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Arvind Shukla™

@arvind_shukla70

Lecturer In Physical Education🏊⛹️🤼,
पूर्व छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय

ID: 1271686593795862528

calendar_today13-06-2020 06:11:40

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॥अयोध्या कांड॥ तुम्हहि बिदित सबही कर करमू। आपन मोर परम हित धरमू॥मोहि सब भाँति भरोस तुम्हारा। तदपि कहउँ अवसर अनुसारा॥ भावार्थ- तुमको सबके कर्मों का और अपने तथा मेरे परम हितकारी धर्म का पता है। यद्यपि मुझे तुम्हारा सब प्रकार से भरोसा है, तथापि मैं समय के अनुसार कुछ कहता हूँ।

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“जहाँ भी हैं, जैसे भी हैं, सतत कर्मशील रहें, भाग्य अवश्य बदलेगा”

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॥अयोध्या कांड॥ जौं बिनु अवसर अथवँ दिनेसू।जग केहि कहहु न होइ कलेसू॥तस उतपातु तात बिधि कीन्हा।मुनि मिथिलेस राखि सबु लीन्हा॥ भावार्थ-यदि असमय सूर्य अस्त हो जाए, तो जगत् में किस को क्लेश न होगा?हे तात!वैसा ही उत्पात विधाता ने किया है।पर मुनि ने तथा मिथिलेश्वर ने सबको बचा लिया॥

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“जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना”

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“जाग्रत्‌ आत्मा का लक्षण है- सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ की ओर उन्मुखता”

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“उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना”

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॥अयोध्या कांड॥ सभा सकल सुनि रघुबर बानी। प्रेम पयोधि अमिअँ जनु सानी॥सिथिल समाज सनेह समाधी। देखि दसा चुप सारद साधी॥ भावार्थ- प्रभु की वाणी सुनकर, जो मानो समुद्र मंथन से निकले अमृत में सनी हुई थी, सारा समाज शिथिल हो गया, सबको प्रेम समाधि लग गई।यह दशा देखकर सरस्वती ने चुप साध ली॥

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“गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, आत्मचिंतन से दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है”

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“सत्य बोलने तक ही सीमित नहीं, वह चिंतन और कर्म का भी प्रकार है, जिसके साथ श्रेष्ठ उद्देश्य अनिवार्य रूप से जुड़ा होता है”

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“अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है, जो इस स्थिति को प्राप्त लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है”

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“आपकी आकांक्षाएँ ही आपकी संभावनाएँ हैं, इसलिए, अपनी आकांक्षाओं को हमेशा ऊँचा रखें”

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॥अयोध्या कांड॥ कहत कूप महिमा सकल गए जहाँ रघुराउ। अत्रि सुनायउ रघुबरहि तीरथ पुन्य प्रभाउ॥ भावार्थ-कूप की महिमा कहते हुए सब लोग वहाँ गए जहाँ श्री रघुनाथजी थे। श्री रघुनाथजी को अत्रिजी ने उस तीर्थ का पुण्य प्रभाव सुनाया॥

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॥अयोध्या कांड॥ देखि सुभाउ सनेहु सुसेवा। देहिं असीस मुदित बनदेवा॥ फिरहिं गएँ दिनु पहर अढ़ाई।प्रभु पद कमल बिलोकहिं आई॥ भावार्थ- भरतजी के स्वभाव और सेवाभाव को देखकर वनदेवता आनंदित होकर आशीर्वाद देते हैं। घूम-फिरकर ढाई पहर दिन बीतने पर लौट पड़ते हैं और आकर प्रभु का दर्शन करते हैं॥

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“जीवन में आनन्द को कर्तव्य बनाने की अपेक्षा कर्तव्य को आनन्द बनाना अधिक महत्त्वपूर्ण हैं”

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“परंपरा को स्वीकार करने का अर्थ बंधन नहीं, अनुशासन का स्वेच्छा से वरण है”

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॥अयोध्या कांड॥ सानुज सीय समेत प्रभु राजत परन कुटीर। भगति ग्यानु बैराग्य जनु सोहत धरें सरीर॥ भावार्थ- छोटे भाई लक्ष्मणजी और सीताजी समेत प्रभु श्री रामचंद्रजी पर्णकुटी में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो वैराग्य, भक्ति और ज्ञान शरीर धारण कर के शोभित हो रहे हों॥

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“बेहतरीन समय लाने के लिए कठिन समय में लड़ना पड़ता है” #ThoughtForTheDay

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॥अरण्य कांड॥ दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥ कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥ #RamCharitManas

॥अरण्य कांड॥

दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥

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॥अयोध्या कांड॥ निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं। मम मन सीता आश्रम नाहीं॥गहि पद कमल अनुज कर जोरी। कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी॥ #RamCharitManas

॥अयोध्या कांड॥

निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं। मम मन सीता आश्रम नाहीं॥गहि पद कमल अनुज कर जोरी। कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी॥

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॥अयोध्या कांड॥ अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ। गोदावरि तट आश्रम जहवाँ॥ आश्रम देखि जानकी हीना। भए बिकल जस प्राकृत दीना॥ भावार्थ-लक्ष्मणजी सहित प्रभु गोदावरी के तट पर स्थित आश्रम गयें वहाँ जानकीजी को ना देखकर रामजी साधारण मनुष्य की भाँति व्याकुल और दुःखी हो गए॥ #RamCharitManas