एक समय "पंडित सोनदंड" को भी वेद- पुराण, उपनिषद, शास्त्र का अहंकार हो गया था। अंत में क्या हुआ "महात्मा बुद्ध" के सामने नतमस्तक होना ही पड़ा।
हिन्दू धर्म के कथा वाचकों से निवेदन है कि किसी आत्मज्ञानी महात्मा से शास्त्रार्थ करने की गलती बिल्कुल न करें।