शब्द संभारे बोलिये, शब्द के हाँथ न पाँव ।
एक शब्द औषद करे, एक शब्द करे घाव ।।
तो ऐसा प्रेमपूर्वक, ज्ञानपूर्वक, सूझबूझपूर्वक शब्द बोलना चाहिए। शब्द के हाथ-पांव नहीं होते फिर भी कोई शब्द औषधि का, मधुरता का, अमृत का काम करते हैं तो कोई शब्द विष का काम करते हैं।
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