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Swami Apurvanand Giri

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Maha Mandleshwar Shri Panchdashnam, Juna Akhada

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जो व्यक्ति शास्त्र विधियों का उल्लंघन कर मनमाना आचरण करने लगता है उसे सिद्धि, पूर्णता, सुख या परम गति कुछ भी प्राप्त नहीं होता। शास्त्रविधि के अनुसार ही स्वधर्म आचरण करना चाहिए, अन्यथा पारमार्थिक जगत का सुख भी प्राप्त नहीं हो सकेगा। Swami Avdheshanand #SwamiApurvanandGiri #गीता

जो व्यक्ति शास्त्र विधियों का उल्लंघन कर मनमाना आचरण करने लगता है उसे सिद्धि, पूर्णता, सुख या परम गति कुछ भी प्राप्त नहीं होता। शास्त्रविधि के अनुसार ही स्वधर्म आचरण करना चाहिए, अन्यथा पारमार्थिक जगत का सुख भी प्राप्त नहीं हो सकेगा।

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“कृतज्ञता धर्मलक्षणं सतां सदा। कृतघ्नः स्यात् पतितो निःश्रेयसाच्युतः।।” कृतज्ञता सदा सज्जनों का धर्म-लक्षण है। और जो कृतघ्न (अकृतज्ञ) होता है, वह श्रेष्ठ जीवन से पृथक हो जाता है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #SwamiApurvanandGiri #सुविचार

“कृतज्ञता धर्मलक्षणं सतां सदा।
कृतघ्नः स्यात् पतितो निःश्रेयसाच्युतः।।”

कृतज्ञता सदा सज्जनों का धर्म-लक्षण है। और जो कृतघ्न (अकृतज्ञ) होता है, वह श्रेष्ठ जीवन से पृथक हो जाता है।

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स्वर्ण का मृग (हिरण) न तो किसी के द्वारा निर्मित हुआ, न पहले कभी देखा गया और न किसी से सुना ही गया। फिर भी श्री रामचन्द्र जी की कामना उसे पाने की हुई। ठीक वैसे ही, विनाश का समय आने पर मनुष्य की बुद्धि उल्टी हो जाती है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #SwamiApurvanandGiri

स्वर्ण का मृग (हिरण) न तो किसी के द्वारा निर्मित हुआ, न पहले कभी देखा गया और न किसी से सुना ही गया। फिर भी श्री रामचन्द्र जी की कामना उसे पाने की हुई। ठीक वैसे ही, विनाश का समय आने पर मनुष्य की बुद्धि उल्टी हो जाती है।

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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" आत्मनो विक्रिया नास्ति बुद्धेर्बोधो न जात्वपि । जीवस्सर्वमलं ज्ञात्वा कर्ता द्रष्टेति मुह्यति ।। २६ ।। भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि आत्मा में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता और बुद्धि में स्वभावतः कोई बोध (चेतना)

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" 

आत्मनो विक्रिया नास्ति बुद्धेर्बोधो न
जात्वपि ।
जीवस्सर्वमलं ज्ञात्वा कर्ता द्रष्टेति
मुह्यति ।। २६ ।।

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि आत्मा में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता और बुद्धि में स्वभावतः कोई बोध (चेतना)
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आपके रास्ते कठिनाइयों से भरे हुए होंगे।अति दुर्गम रास्तों का भी सामना तुम्हें करना पड़ सकता है।लेकिन महापुरुषों का कहना हैं कि कठिन रास्ते चलने के लिए ही बने हैं। इसलिए उठो! जागो! और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर हो, सफलता आपके चरण चूमेगी। Swami Avdheshanand #ApurvanandGiri

आपके रास्ते कठिनाइयों से भरे हुए होंगे।अति दुर्गम रास्तों  का भी सामना तुम्हें करना पड़ सकता है।लेकिन महापुरुषों का कहना हैं कि कठिन रास्ते चलने के लिए ही बने हैं। इसलिए उठो! जागो! और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर हो, सफलता आपके चरण चूमेगी।

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लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा । स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तं अथास्य मृत्युः पुनरेवाह तुष्टः ।। १४ ।। "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली" यमराज ने नचिकेता को लोकादिमग्नि (स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने वाली यज्ञविद्या) का विस्तार से उपदेश किया - कितनी

लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा । 
स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तं अथास्य मृत्युः पुनरेवाह तुष्टः ।। १४ ।।
  "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली"

यमराज ने नचिकेता को लोकादिमग्नि (स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने वाली यज्ञविद्या) का विस्तार से उपदेश किया - कितनी
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"न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति । अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान् ।।" किसी को नहीं पता कि कल क्या होगा इसलिए जो भी कार्य करना है आज ही कर ले यही बुद्धिमान इंसान की निशानी है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #ApurvanandGiri #सुविचार

"न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति ।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान् ।।"

किसी को नहीं पता कि कल क्या होगा इसलिए जो भी कार्य करना है आज ही कर ले यही बुद्धिमान इंसान की निशानी है।

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"उत्तमे तु क्षणे कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम् । अधमे स्यादहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तिक:।।" उत्तम मनुष्य का क्रोध क्षणभर का ही होता है, मध्यम मनुष्य का क्रोध दो घड़ी, अधम का क्रोध एक दिन और रात तथा अतिनीच मनुष्य का क्रोध जीवन भर चलता है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #सुविचार

"उत्तमे तु क्षणे कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम् ।
अधमे स्यादहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तिक:।।"

उत्तम मनुष्य का क्रोध क्षणभर का ही होता है, मध्यम मनुष्य का क्रोध दो घड़ी, अधम का क्रोध एक दिन और रात तथा अतिनीच मनुष्य का क्रोध जीवन भर चलता है।

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बसंत ऋतु का क्या दोष है, यदि बाँस पर पत्ते नहीं आते? सूर्य का क्या दोष, यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता? बादलों का क्या दोष, यदि बारिश की बूँदें चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती? उसे कोई कैसे बदल सकता है, जो किसी के मूल में है। Swami Avdheshanand #SwamiApurvanandGiri #सुविचार

बसंत ऋतु का क्या दोष है, यदि बाँस पर पत्ते नहीं आते? सूर्य का क्या दोष, यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता? बादलों का क्या दोष, यदि बारिश की बूँदें चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती? उसे कोई कैसे बदल सकता है, जो किसी के मूल में है।

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विद्वाँश्चिनुते नाचिकेतम् । स मृत्युपाशान् पुरतः प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके ।।१७ ।। "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली" जो विद्वान् नचिकेता अग्नि को विधिपूर्वक स्थापित करता है, वह मृत्यु के पाशों को दूर भगा देता है। शोक और दुःख से परे होकर वह स्वर्गलोक में

विद्वाँश्चिनुते नाचिकेतम् । 
स मृत्युपाशान् पुरतः प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके ।।१७ ।।
 "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली"

जो विद्वान् नचिकेता अग्नि को विधिपूर्वक स्थापित करता है, वह मृत्यु के पाशों को दूर भगा देता है। शोक और दुःख से परे होकर वह स्वर्गलोक में
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जो विश्व के हित में लगे रहते हैं, बहुत से रूप धारण करते हैं, उन भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ। जो संसार के रक्षक तथा सत् और असत् के निर्माता हैं, उन विश्वपति को मैं नमस्कार करता हूँ। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #SwamiApurvanandGiri #विश्वनाथ

जो विश्व के हित में लगे रहते हैं, बहुत से रूप धारण करते हैं, उन भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ। जो संसार के रक्षक तथा सत् और असत् के निर्माता हैं, उन विश्वपति को मैं नमस्कार करता हूँ।

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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" आविद्यकं शरीरादि दृश्यं बुद्बुदवत्क्षरम् । एतद्विलक्षणं विद्यादहं ब्रह्मेति निर्मलम् ।।३१।। भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि शरीर आदि समस्त दृश्य जगत् अविद्या-जन्य है और क्षणभंगुर है, जैसे - जल में बुलबुले। इन्हें

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:"

आविद्यकं शरीरादि दृश्यं बुद्बुदवत्क्षरम् ।
एतद्विलक्षणं विद्यादहं ब्रह्मेति निर्मलम् ।।३१।।  

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि शरीर आदि समस्त दृश्य जगत् अविद्या-जन्य है और क्षणभंगुर है, जैसे - जल में बुलबुले। इन्हें
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"सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यादपि हितं वदेत् । यद्भूतहितमत्यन्तं एतत् सत्यं मतं मम् ।।" यद्यपि सत्य वचन बोलना श्रेयस्कर है तथापि उस सत्य को ही बोलना चाहिए, जिससे सर्वजन का कल्याण हो। देवर्षि नारद जी के विचार से तो जो बात सभी का कल्याण करती है, वही सत्य है। Swami Avdheshanand #सुविचार

"सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यादपि हितं वदेत् । 
यद्भूतहितमत्यन्तं एतत् सत्यं मतं मम् ।।"

यद्यपि सत्य वचन बोलना श्रेयस्कर है तथापि उस सत्य को ही बोलना चाहिए, जिससे सर्वजन का कल्याण हो। देवर्षि नारद जी के विचार से तो जो बात सभी का कल्याण करती है, वही सत्य है।

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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" देहान्यत्वान्न मे जन्मजराकार्श्यलयादयः। शब्दादिविषयैस्सङ्गो निरिन्द्रियतया न च ॥३२॥ भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न है, इसलिए उसमें जन्म, जरा (वृद्धावस्था), क्षीणता और लय (मृत्यु) जैसे गुण

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:"

देहान्यत्वान्न मे जन्मजराकार्श्यलयादयः।
शब्दादिविषयैस्सङ्गो निरिन्द्रियतया न च ॥३२॥

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य कहते हैं कि आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न है, इसलिए उसमें जन्म, जरा (वृद्धावस्था), क्षीणता और लय (मृत्यु) जैसे गुण
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जिस प्रकार फूल में खुशबू होती है। तिल में तेल पाया जाता है। लकड़ी में अग्नि होती है। दूध में घी छुपा रहता है। गन्ने में गुड होता है। उसी प्रकार यदि हम ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा के सदृश अनेक गुण छुपे रहते हैं। उन गुणों की पहचान करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ होता है।

जिस प्रकार फूल में खुशबू होती है। तिल में तेल पाया जाता है। लकड़ी में अग्नि होती है। दूध में घी छुपा रहता है। गन्ने में गुड होता है। उसी प्रकार यदि हम ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा के सदृश अनेक गुण छुपे रहते हैं। उन गुणों की पहचान करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ होता है।
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"मध्विव मन्यते बालो यावत् पापं न पच्यते। यदा च पच्यते पापं दु:खं चाथ निगच्छति ।।" जब तक पाप सम्पूर्ण रूप से फलित नही होता, तब तक वह पाप कर्म मधुर लगता है। परन्तु पूर्णत: फलित होने के पश्चात् मनुष्य को उसके कटु परिणाम सहन करने ही पड़ते हैं। Swami Avdheshanand #SwamiApurvanandGiri

"मध्विव मन्यते बालो यावत् पापं न पच्यते।
यदा च पच्यते पापं दु:खं चाथ निगच्छति ।।"

जब तक पाप सम्पूर्ण रूप से फलित नही होता, तब तक वह पाप कर्म मधुर लगता है। परन्तु पूर्णत: फलित होने के पश्चात् मनुष्य को उसके कटु परिणाम सहन करने ही पड़ते हैं।

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"प्रेम एव हि सतां धर्मः प्रेम एव परं तपः। प्रेममूलानि सर्वाणि श्रेयांसि विविधानि च॥" - (महाभारत – शान्तिपर्व) श्रेष्ठ जनों का धर्म प्रेम ही है, और प्रेम ही परम तपस्या है। सकल कल्याण की जड़ भी प्रेम ही है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #SwamiApurvanandGiri #सुविचार

"प्रेम एव हि सतां धर्मः प्रेम एव परं तपः।
प्रेममूलानि सर्वाणि श्रेयांसि विविधानि च॥"
  - (महाभारत – शान्तिपर्व)

श्रेष्ठ जनों का धर्म प्रेम ही है, और प्रेम ही परम तपस्या है।
सकल कल्याण की जड़ भी प्रेम ही है।

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"धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात् प्रभवते सुखम् । धर्मेण लभते सर्वं धर्मसारमिदं जगत् ।।" धर्म से अर्थ प्राप्त होता है, धर्म से सुख का उदय होता है और धर्म से ही मनुष्य सब कुछ पा लेता है। इस संसार में धर्म ही सार है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #swamiapurvanandgiri #सुविचार

"धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात् प्रभवते सुखम् ।
धर्मेण लभते सर्वं धर्मसारमिदं जगत् ।।" 

धर्म से अर्थ प्राप्त होता है, धर्म से सुख का उदय होता है और धर्म से ही मनुष्य सब कुछ पा लेता है। इस संसार में धर्म ही सार है।

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जिसका हृदय विशाल है, जिसके मन में सभी के लिए दया भाव है, जिसकी वाणी और आचरण सत्य से भरा हुआ है, और जिसका शरीर दूसरों के हित के लिए है, यानि जो मनुष्य- समाज क्षेत्र और राष्ट्र को परिवार मानता है, कलियुग उसका क्या बिगाड़ सकता है? अर्थात् उसका अहित हो ही नही सकता ! Swami Avdheshanand

जिसका हृदय विशाल है, जिसके मन में सभी के लिए दया भाव है, जिसकी वाणी और आचरण सत्य से भरा हुआ है, और जिसका शरीर दूसरों के हित के लिए है, यानि जो मनुष्य- समाज क्षेत्र और राष्ट्र को परिवार मानता है, कलियुग उसका क्या बिगाड़ सकता है? अर्थात् उसका अहित हो ही नही सकता !

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स्वर्ण का मृग (हिरण) न तो किसी के द्वारा निर्मित हुआ, न पहले कभी देखा गया और न किसी से सुना ही गया। फिर भी श्री रामचन्द्र जी की कामना उसे पाने की हुई। ठीक वैसे ही, विनाश का समय आने पर मनुष्य की बुद्धि उल्टी हो जाती है। Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #SwamiApurvanandGiri

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