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जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुण देत।
बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत ।।

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अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्।।17.22
जो दान बिना सत्कार किये, अथवा तिरस्कारपूर्वक, अयोग्य देशकाल में कुपात्रों के लिए दिया जाता है, वह दान तामस माना गया है।

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अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।
काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥

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अविनयमपनय विष्णो दमय मन: शमय विषयमृगतृष्णाम् ।
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरत:।।

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तुलसी पंछिन के पिये, घटे न सरिता नीर ।
दान दिये धन ना घटे, जो सहाय रघुवीर ।।

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मूढग्राहेणात्मनो यत् पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।17.19
जो तप मूढ़तापूर्वक स्वयं को पीड़ित करते हुए अथवा अन्य लोगों के नाश के लिए किया जाता है, वह तप तामस कहा गया है।

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मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत् तपो मानसमुच्यते॥17.16
मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन आत्मसंयम और अन्तकरण की शुद्धि यह सब मानस तप कहलाता है।
Serenity of mind, good-heartedness, self-control, purity of nature this is called mental austerity.

मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत् तपो मानसमुच्यते॥17.16
मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन आत्मसंयम और अन्तकरण की शुद्धि यह सब मानस तप कहलाता है।
Serenity of mind, good-heartedness, self-control, purity of nature this is called mental austerity.
#ShriGitaJi
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Savy(@SavyySavi) 's Twitter Profile Photo

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां
देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः
सिद्धानां कपिलो मुनिः।।

मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।



📷: B.K.Mitra

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां
देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः
सिद्धानां कपिलो मुनिः।।

मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ मैं गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।

#ShriGitaJi 
#नारद_जयंती 
📷: B.K.Mitra
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Madhavi(@MADHAVI525) 's Twitter Profile Photo

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।
9.13 shlok
He is the universe
He is beyond universe
He is Prakriti.
He is the tejassu
Learning him is the true education
He who learns him will reach his feet.
Jai Srikrishna

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।।
9.13 shlok #ShriGitaji
He is the universe 
He is beyond universe
He is Prakriti.
  He is the tejassu 
Learning him is the true education
He who learns him will reach his feet.
Jai Srikrishna
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यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्।।17.21
और जो दान क्लेशपूर्वक तथा प्रत्युपकार के उद्देश्य से अथवा फल की कामना रखकर दिया जाता हैं, वह दान राजस माना गया है।

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दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।17.20
दान देना ही कर्तव्य है इस भाव से जो दान योग्य देश,काल को देखकर ऐसे (योग्य) पात्र (व्यक्ति)को दिया जाता है,जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है,वह दान सात्त्विक माना गया है।

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सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।।17.18
जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिए अथवा केवल दम्भ (पाखण्ड) से ही किया जाता है, वह अनिश्चित और क्षणिक तप यहाँ राजस कहा गया है।

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