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न वासना है
न मिलने की आस कोई
न स्पर्श की लालसा है
न पानें की बात रही
बस प्रेम का स्पर्श है
शरीर , मन , बुद्धि के परे
कैसे व्यक्त करे कोई
पवित्रता जो अव्यक्त है
कोई कहे प्रेम इसे
कोई कहे भक्ति
कोई कहे लगाव इसे
कोई कहे तृप्ति...!!
हम किसी को अपना समझकर अपना सबकुछ बता देते है,शुरू शुरू में हम इतना खुल जाते है की कितना कहना है,और कितना रखना है भूल जाते है,हम समझ ही नही पाते,हम वही चूक जाते है...!!!