है एजेंडा। जैसे गुलाब के नीचे बिछा हो काँटों का जाल- जिसे सूंघने



"संघ की रेशमी टाई में लिपटा हुआ राष्ट्रवाद का रेडीमेड प्रवक्ता।" प्रिय सुधांशु त्रिवेदी, Dr. Sudhanshu Trivedi खिड़की के उस पार सूरज कहीं छिप सा गया है। रातें अभी काली नहीं हुई है, कुछ लोग इसे शाम कहते है, कुछ इवनिंग और हम जैसे लोग डूबते हुए सुरज के साथ जब चिड़ियां आसमानों में रेस


