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Vijay

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समाज। साहित्य | सिनेमा | समाचार
NIT ALLAHABAD

ID: 1433271079

calendar_today16-05-2013 14:42:44

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नदियाँ इसलिए भी बहती हैं, कि जो प्यासा है, उसे भी सींच सकें। बादल इसलिए भी बरसते हैं, कि जो हो वीराने में, उसे भी खिला सकें। सुनो, प्रकृति किसी को अकेला नहीं छोड़ती यह उसके स्वभाव के विरुद्ध है। 💐💐💐 -विजय ✍️ #poet #poetry #poem #poetrylover #nature

नदियाँ इसलिए भी बहती हैं,
कि जो प्यासा है,
उसे भी सींच सकें।

बादल इसलिए भी बरसते हैं,
कि जो हो वीराने में,
उसे भी खिला सकें।

सुनो,
प्रकृति किसी को अकेला नहीं छोड़ती
यह उसके स्वभाव के विरुद्ध है। 💐💐💐

-विजय ✍️

#poet #poetry #poem #poetrylover
#nature
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The idea that India is a Vishwaguru should be questioned. People who believe this may lack critical thinking or may have been misled by sarkaari agencies. 🤔 #planecrash #AirForce #airforcejet

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जब दूर से पहाड़ की चोटी दिखती है, लगता है मंज़िल बस कुछ कदमों पर है, लेकिन रास्ते घुमावदार होते हैं और सफर लंबा। ठीक वैसे ही ज़िंदगी भी उतार-चढ़ाव से भरी है, पर जब साथ जुनून और कोई अपना हो तो सफर भी यादगार लगने लगता है। #poetry #poem #life #love

जब दूर से पहाड़ की चोटी दिखती है, लगता है मंज़िल बस कुछ कदमों पर है, लेकिन रास्ते घुमावदार होते हैं और सफर लंबा।
ठीक वैसे ही ज़िंदगी भी उतार-चढ़ाव से भरी है, पर जब साथ जुनून और कोई अपना हो तो सफर भी यादगार लगने लगता है।
#poetry #poem #life #love
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इंसान कोई पहाड़ नहीं, जो खड़ा रहे उम्र भर इंतज़ार में। वो एक नदी की तरह हैं जो तय करती है मीलों का सफर मज़िल तक पहुँचने के लिए। -विजय ✍️ #poem #kavita #poetrylovers #poetrycommunity

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पुल पार करने से पुल पार होता है नदी पार नहीं होती नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना नदी में धँसे बिना पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता नदी में धँसे बिना पुल पार करने से पुल पार नहीं होता सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है - नरेश सक्सेना✍️

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जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है ~जौन एलिया

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विपरीत दिशाओं में जाने को मजबूर दो लोग, जब विदा के उस आख़िरी पल में आंसुओं की धुंध से एक-दूजे को मुड़कर देखते हैं, तो उस एक नज़र में हज़ारों अनकहे जज़्बात, अधूरी बातों की गूंज और एक अपनापन और जज़्बात महसूस होता है। -सौरभ सिंह✍️ @saurabh_s28

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बिछड़े तो यूँ लगा था कि मर जाएँगे मगर, दोनों दिमाग़ वाले थे दोनों ही बच गए। ~ज्ञानेन्द्र पाठक✍️

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कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ~ दुष्यंत कुमार ✍️

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए

~ दुष्यंत कुमार ✍️
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क़ैद थी तुम मेरी गैलरी में मैंनें सारी तस्वीरें मिटा कर तुम्हें आज़ाद कर दिया। प्यार करता 'हूँ' बहुत लिखे थे कई मैसेज प्यार करता 'था' बहुत लिखकर सब कुछ झुठला दिया। यही सच है मेरा मैं अब वो नहीं जो मिला था तुम्हें इस ‘विजय’ ने उस ‘विजय’ को कब का जला कर ख़ाक कर दिया। ~विजय ✍️

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फासला बढ़ा लिया तुमने, मैंने दीवार पक्की कर ली, जरा सी गलतफहमी ने देखो, कितनी तरक्की कर ली । ~गुलज़ार ✍️

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जिस तरह हर पीली चीज़ सोना नहीं होती, वैसे ही हर कमाने वाली फ़िल्म अच्छी नहीं होती #Saiyaara Tried to be Rockstar and Aashiqui 2, but no match for these movies.😄

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A #SBI clerk may not believe in reaching the office on time, but when it comes to lunch hour, they are very punctual and health conscious. They never delay it. State Bank of India

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SSC की अनियमितताएं तो बस बानगी मात्र हैं। असली तस्वीर तो देश के तंत्र की दीवारों में छुपी भ्रष्टाचार की दीमक है UPPCS आयोग 150 प्रश्न भी ठीक से नहीं बना पाता और यह तमाशा सिर्फ इसलिए रचता है कि अपने लोगों को किसी भी तरह सिस्टम में घुसाया जा सके। #SSC_System_Sudharo #UPPCS

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तुम नहीं चाहोगी, तो क्या कोई दिल के द्वार नहीं खोलेगा? तुम नहीं आओगी, तो क्या यह दूरी तय नहीं हो पाएगी? और अगर तुम पाषाण की तरह खड़ी रहोगी, तो क्या कोई पुष्प नहीं खिलेगा? भावनाएँ बहने के लिए बनी हैं, वे किसी एक की इच्छा से नहीं रुकतीं। ~ विजय ✍️

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राजनीति से दूरी बनाकर हम उसके असर से नहीं बच सकते, क्योंकि जीवन की मूलभूत सुविधाएँ राजनीति से तय होती है। इसमें भाग न लेने का अर्थ है अपना जीवन दूसरों को सौंप देना। फिर चुने लोग मनमानी करते हैं चाहे लोकतंत्र को बेचकर हो या हमारे स्वास्थ्य का व्यापार करके। खुरपेंच

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किसी के लिए आजादी विदेशी शासन से मुक्ति है, तो किसी के लिए गरीबी या भेदभाव से। सच्ची आज़ादी मतलब जब प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर, सम्मान और गौरव का अधिकार मिले जिसके लिए अभी वर्षों का सफर बाकी है। #स्वतंत्रता_दिवस