जब नानक जी ने कबीर परमेश्वर को धाणक जुलाहे के रूप में देखा, तो कहा: "अंधुला, नीच, परदेशी मेरा—संगत में नानक रहता है, मूढ़ा क्यों पाए।" परमेश्वर हर रूप में हैं, किसी जाति या रूप में बंधे नहीं।
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एक बार श्री नानक जी ने कबीर परमात्मा की परीक्षा लेनी चाही। कहा मैं दरिया में छिपुंगा और आप ढ़ूंढ़ना।नानक जी ने बेई नदी में में डुबकी लगाई तथा मछली बन गए। जिंदा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर श्री नानक जी बना दिया।
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