बाँहें खुली हैं आसमाँ की
बादलों को थाम लो
माना उड़ने को पंख नहीं
मगर हौसलों को मन में भर लो
रूख हवा का कुछ यूँ बदलो
दिशाओं को ख़ुद के संग कर लो
रेत ही रेत है चारों तरफ़
समंदर की लहरों में तैरना सीख लो
आसान नहीं है जीवन की राहें
काँटों की वादियों में
अपने हिस्से का फूल
मेरे चुप रहने पे पत्थर मुझे कहने वाले,
मेरे रोने पे अदाकार समझते हैं मुझे !!
धूप निकलेगी तो उन सब के भरम टूटेंगे,
ये जो सब साया-ए-दीवार समझते हैं मुझे !!
~कुलदीप कुमार 🌸💙
ये सोशल मीडिया है और हर कोई इतना परफेक्ट नहीं है कि कविता, शेरों-शायरी, नज़्म या ग़ज़ल लिख सके और ना ही हर किसी के पास इतना सब्र या समय है कि सीखने के लिए वक्त दे सके।
यहां हम जैसे बहुत लोग हैं जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं या आसपास के माहौल और विचारों को अपने शब्दों में
खो देने का भय सबसे अधिक
यदि किसी में है,
तो वो पुरुषों(कुछ) में ही है शायद!
और हां तुम ..एक पुरुष होते हुए
इस भय को छुपाते हो सबसे,
अपने आप से भी,
क्योंकि तुम्हें सिखाया गया है आँसू पी जाना, और कमज़ोरी न दिखाना..
तुमने सदैव चाहा सब, तुम्हारे पास,
खो देने से पहले ,
प्रेम,
फिर कभी कागज़ हुआ तो चेष्टा करूंगा
ज़िंदगी किसी ऐसे पत्र का इंतज़ार हो
जिसे कोई प्यार से लिखे,
संभालकर एक लिफ़ाफ़े में रखे,
और अपने होंठों से चिपकाकर देर तक सोचे
कि उसे भेजे या न भेजे?
- कुंवर नारायण🌻🍂
तुझ से बिछड़ के हम भी मुक़द्दर के हो गए
फिर जो भी दर मिला है उसी दर के हो गए
फिर यूँ हुआ कि ग़ैर को दिल से लगा लिया
अंदर वो नफ़रतें थीं कि बाहर के हो गए
~ अहमद फ़राज़
हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है
काएनात रक़्साँ है ज़िंदगी ग़ज़ल-ख़्वाँ है
गीत हैं जवानी है अब्र है बहारें हैं
मुज़्तरिब इधर मैं हूँ तू उधर परेशाँ है
#ज़िया_फ़तेहाबादी
कुछ लोग मन के
उस कोने में रहते हैं...
जहाँ रोशनी नहीं पहुँचती
पर सबसे ज्यादा उजाला,
उसी कोने में होता है...
सुकून साँस लेता है वहाँ...
और ज़िंदगी के चंद पल
ख़ुशनुमा हो जाते हैं...!!
#नीलम
#ख़ुशनुमा
#छोटा_दरवाज़ा
ख़्वाब---
रात की पेशानी पर
तारों के झूमर टाँगते ही
आँखों के दरवाज़े से
धीरे-धीरे उतरता है — ख़्वाब
कभी रेशमी परछाई बनकर
दिल की हथेलियों पर ठहर जाता
कभी टूटी हुई चाँदनी की तरह
आँखों में बिखर जाता
ख़्वाब वो भी है
जो नींद की सिलवटों में सँवरता है
और वो भी
जो जागते-जागते रूह की
मुफ़लिसी की आवाज़--- नज़्म
मैं मुफ़लिसी हूँ—
दीवारों की सीलन में छुपा आँसू,
पलंग की चरमराहट में सोया हुआ ग़म,
और चराग़ की लौ में काँपती आख़िरी उम्मीद।
मैं वो खामोशी हूँ
जो खाली कटोरी में गूंजती है,
वो अधूरा लफ़्ज़ हूँ
जो किताब के बीच से खो जाता है।
बच्चों की खिलखिलाहट
जब अचानक