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calendar_today13-12-2020 17:44:04

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या तो मैं मूक रहूं या फिर दो टूक कहूं * एकांत से अच्छा कोई साथी नहीं मौन से सशक्त कोई संवाद नहीं! * सियाह रात के लिफ़ाफ़े में रखा मैने एक खामोश रिश्ता, और कोरे कागज़ पर टांक दी दो बोलती आंखे। ~दिव्या शुक्ला ✍️ कृतियां:बिसरी हुई तिथियों के पन्ने, ये पन्ने सारे मेरे अपने #जन्मदिन

या तो मैं मूक रहूं
या फिर दो टूक कहूं
*
एकांत से अच्छा कोई साथी नहीं
मौन से सशक्त कोई संवाद नहीं!
*
सियाह रात के लिफ़ाफ़े में रखा 
मैने एक खामोश रिश्ता,
और कोरे कागज़ पर टांक दी
दो बोलती आंखे।

~दिव्या शुक्ला ✍️
कृतियां:बिसरी हुई तिथियों के पन्ने,
ये पन्ने सारे मेरे अपने #जन्मदिन
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औरतें केवल देह नहीं होतीं इसी देह में एक कोख होती है जो तुम सबका पहला घर है । * थाम कर मेरी हथेली वो कुछ खोजता सा रह गया वक़्त कुछ ऐसा रुका कि बस रुका सा रह गया.! * लिपट के रो आई जब से मेरे मायके का बूढा पीपल बहुत उदास है.! ~दिव्या शुक्ला✍️ कवि,कहानीकार:संप्रति स्वतंत्र लेखन

औरतें केवल देह नहीं होतीं
इसी देह में एक कोख होती है 
जो तुम सबका पहला घर है ।
*
थाम कर मेरी हथेली 
वो कुछ खोजता सा रह गया 
वक़्त कुछ ऐसा रुका 
कि बस रुका सा रह गया.!
*
लिपट के रो आई जब से
मेरे मायके का बूढा
पीपल बहुत उदास है.!

~दिव्या शुक्ला✍️
कवि,कहानीकार:संप्रति स्वतंत्र लेखन
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अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं व्यस्त है नई-नई पोशाकें छाँटने में मेरी कविता इन दिनों ~निर्मला गर्ग✍️ लोकधर्मी कवि,लेखक,संपादक:कृतियां: यह हरा गलीचा,कबाड़ी का तराजू ,सफ़र के लिए रसद,दिसम्बर का महीना मुझे आख़िरी नहीं लगता। #जन्मदिन

अन्न और रोज़गार का
ज़िक्र उसे नहीं भाता
समता और न्याय गए
दिनों की बातें हो गईं
व्यस्त है नई-नई
पोशाकें छाँटने में
मेरी कविता इन दिनों

~निर्मला गर्ग✍️

लोकधर्मी कवि,लेखक,संपादक:कृतियां:
यह हरा गलीचा,कबाड़ी का तराजू ,सफ़र
के लिए रसद,दिसम्बर का महीना मुझे
आख़िरी नहीं लगता। #जन्मदिन
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मैं अपनी सबसे अच्छी कविता काग़ज़ पर नहीं, लिखूँगी-पत्ते पर पेड़ प्रकाशक से ज़्यादा उदार ज़्यादा समझदार होता है। * कहीं पढ़ा था- एक-एक अनुभव लाख का इस तरह कविता मे हमने अरबों का निवेश किया। ~निर्मला गर्ग संग्रह'यह हरा गलीचा';'कबाड़ी का तराजू'(हिन्दीअकादमी,दिल्ली से कृति पुरस्कार)

मैं अपनी सबसे
अच्छी कविता
काग़ज़ पर नहीं,
लिखूँगी-पत्ते पर
पेड़ प्रकाशक से
ज़्यादा उदार ज़्यादा
समझदार होता है।
*
कहीं पढ़ा था-
एक-एक अनुभव लाख का
इस तरह कविता मे हमने
अरबों का निवेश किया।

~निर्मला गर्ग
संग्रह'यह हरा गलीचा';'कबाड़ी का
तराजू'(हिन्दीअकादमी,दिल्ली से
कृति पुरस्कार)
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सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही..! ~अब्दुल हमीद अदम

सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही..!

~अब्दुल हमीद अदम
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जाना पड़ता है कभी-कभी रिश्तेदारों के इसरार पर भी कल ही गयी थी बहन के साथ हनुमान जी थे एक हाथ मे गदा उठाये एक में पर्वत साष्टाँग लेटकर गुहार लगायी हे हनुमान जी! ज़रा चौकस रहें लड्डू ही न खातेरह जायें तीसरेविश्वयुद्ध की सम्भावना बनतीरहती है यह सनकी तानाशाहों का समय है #निर्मला_गर्ग

जाना पड़ता है कभी-कभी
रिश्तेदारों के इसरार पर भी
कल ही गयी थी बहन के साथ
हनुमान जी थे एक हाथ मे गदा
उठाये एक में पर्वत साष्टाँग लेटकर
गुहार लगायी हे हनुमान जी!
ज़रा चौकस रहें लड्डू ही न खातेरह जायें
तीसरेविश्वयुद्ध की सम्भावना बनतीरहती है
यह सनकी तानाशाहों का समय है
#निर्मला_गर्ग
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कहाँ रहता हूँ क्याहै नाम ख़ुद ही भूल जाता हूँ ज़माना सोचता है मै उसे पागल बनाता हूँ हम अपने काम मे माहिर है दोनों,करके रहते हैं वो वादे तोड़ देता है मै तारे तोड़ लाता हूँ किसी दिन कर भी जाऊंगा जो ग़ज़लों मे कहा मैने तुम्हें लगता है शायर हूँ मैं बस बातें बनाता हूँ #वरुन_आनन्द↕️

कहाँ रहता हूँ क्याहै नाम ख़ुद ही भूल जाता हूँ
ज़माना सोचता है मै उसे पागल बनाता हूँ

हम अपने काम मे माहिर है दोनों,करके रहते हैं
वो वादे तोड़ देता है मै तारे तोड़ लाता हूँ

किसी दिन कर भी जाऊंगा जो ग़ज़लों मे कहा मैने
तुम्हें लगता है शायर हूँ मैं बस बातें बनाता हूँ

#वरुन_आनन्द↕️
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इश्क़ की आज इंतिहा कर दो रूह को जिस्म से जुदा कर दो * करोगे ज़ुल्म कब तक मशवरा है बाज़ आ जाओ बहुत पछताओगे तुम ज़ुल्म की गर इंतिहा होगी * मैं अपने आप का सब से बड़ा मुख़ालिफ़ हूँ मिरी ही तरह का इक शख़्स और है मुझ में ~फ़ैसल फेहमी✍️ शायरी मे सादा लम्हों को खास बनाने वाले युवा शायर।

इश्क़ की आज इंतिहा कर दो
रूह को जिस्म से जुदा कर दो
*
करोगे ज़ुल्म कब तक मशवरा है बाज़ आ जाओ
बहुत पछताओगे तुम ज़ुल्म की गर इंतिहा होगी
*
मैं अपने आप का सब से बड़ा मुख़ालिफ़ हूँ
मिरी ही तरह का इक शख़्स और है मुझ में

~फ़ैसल फेहमी✍️
शायरी मे सादा लम्हों को खास
बनाने वाले युवा शायर।
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बहुत कम समय में आपको कहीं जाना हो तो कहाँ जाएँगे आप? दफ़्तर या गाँव? वह पुल सुबह की सायरन की आवाज के साथ टूट जाएगा अक्सर टूट जाता है/ छूट जाता हूँ मैं नींद के इस पार सचमुच कितना असंभव है उस पार जाना रोज़ नींद में एक पुल बनाना! #संजय_कुमार_सिंह✍️ चर्चित लेखक,कवि

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जितना हम मौन में सुलगते है, भीतर ही भीतर ज्यादा धधकते है..! गर लिख पाए मौन की भाषा तो हर शब्द में अंगार दिखेंगे..!! ~निशा अनोखी Nisha ‘अनोखी’ 🪶 ✍️

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वयस में आठ साल छोटा वह प्रेयस अपनी प्रेमिका की देह पर हर कहीं अंकित हो जाने के बाद भी उसके मन में अपनी उपस्थिति को लेकर संशय में है वह मरुभूमि में पानी की फ़सल बोना चाहता है.. ~रश्मि भारद्वाज✍️ सुपरिचित कवि,लेखक,अनुवादक,ब्लॉगर, स्तंभकार,स्क्रीन प्ले राइटर

वयस में आठ साल छोटा वह प्रेयस
अपनी प्रेमिका की देह पर
हर कहीं अंकित हो जाने के बाद भी

उसके मन में अपनी उपस्थिति
को लेकर संशय में है

वह मरुभूमि में
पानी की फ़सल बोना चाहता है..

~रश्मि भारद्वाज✍️

सुपरिचित कवि,लेखक,अनुवादक,ब्लॉगर,
स्तंभकार,स्क्रीन प्ले राइटर
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नई तहज़ीब है,बाज़ार खुलने पे ये तय होगा किसे वो भूल जाते हैं,किसे अपना बनाते हैं मुहब्बत एक धोखा है,उसे अब कौन समझाए न क़समें हैं,न वादे हैं,न रिश्ते हैं,न नाते हैं #मधुप_मोहता Madhup Mohta

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बिना कुछ सोचे-समझे उसने तीव्रता से अपनी कविताओं को खुद में समेट कर सचेत हो गई ("मनरँगना"काव्यसंग्रह से) #नंदा_पाण्डेय✍️ सुपरिचित :"मनरंगना","बस कह देना कि आऊंगा" फेम कवि Nanda Pandey जी को #स्पेनिन_साहित्य_गौरव_सम्मान (2023) की प्राप्ति हेतु हार्दिक बधाई व शुभकामना 💐 #Kavya_Ras

बिना कुछ सोचे-समझे
उसने तीव्रता से अपनी
कविताओं को खुद में
समेट कर सचेत हो गई

("मनरँगना"काव्यसंग्रह से)
#नंदा_पाण्डेय✍️
सुपरिचित :"मनरंगना","बस कह देना
कि आऊंगा" फेम कवि <a href="/write_nanda/">Nanda Pandey</a>
जी को #स्पेनिन_साहित्य_गौरव_सम्मान
(2023) की प्राप्ति हेतु हार्दिक बधाई व
शुभकामना 💐 #Kavya_Ras
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किसी भी शख़्स से सुकून की तवक़्क़ो' हम क्यूँ रखें सफ़र की शर्त है,अकेले ही धुंद से बाहर निकलना है * Kisi bhi shaqs se sukoon ki tavaqqo hum kyun rakhen Safar ki shart hai,akele hi dhund se baahar nikalna hai #FaridoonShahryar @ifaridoon

किसी भी शख़्स से सुकून की
तवक़्क़ो' हम क्यूँ रखें
सफ़र की शर्त है,अकेले ही
धुंद से बाहर निकलना है
*
Kisi bhi shaqs se sukoon ki tavaqqo hum kyun rakhen
Safar ki shart hai,akele hi dhund se baahar nikalna hai
 
#FaridoonShahryar
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दूर रहकर मुझसे वोह मेरी उम्र की दुआ मांगे ऐसी बेचारगी से जिंदगी को बचा ले मालिक! #शिशिर_सोमवंशी Shishir Som #Maalik #Shair

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क्या ज़माना रहबरी मेरी करेगा अब राहे - मंज़िल को बख़ूबी मैं समझती हूँ ~ मोनिका सिंह Monika Singh

क्या ज़माना रहबरी मेरी करेगा अब
राहे - मंज़िल को बख़ूबी मैं समझती हूँ

~ मोनिका सिंह
<a href="/monikasinghpoet/">Monika Singh</a>
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•क्रय शक्ति• दुनिया के सबसे अमीर आदमी की क्रय शक्ति की भी एक अधिकतम सीमा होती है जिसके बाद कोई फ़र्क नहीं रह जाता उसमें और मुझमे एक सीमा के बाद वह ख़रीद नहीं सकता एक समय का राशन तक यह जानकर,मुझे पर्याप्त लगा अपनी जेब में पड़ा सौ रुपए का नोट। ('नूह की नाव':से) #देवेश_पथसरिया

•क्रय शक्ति•

दुनिया के सबसे अमीर आदमी की
क्रय शक्ति की भी
एक अधिकतम सीमा होती है
जिसके बाद कोई फ़र्क नहीं रह जाता
उसमें और मुझमे

एक सीमा के बाद वह ख़रीद नहीं सकता
एक समय का राशन तक
यह जानकर,मुझे पर्याप्त लगा
अपनी जेब में पड़ा सौ रुपए का नोट।

('नूह की नाव':से)
#देवेश_पथसरिया
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वह बात जो विदा के समय एक अनाम दृष्टि कह गयी, वह बात अंत तक मेरी चेतना में फँसी रह गयी! जैसे माला के धागे में कोई गाँठ पड़ जाये, उँगली जब भी फिरे, मनका वहीं अड़ जाये; जैसे कोई तितली हिम-शिला के बीच जम गयी हो, जैसे कोई पायल की झंकार पास आते-आते थम गयी हो; #गुलाब_खंडेलवाल

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मैं बचा रखूंँगी प्रेम प्रेम चुके जाने के बाद। * "स्त्री का शिलान्यास हो जाना स्त्री का हतभाग्य नही ये सृष्टि का प्रतिशोध है समस्त प्रकृति का विराग है" * ("अंजुरी में उजास":काव्य संग्रह: तीव्रता से बदलते परिवेश,संस्कार, सरोकार,मूक संत्रास को जुबां देती कविताएं) #निधि_सक्सेना✍️

मैं बचा रखूंँगी प्रेम 
प्रेम चुके जाने के बाद।
*
"स्त्री का शिलान्यास हो जाना
स्त्री का हतभाग्य नही
ये सृष्टि का प्रतिशोध है
समस्त प्रकृति का विराग है"
*
("अंजुरी में उजास":काव्य संग्रह:
तीव्रता से बदलते परिवेश,संस्कार,
सरोकार,मूक संत्रास को जुबां देती
कविताएं)

#निधि_सक्सेना✍️
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•पूर्णता• पेड़ों में पत्ते आते हैं थोड़ा-थोड़ा करके बारिश भी थोड़ा-थोड़ा करके आती है सर्दी भी थोड़ा-थोड़ा करके आती है शहद भी थोड़ा-थोड़ा करके आता है अपने छत्ते में घर भी खड़ा होता है थोड़ा-थोड़ा करके नाव भी बनती है थोड़ा-थोड़ा करके @#शहंशाह_आलम↕️ (पोस्टर:अखिलेश्वर पांडे)

•पूर्णता•

पेड़ों में पत्ते आते हैं
थोड़ा-थोड़ा करके
बारिश भी थोड़ा-थोड़ा
करके आती है
सर्दी भी थोड़ा-थोड़ा
करके आती है
शहद भी थोड़ा-थोड़ा
करके आता है अपने छत्ते में

घर भी खड़ा होता है
थोड़ा-थोड़ा करके
नाव भी बनती है
थोड़ा-थोड़ा करके

@#शहंशाह_आलम↕️
(पोस्टर:अखिलेश्वर पांडे)