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Alka ragini

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विचार एवं चिंतन की अभिव्यक्ति

ID: 1430128768090136584

calendar_today24-08-2021 11:24:23

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🙏ॐ नमो नारायणाय! मेरे गुरुदेव कहते हैं, आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि व्यक्ति तीन अलग-अलग स्तरों पर भावनात्मक उथल-पुथल को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करे। व्यक्ति को भावनात्मक उथल-पुथल की घटनाओं को कम करने, उनकी तीव्रता को नियंत्रित करने और अशांत अवस्था से

🙏ॐ नमो नारायणाय! मेरे गुरुदेव कहते हैं, आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि व्यक्ति तीन अलग-अलग स्तरों पर भावनात्मक उथल-पुथल को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करे। व्यक्ति को भावनात्मक उथल-पुथल की घटनाओं को कम करने, उनकी तीव्रता को नियंत्रित करने और अशांत अवस्था से
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वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। शारदीय नवरात्र केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, वरन् आत्मोन्नति और दिव्य चेतना के जागरण का महापर्व है। यह कालखण्ड साधक को शरीर, मन और आत्मा, तीनों स्तरों पर शुद्धि, संतुलन और जागरण का अवसर प्रदान

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । 
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।

शारदीय नवरात्र केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, वरन् आत्मोन्नति और दिव्य चेतना के जागरण का महापर्व है। यह कालखण्ड साधक को शरीर, मन और आत्मा, तीनों स्तरों पर शुद्धि, संतुलन और जागरण का अवसर प्रदान
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आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते। उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत् ।। ४२।। भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में साधना का अद्भुत रूपक प्रस्तुत करते हैं। जैसे अग्नि उत्पन्न करने के लिए अरणि-मंथन आवश्यक है, वैसे ही आत्मा

आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:"

एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते।
उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत् ।। ४२।।

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में साधना का अद्भुत रूपक प्रस्तुत करते हैं। जैसे अग्नि उत्पन्न करने के लिए अरणि-मंथन आवश्यक है, वैसे ही आत्मा
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साधन पथ अनंत जन्मों की यात्रा है। उसी अनुरूप संसार के मान-सम्मान-मोह-द्वन्द-संशय आदि का प्रभाव रहता है। योगी परमात्मा की शरणागति स्वीकार कर साधन पथ के सजातीय वस्तु-तत्व-भाव का संग कर विजातीय प्रभावों से मुक्त होता है और अनुग्रह रूप में परम् पद को प्राप्त होता है। Swami Avdheshanand

साधन पथ अनंत जन्मों की यात्रा है। उसी अनुरूप संसार के मान-सम्मान-मोह-द्वन्द-संशय आदि का प्रभाव रहता है। योगी परमात्मा की शरणागति स्वीकार कर साधन पथ के सजातीय वस्तु-तत्व-भाव का संग कर विजातीय प्रभावों से मुक्त होता है और अनुग्रह रूप में परम् पद को प्राप्त होता है।

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शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि । अतस्त्वामाराध्यां हरिहरविरिञ्चादिभिरपि प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवति ॥ Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #स्वामी_अवधेशानन्द_गिरि #शारदीय_नवरात्रि #शैलपुत्री

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स त्वं प्रियान्प्रियरूपांश्च कामान् अभिध्यायन्नचिकेतोऽत्यस्राक्षीः । नैतां सृङ्कां वित्तमयीमवाप्तो यस्यां मज्जन्ति बहवो मनुष्याः ।। ३।। "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, द्वितीया वल्ली" यह मन्त्र नचिकेता की महान आध्यात्मिक दृष्टि और वैराग्य का द्योतक है। यमराज ने उसे अनेक भोग–विलास,

स त्वं प्रियान्प्रियरूपांश्च कामान् अभिध्यायन्नचिकेतोऽत्यस्राक्षीः ।
नैतां सृङ्कां वित्तमयीमवाप्तो यस्यां मज्जन्ति बहवो मनुष्याः ।। ३।।
 "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, द्वितीया वल्ली"

यह मन्त्र नचिकेता की महान आध्यात्मिक दृष्टि और वैराग्य का द्योतक है। यमराज ने उसे अनेक भोग–विलास,
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दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु। देवि प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। शारदीय नवरात्र का द्वितीय दिवस “माँ ब्रह्मचारिणी” की आराधना का पर्व है। यह उपासना केवल कर्मकाण्ड नहीं, बल्कि आत्मा को ब्रह्म की ओर अग्रसर करने वाली साधना का रूप है। भगवद्पाद आदि शंकराचार्य के अनुसार

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवि प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

शारदीय नवरात्र का द्वितीय दिवस “माँ ब्रह्मचारिणी” की आराधना का पर्व है। यह उपासना केवल कर्मकाण्ड नहीं, बल्कि आत्मा को ब्रह्म की ओर अग्रसर करने वाली साधना का रूप है।

भगवद्पाद आदि शंकराचार्य के अनुसार
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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" अरुणेनेव बोधेन पूर्वं सन्तमसे हते। तत् आविर्भवेदात्मा स्वयमेवांशुमानिव ।।४३ ।। आचार्य शंकर इस श्लोक में आत्मज्ञान की शक्ति का प्रभाव अत्यन्त सुन्दर उपमा द्वारा स्पष्ट करते हैं। जैसे उषाकाल का अरुणोदय (सूर्योदय की लालिमा) रात्रि

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" 

अरुणेनेव बोधेन पूर्वं सन्तमसे हते।
तत् आविर्भवेदात्मा स्वयमेवांशुमानिव ।।४३ ।।

आचार्य शंकर इस श्लोक में आत्मज्ञान की शक्ति का प्रभाव अत्यन्त सुन्दर उपमा द्वारा स्पष्ट करते हैं। जैसे उषाकाल का अरुणोदय (सूर्योदय की लालिमा) रात्रि
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जीव की साधन यात्रा अनंत जन्मों की है। मन-बुद्धि तथा अहंकार के द्वंद्व-संशय तथा भय निवृत्ति बिना शरणागति के संभव नहीं है। जब योगी हृदयस्थ परमात्मा के अनुग्रह को अनुभव कर और स्वीकार कर शरणागत होता है—अनंत जन्मों की यात्रा को परम् धाम में प्रवेश मिलता है। Swami Avdheshanand #आत्मबोध

जीव की साधन यात्रा अनंत जन्मों की है। मन-बुद्धि तथा अहंकार के द्वंद्व-संशय तथा भय निवृत्ति बिना शरणागति के संभव नहीं है। जब योगी हृदयस्थ परमात्मा के अनुग्रह को अनुभव कर और स्वीकार कर शरणागत होता है—अनंत जन्मों की यात्रा को परम् धाम में प्रवेश मिलता है।

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विनोदमोदमोदिता दयोदयोज्ज्वलान्तरा निशुम्भशुम्भदम्भदारणे सुदारुणाऽरुणा। अखण्डगण्डदण्डमुण्ड- मण्डलीविमण्डिता प्रचण्डचण्डरश्मिरश्मि- राशिशोभिता शिवा। अमन्दनन्दिनन्दिनी धराधरेन्द्रनन्दिनी प्रतीर्णशीर्णतारिणी सदार्यकार्यकारिणी। Swami Avdheshanand #ब्रह्मचारिणी #AvdheshanandG_Mission

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नवरात्रि के तृतीय दिवस की साधना, आत्मा के मौन और अन्तराल की यात्रा है। जब साधक ध्यान में प्रवेश करता है, तब चेतना की गहराइयों में “माँ चन्द्रघण्टा” का तेजोमय स्वरूप प्रकट होता है। सिंह पर आरूढ़, एक ओर शस्त्रों की विकरालता और दूसरी ओर अर्धचन्द्र की शान्त धवल प्रभा। यह द्वन्द्व

नवरात्रि के तृतीय दिवस की साधना, आत्मा के मौन और अन्तराल की यात्रा है। जब साधक ध्यान में प्रवेश करता है, तब चेतना की गहराइयों में “माँ चन्द्रघण्टा” का तेजोमय स्वरूप प्रकट होता है। सिंह पर आरूढ़, एक ओर शस्त्रों की विकरालता और दूसरी ओर अर्धचन्द्र की शान्त धवल प्रभा। यह द्वन्द्व
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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" आत्मा तु सततं प्राप्तोऽप्यप्राप्तवदविद्यया। तन्नाशे प्राप्तवद्भाति स्वकण्ठाभरणं यथा ।।४४।। भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में आत्मा की उपलब्धता और उसके अज्ञानजनित आवरण का रहस्य उद्घाटित करते हैं। आत्मा सदा सर्वत्र, सबके

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:"

आत्मा तु सततं प्राप्तोऽप्यप्राप्तवदविद्यया।
तन्नाशे प्राप्तवद्भाति स्वकण्ठाभरणं यथा
।।४४।।

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में आत्मा की उपलब्धता और उसके अज्ञानजनित आवरण का रहस्य उद्घाटित करते हैं। आत्मा सदा सर्वत्र, सबके
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जीव परमात्मा का सनातन अंश है। साधन पथ के सजातीय वस्तु-तत्व-भाव के प्रवाह से योगी अनंत जन्मों के बाद आत्म-बोध की ओर अग्रसर करता है। प्राप्त ईश्वरीय अनुग्रह को स्वीकार कर तथा भगवत् शरणागति ग्रहण कर मन सहित छ: इन्द्रियों के प्रभाव से मुक्त होकर कृतार्थ होता है। Swami Avdheshanand

जीव परमात्मा का सनातन अंश है। साधन पथ के सजातीय वस्तु-तत्व-भाव के प्रवाह से योगी अनंत जन्मों के बाद आत्म-बोध की ओर अग्रसर करता है। प्राप्त ईश्वरीय अनुग्रह को स्वीकार कर तथा भगवत् शरणागति ग्रहण कर मन सहित छ: इन्द्रियों के प्रभाव से मुक्त होकर कृतार्थ होता है।

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अयिगिरि नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ Swami Avdheshanand #AvdheshanandG_Quotes #चन्द्रघंटा #शारदीय_नवरात्र

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अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितंमन्यमानाः । दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ।।५।। "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, द्वितीया वल्ली" जो लोग अविद्या में ही रमे रहते हैं, वे स्वयं को ‘धीर’ और ‘पण्डित’ मानते हैं। परन्तु वस्तुतः वे अज्ञानी हैं, जो

अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितंमन्यमानाः ।
दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ।।५।।
 "कठोपनिषद् - प्रथम अध्याय, द्वितीया वल्ली"

जो लोग अविद्या में ही रमे रहते हैं, वे स्वयं को ‘धीर’ और ‘पण्डित’ मानते हैं। परन्तु वस्तुतः वे अज्ञानी हैं, जो
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Swami Avdheshanand Acharya Sabha HariharAshram Narendra Modi Amit Shah Ekatma Dham Ladli Foundation - A National Award Winning NGO Kishore Kumar Kaya 🙏ॐ नमो नारायणाय! दण्डवत् गुरुदेव #AvdheshanandG_Quotes #कठोपनिषद् #अद्वैत_वेदान्त #AdvaitVedanta #स्वाध्याय #PrabhuShriKiLekhni #स्वामी_अवधेशानन्द_गिरि

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सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।। शारदीय नवरात्रि के "चतुर्थ दिवस" की अधिष्ठात्री "माँ कूष्माण्डा" वह आदिशक्ति हैं, जिनके दिव्य अनुग्रह और ऊष्मा से ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति हुई। “सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च…” उनके करकमलों

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।।

शारदीय नवरात्रि के "चतुर्थ दिवस" की अधिष्ठात्री "माँ कूष्माण्डा" वह आदिशक्ति हैं, जिनके दिव्य अनुग्रह और ऊष्मा से ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति हुई।
“सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च…”  उनके करकमलों
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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:" स्थाणौ पुरुषवद्भ्रान्त्या कृता ब्रह्मणि जीवता । जीवस्य तात्त्विके रूपे तस्मिन्दृष्टे निवर्तते ।।४५।। भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में अद्वैत सिद्धान्त की मूल भ्रान्ति और उसके निवारण की प्रक्रिया को सरल उपमा से समझाते

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचित:"

स्थाणौ पुरुषवद्भ्रान्त्या कृता ब्रह्मणि
जीवता ।
जीवस्य तात्त्विके रूपे तस्मिन्दृष्टे निवर्तते ।।४५।।

भगवद्पादाचार्य आदि शंकराचार्य इस श्लोक में अद्वैत सिद्धान्त की मूल भ्रान्ति और उसके निवारण की प्रक्रिया को सरल उपमा से समझाते
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जीवन अनेक जन्मों की यात्रा है। उसी अनुरूप मन-चित्त में जन्मों के संस्कार संग्रहित रहते हैं। अनुभूति की एक अवस्था में योगी इन संस्कारों के पूर्ण निवृत्ति हेतु अंततः परमात्मा की शरणागति करता है और अनुग्रह को अनुभव कर तथा स्वीकार कर संशयों से निवृत होता है। Swami Avdheshanand #आत्मबोध

जीवन अनेक जन्मों की यात्रा है। उसी अनुरूप मन-चित्त में जन्मों के संस्कार संग्रहित रहते हैं। अनुभूति की एक अवस्था में योगी इन संस्कारों के पूर्ण निवृत्ति हेतु अंततः परमात्मा की शरणागति करता है और अनुग्रह को अनुभव कर तथा स्वीकार कर संशयों से निवृत होता है।

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अथ श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रम् ॥ ॐ श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्-सिंहासनेश्वरी । चिदग्नि-कुण्ड-सम्भूता देवकार्य-समुद्यता ॥ १॥ उद्यद्भानु-सहस्राभा चतुर्बाहु-समन्विता । रागस्वरूप-पाशाढ्या क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला ॥ २॥ Swami Avdheshanand #माँ_कूष्माण्डा #AvdheshanandG_Quotes