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Krishna Kalpit

@krishnakalpit

Hindi poet/writer. Recently: Hindnama.

Former Additional Director General, @DDNational

ID: 2679833871

calendar_today06-07-2014 16:54:35

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सब आदमी बराबर हैं यह बात कही होगी किसी सस्ते शराबघर में एक बदसूरत शराबी ने किसी सुंदर शराबी को देख कर यह कार्ल हेनरिख़ मार्क्स के जन्म के बहुत पहले की बात होगी ! #एक_शराबी_की_सूक्तियाँ ७५. कृककिताब |

सब आदमी बराबर हैं
यह बात कही होगी
किसी सस्ते शराबघर में
एक बदसूरत शराबी ने
किसी सुंदर शराबी को देख कर 

यह कार्ल हेनरिख़ मार्क्स के जन्म के
बहुत पहले की बात होगी !

#एक_शराबी_की_सूक्तियाँ ७५.                      कृककिताब |
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1.अभी-अभी ख़त्म हुईहै लड़ाई अभी आरहे हैं सरहद से जवान लड़कोंके शव अभी बुझे नही हैं अँगारे मसानों के एकबकरी कल के दाह-संस्कार की राख कुरेद रही है! 2.लड़ाई खत्म हो जाती है रसद चुक जाती है सिपाही मर जाते हैं सरकारें बदल जाती हैं उसके बादभी बुद्धिजीवी लड़तेरहते हैं युद्ध #कृष्णकल्पित

1.अभी-अभी
ख़त्म हुईहै लड़ाई
अभी आरहे हैं सरहद से
जवान लड़कोंके शव
अभी बुझे नही हैं
अँगारे मसानों के
एकबकरी कल के
दाह-संस्कार की
राख कुरेद रही है!
2.लड़ाई खत्म हो जाती है
रसद चुक जाती है
सिपाही मर जाते हैं
सरकारें बदल जाती हैं
उसके बादभी
बुद्धिजीवी लड़तेरहते हैं युद्ध
#कृष्णकल्पित
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गिड़गिड़ाने से कुछ नहीं हासिल बात बेबाक बची है, भंते ! #बुद्ध_पूर्णिमा १. उड़ रही ख़ाक बची है, भंते बुद्ध की राख बची है, भंते ! #बुद्ध_की_राख १. #कृष्ण_कल्पित✍️ #बुद्ध_पूर्णिमा #बुद्ध_जयंती

गिड़गिड़ाने से कुछ नहीं हासिल
बात बेबाक बची है, भंते !

#बुद्ध_पूर्णिमा १.

उड़ रही ख़ाक बची है, भंते
बुद्ध की राख बची है, भंते !

#बुद्ध_की_राख १.

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#बुद्ध_पूर्णिमा #बुद्ध_जयंती
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बात क्या बनाएँ अब एक बात थी बनी नहीं एक किताब जो छपी नही एक लुग़ात जो बँधी नहीं झुकता नहीं है सिर मेरा उस एक दर को छोड़कर  कुछ भी कहे ज़माना पर एक अदा है ये कमी नहीं शर्म-ओ-हया को बेचकर मक़बूलियत ख़रीद ला  कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं ("बाग़-ए-बेदिल":से) #कृष्ण_कल्पित✍️

बात क्या बनाएँ अब एक बात थी बनी नहीं
एक किताब जो छपी नही एक लुग़ात जो बँधी नहीं

झुकता नहीं है सिर मेरा उस एक दर को छोड़कर 
कुछ भी कहे ज़माना पर एक अदा है ये कमी नहीं

शर्म-ओ-हया को बेचकर मक़बूलियत ख़रीद ला 
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं

("बाग़-ए-बेदिल":से)
#कृष्ण_कल्पित✍️
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ख़ुशी चाहे नहीं पर ग़म नहीं है यहाँ तक आ गये ये कम नहीं है मोहब्बत दोस्ती और भाईचारा रवायत है मगर क़ायम नहीं है तुम्हारे देस में सब कुछ है लेकिन वहाँ पर प्यार का मौसम नहीं है! #कृक_शाइरी ३३ फ़कीरों की तलाशी ले रहे हो ये कासा है हमारा बम नहीं है! ~कृष्ण कल्पित #Mohabbat #Shair

ख़ुशी चाहे नहीं पर ग़म नहीं है
यहाँ तक आ गये ये कम नहीं है

मोहब्बत दोस्ती और भाईचारा
रवायत है मगर क़ायम नहीं है

तुम्हारे देस में सब कुछ है लेकिन
वहाँ पर प्यार का मौसम नहीं है!

#कृक_शाइरी ३३
फ़कीरों की तलाशी ले रहे हो
ये कासा है हमारा बम नहीं है!

~कृष्ण कल्पित
#Mohabbat #Shair
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कृति आलोचक से नहीं कृति से आलोचक बनता है! पाखी के मई २०२५ अंक में आप मेरा स्थाई-स्तंभ कल्पित कथन पढ़ सकते हैं | • कवि और कर्म •आलोचक की प्रतीक्षा • भारतलक्ष्मी • सोमरस और भंग के पियाले • रॉयल्टी पर रार • धर्मवीर की याद #कल्पित_कथन २०.

कृति आलोचक से नहीं कृति से आलोचक बनता है!

पाखी के मई २०२५ अंक में आप मेरा स्थाई-स्तंभ कल्पित कथन पढ़ सकते हैं |

• कवि और कर्म
•आलोचक की प्रतीक्षा
• भारतलक्ष्मी
• सोमरस और भंग के पियाले
• रॉयल्टी पर रार
• धर्मवीर की याद

#कल्पित_कथन २०.
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सांय सांय ओ सांय ज़िंदगी हाय हाय ओ हाय ज़िंदगी आओ सुबह-सुबह पी लें हम गरम गरम सी चाय ज़िंदगी बिना टिकट चढ़ गई ट्रेन में कहकर मुझको बॉय ज़िंदगी कम ठहरोगे कम बिल होगा ये तो एक सराय ज़िंदगी किसकी हिम्मत है जो बांधे बिना दूध की गाय ज़िन्दगी ! #चाय_दिवस १.

सांय सांय ओ सांय ज़िंदगी 
हाय हाय ओ हाय ज़िंदगी 

आओ सुबह-सुबह पी लें हम
गरम गरम सी चाय ज़िंदगी 

बिना टिकट चढ़ गई ट्रेन में
कहकर मुझको बॉय ज़िंदगी 

कम ठहरोगे कम बिल होगा
ये तो एक सराय ज़िंदगी 

किसकी हिम्मत है जो बांधे 
बिना दूध की गाय ज़िन्दगी !

#चाय_दिवस १.
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सांय सांय ओ सांय ज़िंदगी हाय हाय ओ हाय ज़िंदगी आओ सुबह-सुबह पी लें हम गरम गरम सी चाय ज़िंदगी बिना टिकट चढ़ गई ट्रेन में कहकर मुझको बॉय ज़िंदगी कम ठहरोगे कम बिल होगा ये तो एक सराय ज़िंदगी किसकी हिम्मत है जो बांधे बिना दूध की गाय ज़िन्दगी ! #कृष्ण_कल्पित✍️ #चाय_दिवस १.

सांय सांय ओ सांय ज़िंदगी 
हाय हाय ओ हाय ज़िंदगी 

आओ सुबह-सुबह पी लें हम
गरम गरम सी चाय ज़िंदगी 

बिना टिकट चढ़ गई ट्रेन में
कहकर मुझको बॉय ज़िंदगी 

कम ठहरोगे कम बिल होगा
ये तो एक सराय ज़िंदगी 

किसकी हिम्मत है जो बांधे 
बिना दूध की गाय ज़िन्दगी !

#कृष्ण_कल्पित✍️
#चाय_दिवस १.
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दास्तां दर्द भरी सबको सुनाई मेरी जिस मुसव्विर ने भी तस्वीर बनाई मेरी! ~ कृक शुक्रिया चित्रकार मित्र Miten Lapsiya.

दास्तां दर्द भरी सबको सुनाई मेरी
जिस मुसव्विर ने भी तस्वीर बनाई मेरी!

~ कृक

शुक्रिया चित्रकार मित्र Miten Lapsiya.
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Thank you to friends, family, loved ones for loving me despite, and sometimes because of, all my moods (that these two pictures from my childhood encapsulate fully).

Thank you to friends, family, loved ones for loving me despite, and sometimes because of, all my moods (that these two pictures from my childhood encapsulate fully).
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#एक_मुठ्ठी_धूल बनाना तो धूल बनाना कोई रत्न नहीं रत्नों के लुटेरे घूमते हैं अहर्निश भारत-भूमि पर लुटेरे जब लूट कर भागते हों तो उड़ते हुये उनका पीछा कर सकूँ उनकी आँखों में गिर सकूँ बनाना मुझे मातृभूमि की एक मुट्ठी धूल ! ('रेख़्ते के बीज और अन्य कविताएँ':से) #कृष्ण_कल्पित✍️

#एक_मुठ्ठी_धूल

बनाना तो धूल बनाना
कोई रत्न नहीं

रत्नों के लुटेरे घूमते हैं अहर्निश
भारत-भूमि पर

लुटेरे जब लूट कर भागते हों
तो उड़ते हुये उनका पीछा कर सकूँ
उनकी आँखों में गिर सकूँ

बनाना मुझे मातृभूमि की
एक मुट्ठी धूल !

('रेख़्ते के बीज और अन्य कविताएँ':से)

#कृष्ण_कल्पित✍️
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|| हिंद स्वराज नहीं संसार स्वराज, गांधीवाद नहीं गांधीधर्म || पाखी के जून 2025 के अंक में आप मेरा स्थाई-स्तंभ कल्पित-कथन पढ़ सकते हैं। • मुख्यमंत्री और महादेवी • संसार स्वराज • नंदकिशोर नवल •आख़िरी गांव की आत्मीय गाथा #कल्पित_कथन २१.

|| हिंद स्वराज नहीं संसार स्वराज, गांधीवाद नहीं गांधीधर्म ||

पाखी के जून 2025 के अंक में आप मेरा स्थाई-स्तंभ कल्पित-कथन पढ़ सकते हैं।

• मुख्यमंत्री और महादेवी
• संसार स्वराज
• नंदकिशोर नवल
•आख़िरी गांव की आत्मीय गाथा

#कल्पित_कथन २१.
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सत्य मिलाओ झूठ में,और झूठ में साँच पत्रकारिता हो गयी,नग्न-नरों का नाच ।।१।। मालिक मोटे हो रहे,सम्पादक लाचार कचरा-पेटी हो गये,हिन्दी के अख़बार ।।२।। ~कृष्ण कल्पित ✍️ #दोहा #अख़बार #राष्ट्रीय_प्रेस_दिवस #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस

सत्य मिलाओ झूठ में,और झूठ में साँच
पत्रकारिता हो गयी,नग्न-नरों का नाच ।।१।।

मालिक मोटे हो रहे,सम्पादक लाचार
कचरा-पेटी हो गये,हिन्दी के अख़बार ।।२।।

~कृष्ण कल्पित ✍️
#दोहा #अख़बार 
#राष्ट्रीय_प्रेस_दिवस 
#हिंदी_पत्रकारिता_दिवस
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कवियों का क्या भरोसा ! कृष्ण कल्पित की कविताओं की नई किताब संभावना प्रकाशन, हापुड़ से शीघ्र प्रकाश्य | #कवियों_का_क्या_भरोसा १.

कवियों का क्या भरोसा !

कृष्ण कल्पित की कविताओं की नई किताब संभावना प्रकाशन, हापुड़ से शीघ्र प्रकाश्य |

#कवियों_का_क्या_भरोसा १.
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जंगल सुनता रहा रात भर सारी रात कही कटते हुए पेड़ ने मुझसे सारी बात कही ! ~कृष्ण कल्पित✍️ #विश्व_पर्यावरण_दिवस १. #विश्वपर्यावरणदिवस #WorldEnvironmentDay (चित्रकार : Awdhesh Bajpai)

जंगल सुनता रहा रात भर
सारी रात कही
कटते हुए पेड़ ने मुझसे
सारी बात कही !

~कृष्ण कल्पित✍️

#विश्व_पर्यावरण_दिवस १.
#विश्वपर्यावरणदिवस
#WorldEnvironmentDay
(चित्रकार : Awdhesh Bajpai)