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Deepak Purohit

@deepakpurohit54

A Jeweller by profession. Shaair at heart. Music lover. Sports enthusiast.

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calendar_today24-05-2021 12:44:24

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रखती थी चन्द सिक्के वो पल्लू की गाँठ में ,

थी एक चलती-फिरती सी गुल्लक हमारी माँ

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( अलबत्ता = although , on the other hand ।इन्सानियत = humanity , मानवता । अरसा = समय । हैवान = पशु )

आदमी में मर चुकी इन्सानियत अरसा हुआ ,

आज भी अलबत्ता ये मौजूद हैवानों में है

दीपक पुरोहित

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फ़रेब-ए-अहद-ए-मुहब्बत की सादगी की क़सम ,

वो झूट बोल कि सच को भी प्यार आ जाये

‘ फ़िराक़ ‘ गोरखपुरी

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ये कैसा इश्क़ है हद से कभी गुज़रता नहीं

वो मुझ से प्यार तो करता है मुझ पे मरता नहीं

पुरोहित

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वक़्त-ए-रुख़सत उन की सूरत बस गयी आँखों में यूँ ,

लज़्ज़त-ए-दीद अब मयस्सर हो रहेगी हिज्र में

दीपक पुरोहित

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“ तबस्सुम से निखर आया जमाल उस ख़ूब-रू का और

है जो शाइस्तगी उस पे , ये सोने पे सुहागा है “

दीपक पुरोहित

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पास-ए-इमदाद से इन्साँ को इन्किसार मिला ,

बार-ए-एहसाँ ने भी गर्दन को ख़म रखा अक्सर

दीपक पुरोहित

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मनायें जश्न-ए-चराग़ाँ ये जुनूँ तारी है ,

सितमज़रीफ़ी है याँ क़हर-ए-वबा जारी है

पुरोहित

सितमज़रीफ़ी = विडम्बना
क़हर-ए-वबा = महामारी रूपी आपदा

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एक उम्र भर में तय हुआ सफ़र ये मुख़्तसर ,

शहर-ए-ख़मोशाँ घर से बहुत दूर तो न था

दीपक पुरोहित

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शब-ए-फ़िराक़ नहीं रतजगों का काम यहाँ ,

थपकियाँ दे के सुला देती हैं यादें उन की

दीवार पुरोहित

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( अन्दरून-ए-चारदीवारी = घर की चारदीवारी के भीतर । तल्ख़ी का ग़ुबार = कड़वाहट का बादल । चार सू = चारों तरफ़ । रुसवाई = बदनामी , निंदा , अपयश )

“ अन्दरून-ए-चारदीवारी की तल्ख़ी का ग़ुबार ,

चार सू रुसवाई की बारिश करेगा आख़िरश “

दीपक पुरोहित

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( मतलबपरस्ती = स्वार्थ की पूजा । इख़्लास = निष्ठा sincerity । शादाबियाँ = हरियाली )

“ सोख ली मतलबपरस्ती ने नमी इख़्लास की ,

गुम हुईं शादाबियाँ , बंजर है अब दिल की ज़मीं “

दीपक पुरोहित

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( क़हर बरपा करना = बहुत बड़ी , दैवीय विपत्ति खड़ी कर देना । अदू = शत्रु , दुश्मन । दाइम = स्थायी , हमेशा । सलामत = सुरक्षित )

' वतन परस्ती हमारा मज़हब ,

हैं जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानत /

करेंगे बरपा क़हर अदू पर , रहेगा

दाइम वतन सलामत '

दीपक पुरोहित

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बाइस = कारण । मरासिम = सम्बन्ध । तर्क-ए-मरासिम = सम्बन्ध विच्छेद । तकल्लुम = बात-चीत )

बाइस-ए-तर्क-ए-मरासिम न कहीं बन जायें ,

अपने तेवर पे तकल्लुम पे नज़र रखियेगा

दीपक पुरोहित

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