ATHRV SINGH THAKUR पहले हिंदू बनो (@athravsingh10) 's Twitter Profile
ATHRV SINGH THAKUR पहले हिंदू बनो

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"गढ़ाकोटा के श्री देव जगन्नाथ स्वामी मंदिर में आज भगवान श्री जगन्नाथ जी, देवी सुभद्रा जी एवं भैया बलदाऊ जी की पावन झूला सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भक्ति, संगीत और उत्साह से सराबोर इस क्षण में दिव्य आशीर्वाद का अनुभव अनमोल रहा।"

"गढ़ाकोटा के श्री देव जगन्नाथ स्वामी मंदिर में आज भगवान श्री जगन्नाथ जी, देवी सुभद्रा जी एवं भैया बलदाऊ जी की पावन झूला सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भक्ति, संगीत और उत्साह से सराबोर इस क्षण में दिव्य आशीर्वाद का अनुभव अनमोल रहा।"
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तदेजति तन्नेजति तद्दूरे तद्वन्तिके। तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ।। ५ ।। (ईशावास्योपनिषद्) यह मन्त्र अद्वैत वेदान्त के उस गूढ़ सत्य को उद्घाटित करता है, जो सामान्य बुद्धि को विरोधाभासी प्रतीत होता है, परन्तु ब्रह्मज्ञान की दृष्टि से एक चैतन्य-पूर्ण अनुभूति है।

तदेजति तन्नेजति तद्दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ।। ५ ।।
      (ईशावास्योपनिषद्)

यह मन्त्र अद्वैत वेदान्त के उस गूढ़ सत्य को उद्घाटित करता है, जो सामान्य बुद्धि को विरोधाभासी प्रतीत होता है, परन्तु ब्रह्मज्ञान की दृष्टि से एक चैतन्य-पूर्ण अनुभूति है।
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"आत्मबोध" (श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः ‘आत्मबोधः’) तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम्। मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते ॥१॥ पदार्थ-विश्लेषण - • "तपोभिः" — उपासना, जप, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय आदि तपों के माध्यम से • "क्षीणपापानाम्" — जिनके विगत पाप कर्म

"आत्मबोध"

(श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः ‘आत्मबोधः’)

तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम्।
मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते ॥१॥

पदार्थ-विश्लेषण -
• "तपोभिः" — उपासना, जप, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय आदि तपों के माध्यम से
• "क्षीणपापानाम्" — जिनके विगत पाप कर्म
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यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥ ६ ॥ (ईशावास्योपनिषद्) यह मंत्र ईशावास्योपनिषद् की हृदयगर्भ उद्घोषणा है, जो अद्वैत वेदान्त के परम सार सर्वात्मभाव— की प्रतिष्ठा करता है। इसमें वह दृष्टि वर्णित है, जिसे प्राप्त कर मनुष्य समस्त

यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥ ६ ॥
  (ईशावास्योपनिषद्)

यह मंत्र ईशावास्योपनिषद् की हृदयगर्भ उद्घोषणा है, जो अद्वैत वेदान्त के परम सार  सर्वात्मभाव— की प्रतिष्ठा करता है। इसमें वह दृष्टि वर्णित है, जिसे प्राप्त कर मनुष्य समस्त
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"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः आत्मबोध:" बोधोऽन्यसाधनेभ्यो हि साक्षान्मोक्षैकसाधनम्। पाकस्य वह्निवत्ज्ञानं विना मोक्षो न सिध्यति ॥ २ ॥ ज्ञान ही अन्य सभी साधनों से श्रेष्ठ, प्रत्यक्ष और एकमात्र साधन है, जो मोक्ष को प्रदान करता है। जैसे पकने के लिए अग्नि का होना अनिवार्य

"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः आत्मबोध:"

बोधोऽन्यसाधनेभ्यो हि साक्षान्मोक्षैकसाधनम्।
पाकस्य वह्निवत्ज्ञानं विना मोक्षो न सिध्यति ॥ २ ॥

ज्ञान ही अन्य सभी साधनों से श्रेष्ठ, प्रत्यक्ष और एकमात्र साधन है, जो मोक्ष को प्रदान करता है। जैसे पकने के लिए अग्नि का होना अनिवार्य
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यस्मिन् सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः । तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥७॥ (ईशावास्योपनिषद्) शाब्दिक अर्थ - • "यस्मिन्" — उस ब्रह्मस्वरूप में • "सर्वाणि भूतानि" — समस्त चराचर प्राणी • "आत्मा एव अभूत्" — वास्तव में आत्मा ही हो गए हैं, अन्यत्व नहीं है • "विजानतः" —

यस्मिन् सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः ।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥७॥ 
  (ईशावास्योपनिषद्)

शाब्दिक अर्थ -
• "यस्मिन्" — उस ब्रह्मस्वरूप में
• "सर्वाणि भूतानि" — समस्त चराचर प्राणी
• "आत्मा एव अभूत्" — वास्तव में आत्मा ही हो गए हैं, अन्यत्व नहीं है
• "विजानतः" —
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"आत्मबोध" (श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः) अविरोधितया कर्म नाविद्यां विनिवर्तयेत् । विद्याऽविद्यां निहन्त्येव तेजस्तिमिरसङ्घवत् ॥ ३ ॥ “कर्म, क्योंकि वे अविद्या के प्रत्यक्ष विरोधी नहीं हैं, अज्ञान का निवारण नहीं कर सकते। केवल विद्या ही अविद्या का नाश करती है। जैसे -

"आत्मबोध"
(श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः)

अविरोधितया कर्म नाविद्यां विनिवर्तयेत् ।
विद्याऽविद्यां निहन्त्येव तेजस्तिमिरसङ्घवत्
॥ ३ ॥

“कर्म, क्योंकि वे अविद्या के प्रत्यक्ष विरोधी नहीं हैं, अज्ञान का निवारण नहीं कर सकते। केवल विद्या ही अविद्या का नाश करती है। जैसे -
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स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरम् शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूयथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥८॥ (ईशावास्योपनिषद) ईशावास्योपनिषद का यह अष्टम मंत्र, वेदान्त का हृदय है। यहाँ उपनिषद् ब्रह्म के निर्गुण-निराकार स्वरूप का परम आश्रय रूप में

स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरम् शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूयथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥८॥
       (ईशावास्योपनिषद)

ईशावास्योपनिषद का यह अष्टम मंत्र, वेदान्त का हृदय है। यहाँ उपनिषद् ब्रह्म के निर्गुण-निराकार स्वरूप का परम आश्रय रूप में
Prof. Sarita Sidh (@profsaritasidh) 's Twitter Profile Photo

Rahul Gandhi शर्म करो बकवास करने से पहेले 👇🏻 1.) भारत का पहला चुनावी भ्रष्टाचार गाँधी- नेहरू ने किया 14 वोट पाकर भी.. सरदार पटेल की जगह 1 वोट पाने वाले नेहरू PM बना। 2.) भारत का दूसरा चुनावी भ्रष्टाचार डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को हराने के लिए कांग्रेस और CPI ने मिलकर किया था। (मुंबई उत्तर

kshatriya Jitendarsingh Rathore (@jitenda00757821) 's Twitter Profile Photo

क्षत्रिय राजपूत कभी भी सिर कटा सकता है पर झुका नहीं सकता स्वभीमान से कभी समझोता नहीं करते स्वयं के स्वाभिमान से समझौता स्वीकार नहीं है। कहावत है ना....मूंछ होवे राजपूत कि, रखें चाहें कोई।

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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः" अवच्छिन्न इवाज्ञानात्तन्नाशे सति केवलः । स्वयं प्रकाशते ह्यात्मा मेघापायेंशुमानिव ॥४॥ अज्ञान से आच्छन्न होकर आत्मा मानो सीमित प्रतीत होता है। अज्ञान के नष्ट होते ही वह केवल, अखण्ड स्वरूप में स्वयं प्रकाशित होता है — जैसे मेघ

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः"

अवच्छिन्न इवाज्ञानात्तन्नाशे सति केवलः ।
स्वयं प्रकाशते ह्यात्मा मेघापायेंशुमानिव ॥४॥

अज्ञान से आच्छन्न होकर आत्मा मानो सीमित प्रतीत होता है। अज्ञान के नष्ट होते ही वह केवल, अखण्ड स्वरूप में स्वयं प्रकाशित होता है — जैसे मेघ
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“अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते । ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः ।। ९ ।। (ईशावास्योपनिषद) पद-विश्लेषण - •"अन्धं तमः" – ऐसा गहन अज्ञानरूपी अंधकार, जिसमें सत्य का प्रकाश सर्वथा अनुपस्थित हो। •"प्रविशन्ति" – प्रवेश करते हैं, डूब जाते हैं। •"ये अविद्याम् उपासते"

“अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः ।। ९ ।।
     (ईशावास्योपनिषद)

पद-विश्लेषण -
•"अन्धं तमः" – ऐसा गहन अज्ञानरूपी अंधकार, जिसमें सत्य का प्रकाश सर्वथा अनुपस्थित हो।
•"प्रविशन्ति" – प्रवेश करते हैं, डूब जाते हैं।
•"ये अविद्याम् उपासते"
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"आत्मबोध" "श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः आत्मबोध:" अज्ञानकलुषं जीवं ज्ञानाभ्यासाद्विनिर्मलम् । कृत्वा ज्ञानं स्वयं नश्येज्ज्लं कतकरेणुवत् ॥५॥ अज्ञान से कलुषित जीव को, ज्ञान के अभ्यास से निर्मल कर, वही ज्ञान अन्त में स्वयं लीन हो जाता है - जैसे जल को शुद्ध करने वाला

"आत्मबोध"
"श्रीमद् आदिशङ्करभगवत्पादाचार्यविरचितः आत्मबोध:"

अज्ञानकलुषं जीवं ज्ञानाभ्यासाद्विनिर्मलम्
।
कृत्वा ज्ञानं स्वयं नश्येज्ज्लं कतकरेणुवत्
॥५॥

अज्ञान से कलुषित जीव को, ज्ञान के अभ्यास से निर्मल कर, वही ज्ञान अन्त में स्वयं लीन हो जाता है - जैसे जल को शुद्ध करने वाला
Bhuppendra Siingh (@bhupendrasingho) 's Twitter Profile Photo

आदरणीय प्रधानमंत्री Narendra Modi जी के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में #हर_घर_तिरंगा अभियान अभियान बड़े उत्साह एवं देशभक्ति के भाव के साथ मनाया जा रहा है। इसी क्रम में मैंने भी अपने कार्यालय पर तिरंगा ध्वज फहराया है। आप सभी से अनुरोध है कि अपने-अपने घर पर तिरंगा अवश्य फहराएँ।

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विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह। अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ।। ११ ।। (ईशावास्योपनिषद) •"विद्यां च" – विद्या अर्थात् देवताओं की उपासना, सूक्ष्म जगत का ज्ञान (अपरा विद्या)। •"अविद्यां च" – अविद्या अर्थात् यज्ञ, दान, व्रत, लौकिक-भौतिक कर्म। •"यः तद्

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ।। ११ ।।
     (ईशावास्योपनिषद)

•"विद्यां च" – विद्या अर्थात् देवताओं की उपासना, सूक्ष्म जगत का ज्ञान (अपरा विद्या)।
•"अविद्यां च" – अविद्या अर्थात् यज्ञ, दान, व्रत, लौकिक-भौतिक कर्म।
•"यः तद्
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“श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव” अथ सर्वगुणोपेतः कालः परमशोभनः। यर्हि एव अजनजन्मर्क्षं शान्तर्क्ष-ग्रहतारकम् ॥ विदितोऽसि भवान् साक्षात् पुरुषः प्रकृतेः परः। केवलानुभवानन्द स्वरूपः सर्वबुद्धिदृक् ।। “द्वापर में ऐसा ही शुभ क्षण था, जब पूर्ण परात्पर ब्रह्म, सर्वभूतहृदय परमात्मा,