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राहुल देव Rahul Dev

@rahuldev2

पत्रकार। भारतीय भाषाओं का संवर्धन। सम्यक् न्यास। Journalist, Indian languages activist. Samyak Foundation. Blog: [email protected]

ID:69544220

calendar_today28-08-2009 08:59:54

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वैसे तो आप सभ्य समाज में बैठने लायक़ भी नहीं हैं फिर भी जवाब दिया है। मुझमें हर मानवीय दुर्गुण-दुर्बलता किसी न किसी अंश में विद्यमान है। Hypocrisy भी। खुश? नमस्कार।

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दुनिया क्या अपना देश-समाज भी बहुत बड़ा है। किसी के लिए भी सबको, सब कुछ देख पाना संभव नहीं। दुनिया को देखने के साथ-साथ ख़ुद को और अपनी निगाह, पूर्वग्रहों, पूर्वमान्यताओं को जाँचते परखते रहना भी अनिवार्य है। पूर्व-निष्कर्ष हीन होकर ही यथार्थ को देखा जा सकता है।

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ख़ूब मिलते हैं। मैं बुद्धिजीवी हूँ या नहीं इस प्रश्न को छोड़कर मेरी कई पहचानों में मेरा भारतीय होना, हिंदू होना, पुरुष-पति-पिता-पत्रकार-नागरिक आदि होना भी शामिल है। सांस्कृतिक संस्कारों में पूरा हिंदू हूँ। और हर पहचान-भेद-रूप-भूमिका-संस्कार से परे एक चिन्मय सार्वभौम तत्व भी हूँ।

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अच्छी बात उठाई आपने। सच्चे बुद्धिजीवी के लिए सहमति-असहमति स्थायी भाव नहीं हो सकते। उसके बौद्धिक निर्णयों-स्थापनाओं में गत्यात्मकता नहीं है तो वह जड़ है जीवन्त नहीं। विषय-परिस्थिति-प्रसंग-संदर्भ-परिप्रेक्ष्य जब निरंतर बदल रहे हैं तो बुद्धिजीवी का मत-भूमिका स्थिर नहीं हो सकते।

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हिलाल मेरे बहुत प्यारे-सम्मानित मित्र और मुस्लिम बुद्धिजीवी हैं। बिलकुल ठीक बोल रहे हैं। भारत में वामपंथी बौद्धिक-अकादमिक प्रभाव ने यह विकृति पैदा की। इसीलिए आज वे प्रभावशून्यता की ओर बढ़ रहे हैं। सम्यक् मार्ग वाम-दक्षिण ध्रुवों के बीच है। उस स्वर्णिम मध्य को हमें खोजना होगा।

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हम सब यदि तत्वतः उस परम सत्ता के अंश, या वह संपूर्ण सत्ता ही हैं जैसा भारतीय प्रज्ञा मानती है तो हम सबके भीतर उच्चतम विकास की क्षमता भी अंतर्निहित है। उसका उत्तरोत्तर जागरण ही मनुष्य के रूप में आगे-ऊपर बढ़ना है। हम किसी के पीछे चलने वाली भेड़ बकरियाँ नहीं मनन-सक्षम मानव हैं।

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अपनी नज़र विकसित करने का अर्थ है अपने ऊपर पड़े मनोवैज्ञानिक-पारिवारिक-सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक-बौद्धिक प्रभावों को तटस्थ दृष्टि से देखने की क्षमता विकसित करना। और तब स्वतंत्र अध्ययन-मनन और अन्तरात्मा से उत्पन्न विवेक से निर्णय लेना। यह क्रमिक सतत प्रकिया है। अनुगामिता बंधन है।

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कितनी ख़ूबसूरत बात भेजी आपने…धन्यवाद।
काश हर नागरिक हर व्यक्ति हर काम और निर्णय के लिए अपनी नज़र विकसित करे और तब कदम उठाए। यही लोकतंत्र का दार्शनिक आधार है।

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अमित(@boringusernayme) 's Twitter Profile Photo

राहुल देव Rahul Dev इन लोगो ने सभ्य लोगो का सोशल मिडीया पर रहना भारी कर दिया है।इनके मतानुसार नही लिखने पर ये लोग सीधे गाली से बात करते है।शरीफ आदमियों की मुसीबत है कि वे सुअर से लड़ने के लिए कीचड़ में नही उतर सकते।

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प्रशंसकों की भाषा से भी प्रशंसित के चरित्र का अंदाज़ा लगता है। 🙂

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Sheeetalpsingh(@Sheeetalps) 's Twitter Profile Photo

राहुल देव Rahul Dev दुनियां भर की तानाशाहियों का एक लक्षण यह भी है कि मीडिया का बहुमत शासक का चापलूस/चुगलखोर बन जाता है!

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Dr. Vishnu Rajgadia(@VishnuRajgadia) 's Twitter Profile Photo

राहुल देव Rahul Dev मीडिया को अलग से कोई संवैधानिक ताकत नहीं मिली है। नागरिकों को मिले वाक और अभिव्यक्ति के अधिकार का ही मर्यादित ढंग से उपयोग करके लंबी अवधि में मीडिया ने अपनी साख बनाई। यही पूंजी है। इसे खोना आत्मघात है। टीवी न्यूज की लाश सड़ांध मारने भी लगी है। प्रिंट खुद को बचा ले, तो बेहतर होगा।

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बिलकुल, विनीत। आलोचकों को तो कभी किसी भी पार्टी, प्रमं-मुमं, सरकार ने पसंद नहीं किया लेकिन आज की तरह उन्हें राष्ट्रविरोधी नहीं कहा गया, प्रताड़ित नहीं किया गया, आपातस्थिति को छोड़ कर। हम एक अभूतपूर्व और हिंसक असहिष्णुता के दौर में हैं।

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बिलकुल। हर सत्ता के प्रति रुख़ की बात की है कहीं की भी और किसी भी पार्टी की सत्ता हो। केंद्र और राज्य दोनों की सत्ता का चरित्र कमोबेश एक जैसा ही रहता है।

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पत्रकारिता में बारीकियाँ बहुत हैं लेकिन किसी पत्रकार की परख की एक सरल कसौटी है तत्कालीन सत्ता के प्रति उसका रुख़-व्यवहार। सत्ता से सटकर चलना और विपक्ष पर बरसना पत्रकारिता नहीं। जो अधिकांशतः यही करते हैं उन्हें प्रवक्ता-पत्रकार ही कहा जा सकता है। आजकल उनकी बाढ़ आई हुई है।

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सांप्रदायिकता का इस्तेमाल लगभग हर बड़ी पार्टी ने किया है। लेकिन सांप्रदायिकता को ही आधार और प्रधान विचारधारा किसने बनाया है सब जानते हैं। लोकप्रियता सही होने का प्रमाण नहीं यह सच है। अतिशयोक्ति-बड़बोलापन बेमतलब हैं, ऐसा करने वालों की विश्वसनीयता घटाते हैं। इनका कोई बचाव नहीं।

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ठीक है। हो सकता है मेरी निगाह से न गुजरे हों। ढूँढता हूँ। आप मदद कर दें तो बहुत अच्छा। आपने किया होगा तो अभिनन्दन करूँगा। मेरा ध्रुव मेरी अन्तरात्मा और विवेक हैं, कोई बाहरी नहीं। जब ये लोग ग़लत करेंगे तो इनका भी विरोध करूँगा।

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आशा करता हूँ अमन चोपड़ा-देवगन-गोस्वामी-चौधरी-भारती जैसे दर्जनों दंडित-अदंडित पत्रकारों के सोच-समझ कर, दर्शकों के दिलोदिमाग़ में घृणा फैलाने के लिए ज़हरीले आख्यानों -नैरेटिव का भी आपने ऐसा ही प्रखर विरोध किया होगा। उनकी नीयत-दृष्टि-पत्रकारिता पर राय?

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