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छोटी कविता

@itanwirr

जितनी छोटी हो कविता
उतना ही ज्यादा बसेगी मन में।

साहित्य। सिनेमा। जीवन।

ID: 1052350241607802881

calendar_today17-10-2018 00:07:04

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बांधने मुझे तो आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है? ◆ दिनकर

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तेरी ज़िद है यही अगर साक़ी ज़हर दे दे मगर शराब न दे ◆ गौहर उस्मानी

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ये बस्ती पिंजरे वालों की बस्ती है और तुम पंछी उड़ाने वाली लड़की हो। ◆ ज़ुबैर अली ताबिश

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लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है ◆ अमीर क़ज़लबाश

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हज़ार इश्क़ करो लेकिन इतना ध्यान रहे, कि तुम को पहली मोहब्बत की बद्दुआ न लगे। ◆ अब्बास ताबिश

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चूम लेते किसी खिलते हुए फूल को! या सहला देते किसी पेड़ की पीठ! कर देते थोड़ी सी गिदगिलियां बूढ़की दादी को! या पास बैठकर सुन लेते कोई पुराना किस्सा चुपचाप बैठे दादाजी से! प्यार पाने के प्यार जताने के! कितने मार्ग हैं मित्र और तुम उदास बैठे हो! ◆ नरेश गुर्जर

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कैलेण्डर में टँगे-टँगे ही रहते हैं अब शहरों की भागादौड़ी में खोये उत्सव ◆ गरिमा सक्सेना

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खफा है तो कोई बात नहीं इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं ◆ ख़ुमार बाराबंकवी

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इस साउंडट्रैक में एक से बढ़कर एक गानें थे । आपका पसंददीदा कौन सा था?

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विफल प्रयत्न हुए सारे मैं हारी, निष्ठुरता जीती अरे न पूछो, कह न सकूँगी तुमसे मैं अपनी बीती नहीं मानते हो तो जा उन मुकुलित कलियों से पूछो अथवा विरह विकल घायल सी भ्रमरावलियों से पूछो जो माली के निठुर करों से असमय में दी गईं मरोड़ जिनका जर्जर हृदय विकल है प्रेमी मधुप-वृंद को

विफल प्रयत्न हुए सारे
मैं हारी, निष्ठुरता जीती
अरे न पूछो, कह न सकूँगी
तुमसे मैं अपनी बीती

नहीं मानते हो तो जा 
उन मुकुलित कलियों से पूछो
अथवा विरह विकल घायल सी
भ्रमरावलियों से पूछो

जो माली के निठुर करों से 
असमय में दी गईं मरोड़
जिनका जर्जर हृदय विकल है
प्रेमी मधुप-वृंद को
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हर दिवस शाम में ढल जाता है हर तिमिर धूप में जल जाता है मेरे मन! इस तरह न हिम्मत हार वक़्त कैसा हो, बदल जाता है। ◆ गोपालदास नीरज

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कौन सहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में बारिशों से अगर बच भी जाएं तो दरिया नहीं छोड़ता

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"रास्ता/रहगुज़र/पथ/मार्ग" पे कुछ पंक्तियाँ, गीत के बोल, या कोई शायरी....

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छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए। मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाए।। दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है। मरता है जो एक ही बार मरता है।। ◆ रामधारी सिंह दिनकर

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आज हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में किसी ऐसे गाने के बोल या लिंक साझा कीजिए, जो मुख्य रूप से हिंदी में हो और जिसमें उर्दू के शब्द बिल्कुल न हों या नगण्य हों।

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फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में... मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी...!! 🎶 ◆ साहिर लधियानवी

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किताबें न होती तो कितनी अकेली होती यात्राएँ जैसे, अकेली होती है घर की दीवारें अपनों की तस्वीरों के बिना। ◆ रचना श्रीवास्तव

किताबें न होती तो 
कितनी अकेली होती यात्राएँ जैसे, 
अकेली होती है घर की दीवारें 
अपनों की तस्वीरों के बिना।

◆ रचना श्रीवास्तव