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Ahmed Raza Ansari

@aransari051

A Hungry Stomach An Empty Pocket & Broken Heart Can Tha Teach Best Lessons Of Life..Proud To be A Muslim الحمد الله 🤲

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calendar_today13-04-2020 16:44:20

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मुझको मर जाना है इक दिन मेरी मर्ज़ी के बग़ैर इस कहानी का मुसन्निफ़ नहीं किरदार हूं मैं महशर आफ़रीदी मुसन्निफ़ = लेखक, रचयिता

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सुहागन भी बता देगी मगर तुम पूछो विधवा से ये मंगलसूत्र ज़ेवर के अलावा भी बहुत कुछ है ये क्या इक मक़बरे को आख़री हद मान बैठे हो मोहब्बत संग-ए-मरमर के अलावा भी बहुत कुछ है ज़ुबैर अली ताबिश

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तू चाहता है किसी और को पता न लगे मैं तेरे साथ फिरूं और मुझे हवा न लगे तुझे तो चाहिए है और ऐसा चाहिए है जो तुझसे इश्क़ करे और मुब्तला न लगे हज़ार इश्क़ करो लेकिन इतना ध्यान रहे कि तुमको पहली मुहब्बत की बददुआ न लगे अब्बास ताबिश मुब्तला = व्यस्त, मसरूफ़

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हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है किसी को नींद न आती हो रौशनी में अगर तो ख़ुद चराग़-ए-मोहब्बत बुझाना पड़ता है हमारे पास यही शाइ'री का सिक्का है उलट-पलट के इसी को चलाना पड़ता है फ़रहत एहसास

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हर नई शाम सुहानी तो नहीं होती है और हर 'उम्र जवानी तो नहीं होती है तुम ने एहसान किया था सो जताया तुम ने जो मोहब्बत हो जतानी तो नहीं होती है दिल में जो आग लगी है वो लगी रहने दे यार हर आग बुझानी तो नहीं होती है अजमल सिराज Arif

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Rekhta कोई झंकार है, नग़मा है, सदा है क्या है ? तू किरन है, के कली है, के सबा है, क्या है ? रुह की प्यास बुझा दी है तेरी क़ुरबत ने तू कोई झील है, झरना है, घटा है, क्या है ? नाम होटों पे तेरा आए तो राहत-सी मिले तू तसल्ली है, दिलासा है, दुआ है, क्या है ? नक़्श लायलपुरी

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लगूँगा ख़ुश मगर नाराज़ हूँ मैं ज़माने का नया अंदाज़ हूँ मैं बहुत ख़ुश हूँ तुम्हें ख़ुश देख कर मैं ये ग़म भी है नज़र-अंदाज़ हूँ मैं जिसे मुझ पर यक़ीं बिल्कुल नहीं है इक ऐसे शख़्स का हमराज़ हूँ मैं फ़क़त सुनना नहीं महसूस करना ख़मोशी में छुपी आवाज़ हूँ मैं सय्यद सरोश आसिफ़

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अदाकारी से होती है न आधे मन से होती है मुहब्बत जिसको कहते हैं वो पागल-पन से होती है मुहब्बत कायदे और दायरे को मानती कब है कहीं हो जाए परियों से कहीं जोगन से होती है मुहब्बत के नियम सारे ग़लत हैं और तरीक़े भी सज़ाएँ दिल को मिलती हैं ख़ता नैनन से होती है वरुन आनन्द

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हादसा हो गया अफसोस न होने वाला खुद भी डूबा मेरी कश्ती को डुबोने वाला मैंने बच्चों को लगा रखा है बातों में अभी काश जल्दी से निकल जाये खिलौने वाला कितना महंगा है ये दो चार मिनट का हंसना रोज़ किरदार निभाता हूं मैं रोने वाला हसीब सोज़

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देख लेते हो मोहब्बत से यही काफ़ी है दिल धड़कता है सुहूलत से यही काफ़ी है मुद्दतों से नहीं देखा तिरा जल्वा लेकिन याद आ जाते हो शिद्दत से यही काफ़ी है क्या हुआ हम को मयस्सर जो ज़र-ओ-माल नहीं कट रही है बड़ी 'इज़्ज़त से यही काफ़ी है बद्र मुनीरुद्दीन

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शिद्दत-ए-एहसास-ए-तन्हाई जगाया मत करो मुझ को इतने सारे लोगों से मिलाया मत करो तुम हमारे हौसले की आख़िरी उम्मीद हो तुम हमारे ज़ख़्म पर मरहम लगाया मत करो लोग अफ़्साना बनाते हैं ज़रासी बात का तुम हमारे नामपे नज़रें झुकाया मत करो अबरार काशिफ़ शिद्दत-ए-एहसास-ए-तन्हाई=अत्यंत अकेलापन

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क़तरा अब एहतिजाज करे भी तो क्या मिले दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले हर शख्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ फिर यह भी चाहता है उसे रास्ता मिले रिश्तों को बार बार समझने की आरज़ू कहती है फिर मिले तो कोई बेवफ़ा मिले वसीम बरेलवी एहतिजाज = वाद-विवाद, जिरह, आपत्ति, इंकार

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दिन उतरते ही नई शाम पहन लेता हूँ मैं तिरी यादों का एहराम पहन लेता हूँ मेरे घर वाले भी तकलीफ़ में आ जाते हैं मैं जो कुछ देर को आराम पहन लेता हूँ रात को ओढ़ के सो जाता हूँ दिन-भर की थकन सुब्ह को फिर से कई काम पहन लेता हूँ फ़ैज़ ख़लीलाबादी

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ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है वक़ार ख़ुद नहीं बनता बनाया जाता है हमारी प्यास को ज़ंजीर बाँधी जाती है तुम्हारे वास्ते दरिया बहाया जाता है हमीं तलाश के देते हैं रास्ता सब को हमीं को बा'द में रास्ता दिखाया जाता है वरुन आंनद वक़ार=प्रतिष्ठा, इज्ज़त

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यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है अजब ये ज़िंदगी की क़ैद है दुनिया का हर इंसाँ रिहाई माँगता है और रिहा होने से डरता है राजेश रेड्डी

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बढ़ा न पाया कोई अपनी शान झूट बोलकर मगर वो छू रहा है आसमान झूट बोलकर मैं सच की रौशनी बिखेरने में ही लगा रहा तमाम लोग बन गए महान झूट बोलकर कभी तो सच्ची बात कर कभी तो सच से प्यार कर चली है किस की उम्र भर दुकान झूट बोलकर अज़्म शाकिरी

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अपना किरदार बचाने में लहू लगता है ज़िंदगी तेरे फ़साने में लहू लगता है ये वो दुनिया है जहाँ आने में आसानी है हाँ मगर लौट के जाने में लहू लगता है जिन की रग रग में हो पानी वो मोहब्बत न करें इस मोहब्बत को निभाने में लहू लगता है वरुन आनंद

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फ़क़ीर आइना है पर्दा-ए-ख़्याल नहीं मिरे बदन पे किसी मस्लहत की शाल नहीं ये लोग जीते हैं ख़ुश-फ़हमियों की क़ब्रों में वतन-परस्ती की इस से बड़ी मिसाल नहीं ज़मीन माँ भी है महबूब भी है बेटी भी ज़मीन छोड़ के जाऊँ कोई सवाल नहीं बशीर बद्र पर्दा-ए-ख़्याल=कल्पना का पर्दा मस्लहत=परामर्श

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उस पे पत्थर खाके क्या बीती ज़फ़र देखेगा कौन फल तो सब ले जाएँगे ज़ख़्मे-शजर देखेगा कौन आग तेरी है न मेरी, आग को मत दे हवा राख मेरा घर हुआ तो तेरा घर देखेगा कौन घर में पहुँचूँगा तो सब गठरी टटोलेंगे मेरी आँख में चुभती हुई गर्दे-सफ़र देखेगा कौन ज़फ़र गोरखपुरी शजर =पेड़

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आवारगी ने दिल की अजब काम कर दिया ख़्वाबों को बोझ नींदों को इल्ज़ाम कर दिया कुछ आँसू अपने प्यार की पहचान बन गए कुछ आँसुओं ने प्यार को बद-नाम कर दिया जिस को बचाए रखने में अज्दाद बिक गए हम ने उसी हवेली को नीलाम कर दिया मंसूर उस्मानी अज्दाद=पूर्वज, पुरखे, बाप दादा