“सारे संस्कार अनित्य हैं” यानि जो कुछ होता है वह नष्ट होता ही है. इस सच्चाई को जब कोई विपश्यन-प्रज्ञा से देख-जान लेता है, तब उसको दु:खों से निर्वेद प्राप्त होता है अर्थात दु:ख-क्षेत्र के प्रति भोक्ताभाव टूट जाता है, ऐसा है यह विशुद्धि (विमुक्स्ति) का मार्ग।
-धम्मपद, मग्गवग्गो