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Dr. Sudhanshu Trivedi (@sudhanshutrived) 's Twitter Profile Photo

श्रीराम मंदिर के शिखर पर स्थापित धर्म ध्वजा संपूर्ण समाज राष्ट्र व विश्व के लिये एक प्रेरणा है। जहाँ तक इसके भगवा रंग पर यदि किसी को आपत्ति है तो भगवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज में सबसे ऊपर स्थापित रंग है। हरा रंग हरियाली का प्रतीक है, यह एक सामान्य सार्वभौमिक तथ्य है; सफेद रंग

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भारतीय रेल की नई रिज़र्वेशन प्रणाली के चलते लाखों सामान्य यात्रियों को कन्फर्म टिकट पाना बेहद मुश्किल हो गया है। 1–2 वेटिंग नंबर तक भी टिकट कन्फर्म नहीं होता, जिससे आम लोगों की यात्रा योजनाएँ बिखर जाती हैं। ऊपर से निजी ऐप जैसे Ixigo प्रति यात्री ₹800 अतिरिक्त लेकर “कन्फर्म

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हमारे मन के तीन हिस्से हैं। पहला हिस्सा: जिस पर थोड़ी रोशनी पड़ती है, वह है कांशस माइंड,चेतन मन। दूसरा हिस्सा: जो उसके नीचे दबा है, वह है सब-कांशस माइंड, अर्द्ध-चेतन मन। और तीसरा हिस्स: जो सबसे नीचे छिपा है, वह है अनकांशस माइंड, अचेतन मन। पहले हिस्से में थोड़ी चेतना

हमारे मन के तीन हिस्से हैं। 

पहला हिस्सा: 
जिस पर थोड़ी रोशनी पड़ती है, वह है कांशस माइंड,चेतन मन। 

दूसरा हिस्सा: 
जो उसके नीचे दबा है, वह है सब-कांशस माइंड, 
अर्द्ध-चेतन मन। 

और तीसरा हिस्स: 
जो सबसे नीचे छिपा है, वह है अनकांशस माइंड, अचेतन मन। 

पहले हिस्से में थोड़ी चेतना
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ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक! धीरे-धीरे।                            जिस निर्जन में सागर लहरी,                         अम्बर के कानों में गहरी,                     निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-                    तज कोलाहल की अवनी रे। Piyush Joshi #Unity #विकास 🇮🇳 अपराजिता 🇮🇳सुदामा💕 #बड़ा_वाला🪷 अंतरा

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समग्रता से जीना क्या है? "किसी बात को केवल बुद्धि से समझने का कोई खास मतलब नहीं होता। वह समझ हमारे अंदर उतरनी चाहिए, हमारे खून में, हमारी नस-नस में। और उसीसे आता है एक समग्र एहसास, मस्तिष्क की अलग ही प्रकार की गुणवत्ता जो कि समग्र है, विखंडित नहीं है। खंड ही अव्यवस्था उत्पन्न

समग्रता से जीना क्या है?

"किसी बात को केवल बुद्धि से समझने का कोई खास मतलब नहीं होता। वह समझ हमारे अंदर उतरनी चाहिए, हमारे खून में, हमारी नस-नस में। और उसीसे आता है एक समग्र एहसास, मस्तिष्क की अलग ही प्रकार की गुणवत्ता जो कि समग्र है, विखंडित नहीं है। खंड ही अव्यवस्था उत्पन्न
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जापान में एक फकीर था बोकोजू। वह लोगों को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाता था। और वह यह कहता था कि वृक्षों पर चढ़ने की कला के साथ ही मैं जागने की कला भी सिखाता हूं। अब फकीर को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाने से कोई प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन उस फकीर ने बड़ी समझ की बात खोजी थी कि जागना

जापान में एक फकीर था बोकोजू। वह लोगों को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाता था। और वह यह कहता था कि वृक्षों पर चढ़ने की कला के साथ ही मैं जागने की कला भी सिखाता हूं।
अब फकीर को वृक्षों पर चढ़ने की कला सिखाने से कोई प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन उस फकीर ने बड़ी समझ की बात खोजी थी कि जागना
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कुछ ही दिन पहले मैंने एक फ़िल्म देखी—एक बहुत सुंदर फ़िल्म—एक यहूदी परिवार पर, एक बहुत ही रूढ़िवादी हसिद परिवार पर। यहूदी समुदाय हसिदों को आज भी अपने बराबर नहीं मानता; वे समाज में लगभग उपेक्षित हैं। हसिद आज तक इसराइल नामक राष्ट्र को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि उनका कहना है: “इसराइल

कुछ ही दिन पहले मैंने एक फ़िल्म देखी—एक बहुत सुंदर फ़िल्म—एक यहूदी परिवार पर, एक बहुत ही रूढ़िवादी हसिद परिवार पर। यहूदी समुदाय हसिदों को आज भी अपने बराबर नहीं मानता; वे समाज में लगभग उपेक्षित हैं। हसिद आज तक इसराइल नामक राष्ट्र को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि उनका कहना है:
“इसराइल
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#रमण महर्षि अपने साधकों को कहते थे : एक ही प्रश्न पर्याप्त है, पूछो “मैं कौन हूं! मैं कौन हूं! पूछते रहो सतत। जब भी सुविधा मिले, बैठकर शांति से पूछ लेते रहो। मैं कौन हूं! मैं कौन हूं! रमण को जो लोग पढ़ते हैं, उनको भी बड़ी भ्रांति रहती है। वे सोचते हैं, ऐसा पूछने से पता चल जाएगा

#रमण महर्षि अपने साधकों को कहते थे : एक ही प्रश्न पर्याप्त है, पूछो “मैं कौन हूं! मैं कौन हूं! पूछते रहो सतत। जब भी सुविधा मिले, बैठकर शांति से पूछ लेते रहो। मैं कौन हूं! मैं कौन हूं!

रमण को जो लोग पढ़ते हैं, उनको भी बड़ी भ्रांति रहती है। वे सोचते हैं, ऐसा पूछने से पता चल जाएगा
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*गीता–दर्शन–भाग–6* *परमात्‍मा का प्रिय कौन* मौत भी ज्ञानी को घटित होती है। फर्क मौत में नहीं पड़ता, फर्क ज्ञानी में पड़ता है। आपको भी मौत आती है, ज्ञानी को भी मौत आती है। आपको जब मौत आती है, तो आप भयभीत होते हैं। ज्ञानी को जब मौत आती है, तो भयभीत नहीं होता। फर्क मौत में नहीं

*गीता–दर्शन–भाग–6*
*परमात्‍मा का प्रिय कौन*

मौत भी ज्ञानी को घटित होती है। फर्क मौत में नहीं पड़ता, फर्क ज्ञानी में पड़ता है। आपको भी मौत आती है, ज्ञानी को भी मौत आती है। आपको जब मौत आती है, तो आप भयभीत होते हैं। ज्ञानी को जब मौत आती है, तो भयभीत नहीं होता। फर्क मौत में नहीं
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ध्यानी का अर्थ हैः मन भी ठहरे, तन भी ठहरे। बस ठहराव आ जाए। यह झील चेतना की बिल्कुल निस्तरंग हो जाए। उस निस्तरंग चित्त में परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं जाना जाता है। परमात्मा वस्तु की तरह नहीं जाना जाता, ज्ञेय की तरह नहीं जाना जाता है। परमात्मा तो ज्ञाता की तरह जाना

ध्यानी का अर्थ हैः 
मन भी ठहरे, 
तन भी ठहरे। 
बस ठहराव आ जाए। 
यह झील चेतना की बिल्कुल निस्तरंग हो जाए। 

उस निस्तरंग चित्त में परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं जाना जाता है।

परमात्मा वस्तु की तरह नहीं जाना जाता, 
ज्ञेय की तरह नहीं जाना जाता है।
परमात्मा तो ज्ञाता की तरह जाना
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All life is relationship -with others, with nature, with the universe and with the little flower in the field. Jiddu Krishnamurti Context: As long as we are caught in the illusion of individuality, however close our relationship with another, however intimate, however personal

All life is relationship -with others, with nature, with the universe and with the little flower in the field. 

Jiddu Krishnamurti

Context: As long as we are caught in the illusion of individuality, however close our relationship with another, however intimate, however personal
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राहुल जी Rahul Gandhi स्तर देखिये अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता का!!

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धार्मिक व्यक्ति भय से प्रभावित नहीं होता, न लोभ से आंदोलित होता है। धार्मिक व्यक्ति तो सत्य की तलाश में होता है। और उस तलाश के लिए कोई दूसरी प्रक्रिया है। उस तलाश के लिए ऊपर—ऊपर से थोपने का कोई उपाय नहीं है, न कोई लाभ है। उस तलाश के लिए भीतर उतरने की जरूरत है। आप जिस दिन अपने

धार्मिक व्यक्ति भय से प्रभावित नहीं होता, न लोभ से आंदोलित होता है। धार्मिक व्यक्ति तो सत्य की तलाश में होता है। और उस तलाश के लिए कोई दूसरी प्रक्रिया है। उस तलाश के लिए ऊपर—ऊपर से थोपने का कोई उपाय नहीं है, न कोई लाभ है। उस तलाश के लिए भीतर उतरने की जरूरत है। आप जिस दिन अपने
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"मेरा प्रयास यहाँ आपको ज़ोरबा द बुद्धा बनने में मदद करना है। अकेला ज़ोरबा दरिद्र है, वह ज़मीन से जुड़ा है, वह आनंद ले रहा है लेकिन वह शाश्वत से अनभिज्ञ है। वह बस एक क्षणिक घटना है। बुद्ध शाश्वत हैं, लेकिन वह क्षण को पूरी तरह से अनदेखा कर रहे हैं; वह इस दुनिया के फूलों, सुंदरता और

"मेरा प्रयास यहाँ आपको ज़ोरबा द बुद्धा बनने में मदद करना है। अकेला ज़ोरबा दरिद्र है, वह ज़मीन से जुड़ा है, वह आनंद ले रहा है लेकिन वह शाश्वत से अनभिज्ञ है। वह बस एक क्षणिक घटना है। बुद्ध शाश्वत हैं, लेकिन वह क्षण को पूरी तरह से अनदेखा कर रहे हैं; वह इस दुनिया के फूलों, सुंदरता और
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प्रेम हो, कि प्रार्थना हो, कि ध्यान हो, सभी उस अदृश्य की खोज हैं, जो सभी दृश्य के भीतर छिपा हुआ है। और जब तक व्यक्ति उसे खोजने नहीं चल पड़ा है, तब तक वह क्षेत्र के जगत में कितना ही इकट्ठा कर ले, दरिद्र ही रहेगा। और कितने ही बड़े महल बना ले, और कितनी ही बड़ी सख्त दीवालें सुरक्षा

प्रेम हो, कि प्रार्थना हो, कि ध्यान हो, सभी उस अदृश्य की खोज हैं, जो सभी दृश्य के भीतर छिपा हुआ है। और जब तक व्यक्ति उसे खोजने नहीं चल पड़ा है, तब तक वह क्षेत्र के जगत में कितना ही इकट्ठा कर ले, दरिद्र ही रहेगा। और कितने ही बड़े महल बना ले, और कितनी ही बड़ी सख्त दीवालें सुरक्षा
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जब दो परिपक्व और समझदार व्यक्तियों के बीच प्रेम होता है तो जीवन का सबसे बड़ा विरोधाभास घटता है, एक बहुत ही सुंदर घटना घटती है -- दोनों साथ-साथ होते हैं, लेकिन अपरिसीम रूप से अकेले। वे एक साथ होते हैं इतने गहरे जुड़े हुए कि वे लगभग एक हो जाते हैं। उनकी एकता से उनका निजी

जब दो परिपक्व और समझदार व्यक्तियों के बीच प्रेम होता है तो जीवन का सबसे बड़ा विरोधाभास घटता है, एक बहुत ही सुंदर घटना घटती है -- दोनों साथ-साथ होते हैं, लेकिन अपरिसीम रूप से अकेले। 

वे एक साथ होते हैं इतने गहरे जुड़े हुए कि वे लगभग एक हो जाते हैं। उनकी एकता से उनका निजी