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Mahaguru Shri Kritakritacharya Ji Maharaj

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Peethadheeshwar, Ek Sattva Ashram, Nagpur | Narayana Upasaka | Shri Harsu Brahm Ji Maharaj Sevak | Tantra | Upasana | Yoga | Astrology | Katha | Life Coach

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Devi says the dwellers of Bhu Loka shouldn't waste any food. Not even a single grain, as any wasted food is used by the Asuras of nimna loka (all the keet patang and small jeevas who live below ground come from patal) - and brings daridrata to a human being. Also its not

Devi says the dwellers of Bhu Loka shouldn't waste any food. Not even a single grain, as any wasted food is used by the Asuras of nimna loka (all the keet patang and small jeevas who live below ground come from patal) - and brings daridrata to a human being. 

Also its not
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If a jeeva of bhu loka works in any way for the Asuras, he is guaranteed to become a daridra - being at worst place from where he started before he got submitted to asuri cause. So it's important to see what practice whether cultural or not, does Asura Poshan, and humans should

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वैभव लक्ष्मी और लक्ष्मी देवी दोनों ही मणिद्वीप निवासिनी देवी महालक्ष्मी की सेविका होती हैं। वैभव लक्ष्मी को भू देवी, भुवनेश्वरी, अलक्ष्मी कहा जाता है। भू लोक का चरित्र सम होने के कारण उसका वरण हर लोक के जीव कर सकते हैं, इसलिए वह शिव लोक के गणों के साथ भी रहती है, वैकुंठ के

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हर देव कार्य में एक प्लान B रहता है। क्योंकि प्रारब्ध तय रहता है। यदि असुरों, या मनुष्यों के कुसंस्कार के कारण पुरुषार्थ में गलती होती है तो फिर प्लान B से प्रारब्ध और सृष्टि का चक्र सिद्ध होता है।

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इस समय शिव जी के ही नीचे यात्रा में होने के कारण काली देवी डाकिनी लोक में हैं। इसलिए सात्विक रूप से दक्षिणाचार से उनकी सेवा इस जन्म में नहीं की जा सकती है। शिव जी के भू लोक पर आकर काली देवी के सिद्ध होने के पश्चात ही सभी शिव गण अपने लोक वापस जा पाएंगे। इसलिए बाबा भी ब्रह्म

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हमारे यहां महाकाली देवी हैं जो भगवान कल्कि अवतार में सिद्ध किए हैं

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भक्ति, ज्ञान मार्ग में कुण्डलिनी जागरण नहीं होता है, और योग मार्ग के कुण्डलिनी जागरण में ईष्ट नहीं होता है, इसलिए किसी देवता से संपर्क होना मात्र वहम होता है। देवता प्राप्त होते हैं केवल structuted उपासना से, नाम जप, मनमाना आचरण, मनगढ़ंत विधियां, सांप्रदायिक विधियों आदि से कोई

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देवताओं के मुख्य गण अधिकतर देवता के नाम से होने वाले अवतारों में ही पूजित होते हैं। जो गौण गण होते हैं वह उन्हीं अवतारों के आस पास अपने ईष्ट या लोक बंधुओं की सेवा में रहते हैं।

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वैदिक मार्ग देवता की परा कृपा प्राप्ति के लिए नहीं होते हैं। देवता देवी की परा कृपा के लिए उनकी अपना अस्तित्व छोड़कर उपासना साधना करना ही एक मार्ग होता है। तो यह लोग सब केवल मनगढ़ंत बातें करते हैं। सही है इस उद्देश्य से कि लोगों में देवताओं के प्रति जिज्ञासा पैदा करते है,

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भगवान सदाशिव भी नील वर्ण ही होते हैं। भोलेनाथ शिव गौरांग हैं।

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जो साधारण जीव होते हैं वह साधन उपासना कर ईष्ट मोक्ष में स्थित होते हैं। उन्हें देवता का अनुभव दिलाने के लिए शक्तिपात दीक्षा की जरूरत होती है। क्योंकि गुरु बल से जो अनुभव वह प्राप्त कर सकेंगे, वही उनके लिए अंतिम होता है। जो स्वयं गण हैं, देवता हैं, उनके चक्रों को पारलौकिक

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दीक्षा प्राप्त होना, शक्तिपात दीक्षा प्राप्त होना, साधना प्राप्त होना, शक्ति प्राप्त होना और सान्निध्य प्राप्त होना, यह गुरु कृपा के 5 स्तर हैं। जीव के पूर्व जन्म के कर्म और पूर्व की साधना निर्धारित करती है कि उसका ईष्ट गुरु गद्दी पर क्या आदेश देता है, उसे क्या प्राप्त होगा।

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देवी के अधीन साधना में 2 नियम है 1. विकार नियंत्रण 2. बीज पर ध्यान देवी कहती हैं इसके अतिरिक्त अन्य किसी नियम को साधन में करने की जरूरत नहीं। केवल विकार नियंत्रण पर साधक ने ध्यान देना है, उसके लिए जो आवश्यक है वह करना चाहिए। प्रतिदिन 6 प्वाइंट लिख कर, अपने द्वारा उस दिन किए

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पहले फेस में कुसंस्कारों की जड़ता से लड़ो - स्वयं में मनुष्यता का विकास करो - वर्ण, जाति, लिंग, भाषा, राष्ट्र आदि भेदों, प्रोपेगंडा से स्वयं को निकालो। साथ में स्वयं में कर्ता भाव का त्याग करिए। सब संभालने वाली देवी है, और वह जैसा करे सब सही, यह मन को समझाना है, फिर धीरे धीरे

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हर जीव का अपना अपना लूप है। जब हम अन्य जीवों से इंटरेक्ट करते हैं तो उनके लूप से स्वयं को जोड़ते हैं। शरीर धारियों के लूप में भूत, वर्तमान और भविष्य होता है। देवताओं के लूप में समय और ब्रह्मांड सब एकाकार होता है। मृत साधारण जीवों के लूप में 1 दिन का भूत होता है जो उनका

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साधना में जो नियम हैं वह जीव के सिद्ध अवस्था, ईष्ट मोक्ष में मृत्यु के बाद स्थित रहने के लिए अनुकूल बनाने के लिए होते हैं 1. कंफर्ट की उसे दरकार न रहे, आदत न रहे इसलिए भूमि शयन करने के लिए कहा जाता है 2. भूख प्यास न रहे और भोग की लालच में आपको कोई सिद्ध न कर ले, या आप स्वयं

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देवी कहती हैं 1. ध्यान करने के लिए बीज पर ईष्टा देवी का ध्यान कम से कम 20 मिनिट, अधिक से अधिक जितना कर सकें 2. पूजने के लिए मात्र शिवलिंग, या श्री यंत्र (अन्य तीस हजार यंत्र भी नहीं, फोटो नहीं, अन्य कुछ नहीं) 3. और दिन भर इस जीवन के लिए भगवान नारायण का धन्यवाद देने के लिए

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हम लोग जो बता सकते हैं शक्ति या साधना के बारे में वह कभी खत्म नहीं होता है और बताना केवल गुरु, शिष्य दोनों के समय की बरबादी होता है। इसलिए शक्ति को नियंत्रित कर बस दे दिया जाता है फिर शिष्यों को अनुभव करना और सीखना चाहिए। अनुभव बताते जाने चाहिए जिससे आप कहां तक पहुंच रहे हैं,

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एक मूर्ख होते हैं शास्त्र लिखने वाले और दूसरे महामूर्ख होते हैं जो दुर्लिखित अज्ञान है, उसे भी न समझकर मूर्खता का प्रसार करने वाले ऐसे कथावाचक इस दूसरी श्रेणी में आते हैं। पहली बात ज्ञानगंज इत्यादि स्वयं योगियों की मनगढ़ंत बनाए, और प्रचारित मूर्खता है, और दूसरी बात वह भी जब