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@minuminukhan314

जब जैसे ज़िन्दगी मिली जला दी हमने, अब धुएँ पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी..📖

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calendar_today11-03-2015 16:25:13

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जन्म से हर बच्चा मुसलमान ही होता है, बाद में उसके माँ-बाप चाहे उसे यहूदी बना लें, चाहे इसाई, चाहे मजूसी।

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जिसने ये भ्रम फैलाया है कि खाते समय पानी ज्यादा या फिर नहीं पीना चाहिए अव्वल दर्जे का MC है

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अब कभी शाम बुझेगी न अँधेरा होगा अब कभी रात ढलेगी न सवेरा होगा आसमाँ आस लिए है कि ये जादू टूटे चुप की ज़ंजीर कटे, वक़्त का दामन छूटे कलाम-ए- फ़ैज़ ♥️

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ऐसा नहीं कि मैं कोई गुमनाम शख़्स हूँ सब जानते हैं मुझ को मैं इक आम शख़्स हूँ

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ये जितने भी ज़ालिम शहर हैं। ज़ालिम? हाँ, में तमाम बड़े शहरों को ज़ालिम कहता हूँ। उनमें आदमी ज़्यादा दिन रह जाये तो इन्सान नहीं रहता, जज़ीरा बन जाता है, जिस्म का जज़ीरा। दूसरों से कटा हुआ। अपने बदन का, अपनी ख़्वाहिशों का क़ैदी। दूसरों से उसकी रूह का मुकालमा ख़त्म होजाता है।

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मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर मैं आज अपनी ज़ात से घबरा के पी गया

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कोई सूरत नज़र नहीं आती ‘हाय कम्बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया’

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लोग पिए बग़ैर सच बोलने लगे हैं वर्ना हक़ीक़त ये है कि सच ख़ुद अपनी तरफ से कही जाने वाली चीज़ नहीं है। ये कहलवाई जाने वाली चीज़ है

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तू मुझे ढूँड मैं तुझे ढूँडूँ कोई हम में से रह गया है कहीं

तू    मुझे   ढूँड   मैं    तुझे    ढूँडूँ
कोई हम में से रह गया है कहीं
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“जुआरी दांव लगाता है और इच्छा करता है कि तीन और छक्का आए, मगर आते हैं तीन और एक। घोड़े के लिए घास का मैदान सड़क से बेहतर है, लेकिन बेचारे के हाथ में अपनी लगाम नहीं होती।”