चाय, इश्क और राजनीति। (@chayisquerajnit) 's Twitter Profile
चाय, इश्क और राजनीति।

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गांधीवादी/क्रिकेट/मूवी/राजनीति/इतिहास/राही मासूम रज़ा/विनोद कुमार शुक्ल/अमृता प्रीतम/गुलज़ार/जावेद/पाकिस्तानी शायर और म्यूजिक के बड़े फैन और ख़त लिखने वाला।

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"पटरियों का इंजीनियर, पर यात्रियों का अनसुना मंत्री" प्रिय अश्विनी वैष्णव जी, आपके लिए एक ख़त नहीं, रेल की पटरियों पर बिछी चीखों, चिल्लाहटों, बदबू और धूल का पुलिंदा लिखने बैठा हूं- उन यात्रियों की तरफ़ से जो टिकट तो खरीदते हैं, पर इज़्ज़त नहीं; सफ़र तो करते हैं, पर ज़ख़्मों से।

"पटरियों का इंजीनियर, पर यात्रियों का अनसुना मंत्री"

प्रिय अश्विनी वैष्णव जी,

आपके लिए एक ख़त नहीं, रेल की पटरियों पर बिछी चीखों, चिल्लाहटों, बदबू और धूल का पुलिंदा लिखने बैठा हूं- उन यात्रियों की तरफ़ से जो टिकट तो खरीदते हैं, पर इज़्ज़त नहीं; सफ़र तो करते हैं, पर ज़ख़्मों से।
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"कंधे पर गमछा, दिल में डर.." प्रिय सौरभ द्विवेदी, इस गर्म भरी दिल्ली में पत्रकारिता का तापमान क्या होगा? एसी का एक कमरा, कुछ झुके हुए की-बोर्ड, कुछ घिसे हुए माइक, और एक महँगा कैमरा- जिसके पीछे खड़ा वो शख़्स, अब पत्रकार नहीं, प्रोड्यूसर लगता है। जहाँ पहले एंकरों के चेहरे से जनता

"कंधे पर गमछा, दिल में डर.."

प्रिय सौरभ द्विवेदी,

इस गर्म भरी दिल्ली में पत्रकारिता का तापमान क्या होगा? एसी का एक कमरा, कुछ झुके हुए की-बोर्ड, कुछ घिसे हुए माइक, और एक महँगा कैमरा- जिसके पीछे खड़ा वो शख़्स, अब पत्रकार नहीं, प्रोड्यूसर लगता है। जहाँ पहले एंकरों के चेहरे से जनता
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गांधी, टॉलस्टॉय, टैगोर को याद करना अच्छी बात है, लेकिन ज़रा सोचिए - क्या वो लोग आपकी विचारधारा के साथ खड़े होते? गांधी आख़िरी सांस तक संघ के खिलाफ लड़े, टैगोर ने अंधराष्ट्रवाद को ‘राक्षसी प्रवृत्ति’ कहा, और टॉलस्टॉय सत्ता को नैतिक पतन की जड़ मानते थे। आज जब आप ‘दादागिरी’ के

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"एक भगवा दुपट्टा, दो चेहरे: राधिका खेड़ा को एक चिट्ठी" प्रिय राधिका खेड़ा, तुम्हें ये चिट्ठी एक ऐसे समय में लिख रहा हूँ,जब तुम कांग्रेस छोड़ चुकी हो, राम को गले लगा चुकी हो, और भाजपा के मंच से लोकतंत्र को नया पाठ पढ़ा रही हो। सच कहूँ तो तुम्हारी कहानी किसी धार्मिक ग्रंथ से

"एक भगवा दुपट्टा, दो चेहरे: राधिका खेड़ा को एक चिट्ठी"

प्रिय राधिका खेड़ा,

तुम्हें ये चिट्ठी एक ऐसे समय में लिख रहा हूँ,जब तुम कांग्रेस छोड़ चुकी हो, राम को गले लगा चुकी हो, और भाजपा के मंच से लोकतंत्र को नया पाठ पढ़ा रही हो। सच कहूँ तो तुम्हारी कहानी किसी धार्मिक ग्रंथ से
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"चोकर्स नहीं, चैंपियंस हैं हम – लॉर्ड्स की बालकनी से अफ्रीकी आंसू बह निकले" प्रिय क्रिकेट, तूने आज एक पुराना पाप धो दिया। आज लॉर्ड्स की बालकनी से जो चीखें आईं, वे जीत की नहीं थीं - मुक्ति की थीं। उन चीखों में 1999 के सेमीफाइनल की हारी हुई साँसें थीं, 2007 की शर्म थी, 2015 की

"चोकर्स नहीं, चैंपियंस हैं हम – लॉर्ड्स की बालकनी से अफ्रीकी आंसू बह निकले"

प्रिय क्रिकेट,

तूने आज एक पुराना पाप धो दिया। आज लॉर्ड्स की बालकनी से जो चीखें आईं, वे जीत की नहीं थीं - मुक्ति की थीं। उन चीखों में 1999 के सेमीफाइनल की हारी हुई साँसें थीं, 2007 की शर्म थी, 2015 की
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“भगवा का तमाशा और बागेश्वर का बाज़ार।" प्रिय धीरेन्द्र शास्त्री, यह ख़त आपको नहीं, उस भारत को लिखा जा रहा है, जो आपकी कथित चमत्कारों की धूल में अपनी बुद्धि खो चुका है। आप मंच पर आते हैं, सिर पर भगवा साफ़ा बांधते हैं, आंखों में आत्मविश्वास नहीं - अभिनय की चमक होती है, और हाथ में

“भगवा का तमाशा और बागेश्वर का बाज़ार।"

प्रिय धीरेन्द्र शास्त्री,

यह ख़त आपको नहीं, उस भारत को लिखा जा रहा है, जो आपकी कथित चमत्कारों की धूल में अपनी बुद्धि खो चुका है। आप मंच पर आते हैं, सिर पर भगवा साफ़ा बांधते हैं, आंखों में आत्मविश्वास नहीं - अभिनय की चमक होती है, और हाथ में
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"क्रांतिकारी पापा, और फादर्स डे।" भक्तों के प्रिय ‘पापा जी’ आज फादर्स डे है। सारे बच्चे आज अपने-अपने बायोलॉजिकल पिता को विश कर रहे हैं, पर एक भारी तबका ऐसा भी है, जो आज दाढ़ी वाले अपने ‘सबसे अच्छे पिता’ के चरणों में डिजिटल फूल चढ़ा रहा है। ये वही बच्चे हैं, जिन्होंने अपनी सोच

"क्रांतिकारी पापा, और फादर्स डे।"

भक्तों के प्रिय ‘पापा जी’

आज फादर्स डे है। सारे बच्चे आज अपने-अपने बायोलॉजिकल पिता को विश कर रहे हैं, पर एक भारी तबका ऐसा भी है, जो आज दाढ़ी वाले अपने ‘सबसे अच्छे पिता’ के चरणों में डिजिटल फूल चढ़ा रहा है। ये वही बच्चे हैं, जिन्होंने अपनी सोच
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🇫 🇦 🇷 🇭 🇦 🇳 𝖐𝖍𝖆𝖓 मेरा मानना है, जब तक तुम मेरे से सहमत हो, विचारधारा सेम है, तुम्हें लग रहा है क्रांतिकारी लेखक है, तब तक पढ़ो। जिस दिन लगने लगे कि सत्ता की दलाली करने लगा, और ठीक से नहीं लिख पा रहा उस दिन ब्लॉक कर देना या फिर पढ़ने छोड़ देना। यहां ना मैं आपका रिश्तेदार हूं, और ना आप मेरे, जो

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"भक्तों का संपादक, सत्ता का दलाल।" प्रिय हर्षवर्धन त्रिपाठी, हर्ष वर्धन त्रिपाठी 🇮🇳Harsh Vardhan Tripathi तुम्हारे शब्दों में राष्ट्रभक्ति की खड़खड़ाहट है, लेकिन जब उन्हें छूता हूँ तो उनमें से सस्ती दलाली की बू आती है। तुम्हारी पत्रकारिता वैसी ही लगती है जैसे मंदिर में बैठा पुराना पुजारी, जो अब आरती नहीं,

"भक्तों का संपादक, सत्ता का दलाल।"

प्रिय हर्षवर्धन त्रिपाठी, <a href="/MediaHarshVT/">हर्ष वर्धन त्रिपाठी 🇮🇳Harsh Vardhan Tripathi</a>

तुम्हारे शब्दों में राष्ट्रभक्ति की खड़खड़ाहट है, लेकिन जब उन्हें छूता हूँ तो उनमें से सस्ती दलाली की बू आती है। तुम्हारी पत्रकारिता वैसी ही लगती है जैसे मंदिर में बैठा पुराना पुजारी, जो अब आरती नहीं,
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“सूचनाओं की सौदागर, मीनाक्षी जोशी।" प्रिय मीनाक्षी जोशी, Meenakshi Joshi मैं ये ख़त नहीं लिख रहा हूँ, मैं बस तुम्हारी उस मुस्कान का विश्लेषण कर रहा हूँ जो कैमरे पर चमकती है ,- ठीक वैसे ही जैसे सत्ता की तलवार धूप में चमकती है: बेहतरीन, निर्मम और लोभ से लिपटी हुई। तुम्हारी आँखों

“सूचनाओं की सौदागर, मीनाक्षी जोशी।"

प्रिय मीनाक्षी जोशी, <a href="/IMinakshiJoshi/">Meenakshi Joshi</a>

मैं ये ख़त नहीं लिख रहा हूँ, मैं बस तुम्हारी उस मुस्कान का विश्लेषण कर रहा हूँ जो कैमरे पर चमकती है ,- ठीक वैसे ही जैसे सत्ता की तलवार धूप में चमकती है: बेहतरीन, निर्मम और लोभ से लिपटी हुई। तुम्हारी आँखों
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"इंद्रायणी की लहरों में बह गया एक और सरकारी वादा!" प्रिय भारत, 15 जून 2025 की दोपहर थी। पुणे की मावल तहसील की गर्मी और उमस में लिपटी इंद्रायणी नदी उस दिन कुछ ज्यादा ही बेचैन थी। जैसे उसे पहले से कोई अनहोनी सूंघ ली हो। और फिर, उसके ऊपर लटकता एक पुराना पुल - लोहे का, जर्जर, थका

"इंद्रायणी की लहरों में बह गया एक और सरकारी वादा!"

प्रिय भारत,

15 जून 2025 की दोपहर थी। पुणे की मावल तहसील की गर्मी और उमस में लिपटी इंद्रायणी नदी उस दिन कुछ ज्यादा ही बेचैन थी। जैसे उसे पहले से कोई अनहोनी सूंघ ली हो। और फिर, उसके ऊपर लटकता एक पुराना पुल - लोहे का, जर्जर, थका
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"यूपी की नींद का सबसे शर्मनाक सच।" प्रिय उत्तर प्रदेश सरकार, तुम्हें ये ख़त एक एटीएम के काँच के उस पार से लिखा जा रहा है, जहाँ दो औरतें, दो बच्चे और एक थक चुका आदमी लेटे हैं - जैसे किसी युद्ध के बाद बचे हों। पर ये कोई युद्ध नहीं है, सिर्फ़ एक आम गर्मी की रात है तुम्हारे राज

"यूपी की नींद का सबसे शर्मनाक सच।"

प्रिय उत्तर प्रदेश सरकार,

तुम्हें ये ख़त एक एटीएम के काँच के उस पार से लिखा जा रहा है, जहाँ दो औरतें, दो बच्चे और एक थक चुका आदमी लेटे हैं - जैसे किसी युद्ध के बाद बचे हों। पर ये कोई युद्ध नहीं है, सिर्फ़ एक आम गर्मी की रात है तुम्हारे राज
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"पत्रकारिता की चिता पर बैठी चित्रा त्रिपाठी" प्रिय चित्रा त्रिपाठी, Chitra Tripathi तुम्हें यह ख़त उस समय लिखा जा रहा है जब दिल्ली के आसमान में जून की तपती दोपहरें धुएँ और झूठ से भर चुकी हैं - और उसी धुएँ में तुम्हारा चेहरा एक 'न्यूज़ एंकर' का नहीं, बल्कि सत्ता के दरबार में घुटनों

"पत्रकारिता की चिता पर बैठी चित्रा त्रिपाठी"

प्रिय चित्रा त्रिपाठी, <a href="/chitraaum/">Chitra Tripathi</a>

तुम्हें यह ख़त उस समय लिखा जा रहा है जब दिल्ली के आसमान में जून की तपती दोपहरें धुएँ और झूठ से भर चुकी हैं - और उसी धुएँ में तुम्हारा चेहरा एक 'न्यूज़ एंकर' का नहीं, बल्कि सत्ता के दरबार में घुटनों
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"स्मिता की मुस्कुराहट और सत्ता का शीशा" प्रिय स्मिता प्रकाश, Smita Prakash तुम्हारी मुस्कान कैमरे पर कुछ ऐसी दिखती है, जैसे कोई फटी पुरानी किताब पर चमकदार जिल्द चढ़ा दी गई हो। ऊपर से झलकता है तेज, भीतर से रिसता है एजेंडा। जैसे गुलाब के नीचे बिछा हो काँटों का जाल- जिसे सूंघने

"स्मिता की मुस्कुराहट और सत्ता का शीशा"

प्रिय स्मिता प्रकाश, <a href="/smitaprakash/">Smita Prakash</a>

तुम्हारी मुस्कान कैमरे पर कुछ ऐसी दिखती है, जैसे कोई फटी पुरानी किताब पर चमकदार जिल्द चढ़ा दी गई हो। ऊपर से झलकता है तेज, भीतर से रिसता है एजेंडा। जैसे गुलाब के नीचे बिछा हो काँटों का जाल- जिसे सूंघने
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खिड़की के उस पार आज धूप नहीं है - एक लड़की है। उसके माथे पर मानवता का नक्शा बना है, जिसमें इंसानों और जानवरों को बराबर जगह मिली है - जैसे कोई भूगोल हो, जो सीमाओं से नहीं, संवेदनाओं से बना हो। कुत्तों को बिस्कुट खिलाते हुए वो लड़की दिल्ली की कम, किसी बेनक्श जगह की ज़्यादा लगती है।

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"संघ की रेशमी टाई में लिपटा हुआ राष्ट्रवाद का रेडीमेड प्रवक्ता।" प्रिय सुधांशु त्रिवेदी, Dr. Sudhanshu Trivedi खिड़की के उस पार सूरज कहीं छिप सा गया है। रातें अभी काली नहीं हुई है, कुछ लोग इसे शाम कहते है, कुछ इवनिंग और हम जैसे लोग डूबते हुए सुरज के साथ जब चिड़ियां आसमानों में रेस

"संघ की रेशमी टाई में लिपटा हुआ राष्ट्रवाद का रेडीमेड प्रवक्ता।"

प्रिय सुधांशु त्रिवेदी, <a href="/SudhanshuTrived/">Dr. Sudhanshu Trivedi</a>

खिड़की के उस पार सूरज कहीं छिप सा गया है। रातें अभी काली नहीं हुई है, कुछ लोग इसे शाम कहते है, कुछ इवनिंग और हम जैसे लोग डूबते हुए सुरज के साथ जब चिड़ियां आसमानों में रेस
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लिस्ट बहुत लंबी है, इसलिए एक दिन में 4-4 ख़त लिखना पड़ रहा है। बस याद रहे, सबकी बारी आएगी।

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"सुन ओ विचारहीन भेड़िये।" तेरे जैसे दो टके के ‘ट्रोल-कामधेनु’ रोज़ ही टाइमलाइन पर मिमियाते हैं। चाय और इश्क़ तुझे पचता नहीं क्योंकि तू झूठ की भट्टी में तला हुआ टोटल "गोदी ब्रांड" है। और कांग्रेस का प्रवक्ता? भाई, तुम जैसे 'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' के चपरासी को सोचकर ही हंसी आती है।