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Vivek Kaushik (Advaita)

@vivekadvaita

प्रचारक (रा.स्व.संघ),प्रान्त संघटन मंत्री (दिल्ली प्रदेश),संस्कृतभारती Sanskrit, without a doubt, is 1 of d oldest and most important language in d world.

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Invite Gita into your life through Sanatani connect youtube channel youtube.com/@sanatandharma… Visit Acharya Vivek Kaushik (Advaita) Vivek ji 's videos on Bhagwadgita .Amazing explanation for every shloka , the essence of every chapter designs, beautifies your lifestyle. JAI SRI KRISHNA

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श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी आप सभी से एक शुभ वार्ता निवेदन हैं। आज रात्री 9:30 pm से 10:30 pm तक Vivek Kaushik (Advaita) Acharya Vivek Kaushik जी के मधुर वाणी में श्रीमद्भगवद्गीता की कक्षा में जरूर जुड़े । स्वर्णिम अवसर। गीता स्पेस में सभी का स्वागत हैं।

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स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा। कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्।।18.60 ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61 हे कौन्तेय तुम अपने स्वाभाविक कर्मों से बंधे हो, (अत) मोहवशात् जिस कर्म को तुम करना नहीं चाहते हो,

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तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत। तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।18.62 इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया। विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।18.63 हे भारत तुम सम्पूर्ण भाव से उसी (ईश्वर) की शरण में जाओ। उसके प्रसाद से तुम परम शान्ति और शाश्वत स्थान को

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सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः। इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्।।18.64 मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65 पुन एक बार तुम मुझसे समस्त गुह्यों में गुह्यतम परम वचन (उपदेश) को सुनो। तुम मुझे अतिशय प्रिय हो,

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सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66 सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम शोक मत करो। Abandoning all duties, take refuge in Me alone: I will liberate thee from all

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इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन। न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति।।18.67 य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति। भक्ितं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।।18.68 यह ज्ञान ऐसे पुरुष से नहीं कहना चाहिए, जो अतपस्क (तपरहित) है, और न उसे जो अभक्त है उसे भी नहीं जो अशुश्रुषु

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न च तस्मान्मनुष्येषु कश्िचन्मे प्रियकृत्तमः। भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।18.69 अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः। ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।18.70 न तो उससे बढ़कर मेरा अतिशय प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई है और न उससे बढ़कर मेरा प्रिय इस

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श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः। सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।18.71 तथा जो श्रद्धावान् और अनसुयु (दोषदृष्टि रहित) पुरुष इसका श्रवणमात्र भी करेगा, वह भी (पापों से) मुक्त होकर पुण्यकर्मियों के शुभ (श्रेष्ठ) लोकों को प्राप्त कर लेगा। Also the man who