॥अयोध्या काण्ड॥
क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ।
चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि न जाइ॥
भावार्थ-फिर क्रोध में भरकर रावण ने सीताजी को रथ पर बैठा लिया और वह बड़ी उतावली के साथ आकाश मार्ग से चला, किन्तु डर के मारे उससे रथ हाँका नहीं जाता था॥
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॥अयोध्या काण्ड॥
सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥
भावार्थ- (वह बोला-) हे पुत्री! भय मत कर। मैं इस राक्षस का नाश करूँगा। (यह कहकर) वह क्रोध में भरकर ऐसे दौड़ा, जैसे पर्वत की ओर वज्र छूटता हो॥
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“व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब प्रचलित हो जाएगी, राष्ट्र तब सच्चे अर्थों में सामर्थ्यवान बन जाएगा”
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येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल।।
भाई -बहन के अटूट प्रेम तथा विश्वास को समर्पित रक्षाबंधन के पावन पर्व की शुभकामनाएँ, इस अवसर पर मातृ शक्ति के सम्मान के साथ -साथ राष्ट्र, संस्कृति व पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लें।
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