क़िस्मत से लड़ते हुए हम तो बेमेहनी थे,
अधूरी थीं ख्वाहिशें, पर फिर भी खुशियाँ थीं💕
राहों में काँटे थे, फिर भी जो मिले थे फूल,
क़िस्मत ने हमें कभी तो दर्द भी दिए थे🙂
हमने सोचा था क़िस्मत से हर ग़म को लाँघ जाएँ,
मगर क़िस्मत भी कभी-कभी हमें चुनौतियाँ दे गई🌅
ख़्वाबों को पकड़ने
आज के मॉडर्न जमाने की लड़की अपने पिता की गरीबी सहन कर सकती है पर अपने पति की नहीं, क्योंकि उसके पास बाप बदलने का ऑप्शन नहीं होता, लेकिन पति बदलने का होता है.
क्या ऐसा सही कहते है लोग????