#WhoIsKaal_InBhagavadGita
पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु अध्याय 11 श्लोक 32 में कह रहा है कि 'अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।'
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गीता वाला काल कौन?
काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं स्थूल शरीर में व्यक्त(मानव सदृश अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा।
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गीता ज्ञान दाता श्री कृष्ण जी नहीं है क्योंकि श्री कृष्ण जी तो सर्व समक्ष साक्षात् थे। श्री कृष्ण नहीं कहते कि मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ। इसलिए गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी के अन्दर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ने बोला था।
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गीता अध्याय 18 श्लोक 43 में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘‘युद्ध से न भागना’’ आदि-2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं। इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं बोला।
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गीता अध्याय 18 श्लोक 61:-
(गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा बताई है।)
हे अर्जुन ! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया से (उनके कर्मों के अनुसार) भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।
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गीता वाला काल कौन?
काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं स्थूल शरीर में व्यक्त(मानव सदृश अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में
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अर्जुन भयभीत हो गया तथा श्री कृष्ण उस विराट रूप के प्रकाश में ओझल हो गया था। इसलिए पूछ रहा था कि आप कौन हो? क्या अपने साले से भी यह पूछा जाता है कि आप कौन हो? इसलिए गीता का ज्ञान काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके बोला था।
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गीता वाला काल कौन?
गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। भावार्थ है कि काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है। जैसे श्री कृष्ण जी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि मैं महाभारत के युद्ध में किसी को मारने के
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लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिये प्रकट हुआ हूँ। इसलिये जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, तेरे युद्ध न करने से भी इन सबका नाश हो जायेगा। - गीता अध्याय 11 श्लोक 32
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गीता 4:9 में कहा गया है "मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं"।
काल ब्रह्म दूसरों के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है।
श्रीकृष्ण का उपयोग केवल माध्यम के रूप में किया गया।
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गीता अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन काल के विकराल रूप से भयभीत है।
वह कहता है - "हे सहस्रबाहु! अपने चतुर्भुज रूप में आ जाइए।"
👉 क्या अर्जुन श्री कृष्ण को नहीं पहचानते थे?
➡️ गीता ज्ञान कहने वाला काल ब्रह्म है।
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गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि हे अर्जुन मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। भावार्थ है कि काल ब्रह्म अन्य के शरीर में प्रवेश करके कार्य करता है जैसे श्री कृष्ण जी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी
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गीता वाला काल कौन?
गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा’
अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन्! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान पवित्र वेदों के मंत्रों द्वारा उच्चारण कर रहे है
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गौर कीजिए गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में वर्णित बातों को गीता ज्ञान दाता कह रहा हैं "मैं बढ़ा हुआ काल हूँ, अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।"
आखिर #WhoIs_Kaal_InBhagavadGita
हमें Sant RampalJi YT Channel के सत्संग से यह सच्चाई पता चली आप भी जरूर देखें अनमोल सत्संग!🙏🏻
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क्या काल का रूप इतना भयंकर है कि जिसे देखकर अर्जुन जैसा योद्धा भी कांपने लगा।
क्या यही कारण है कि पवित्र गीता जी अध्याय 7 श्लोक 25 के अनुसार काल ने अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा की।
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