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Ahmad

@ahmadhusain07

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calendar_today20-05-2022 17:27:56

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इस्लाम पर डीप स्टडी करने के बाद मैंने जो जाना और समझा वो ये है की इस्लाम ज़ुल्म और कट्टरता का नाम नहीं है इस्लाम दुनिया में तलवार की नौक पर नहीं बल्कि मुहब्बत से फैलने वाला दीन है this is the beauty of Islam

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Good afternoon, Friends...., दुनिया की फ़िक्र छोड़िए, सबसे पहले आप......, उस इंसान को ख़ुश रखिये, जिसको आप रोज़ आइने में देखते हैं.! उसके आंसू पौंछिये, उसे गले लगाइए, वक़्त के आईने से वक़्त की धूल हटाइये, कभी तो मुस्कुराइये, सिर्फ अपने लिए मुस्कुराइये।

Good afternoon,
Friends....,

दुनिया की फ़िक्र छोड़िए,
सबसे पहले आप......,

उस इंसान को ख़ुश रखिये,
जिसको आप रोज़ आइने में देखते हैं.!

उसके आंसू पौंछिये, 
उसे गले लगाइए,

वक़्त के आईने से वक़्त की धूल हटाइये,
कभी तो  मुस्कुराइये, 

सिर्फ अपने लिए मुस्कुराइये।
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Assalam alaikum Friends..., करुं न याद,मगर किस तरह भुलाऊं उसे, ग़ज़ल का बहाना करुं और गुनगुनाऊं उसे, वो ख़ार ख़ार है शाख़े गुलाब की मानिंद, मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूं फिर भी गले लगाऊं उसे, जो हमसफ़र सरे मंज़िल बिछड़ गया मुझसे, अजब नहीं है अगर याद भी न आऊं उसे।

Assalam alaikum 
Friends...,

करुं न याद,मगर 
किस तरह भुलाऊं उसे, 
ग़ज़ल का बहाना करुं 
और गुनगुनाऊं उसे,

वो ख़ार ख़ार है 
शाख़े गुलाब की मानिंद,
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूं 
फिर भी गले लगाऊं उसे,

जो हमसफ़र सरे मंज़िल 
बिछड़ गया मुझसे,
अजब नहीं है अगर याद भी 
न आऊं उसे।
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Ahmad क्या बात है अहमद भाई, लफ़्ज़ों में जादू और एहसास दोनों उतर आए हैं। बहुत खूब।

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اسلام وعلیکم۔۔شب بخیر ۔۔۔ दर्द से दिल छिलता है फिर लहू में ढ़लता है, तब आंखों में उभरता है फिर आंसुओं में मिलता है , तब कहीं जाकर,काग़ज़ पे एक लफ़्ज़ उतरता है। सोचिए दर्द भरी इबारत लिखना कितना मुश्किल होता है।

اسلام وعلیکم۔۔شب بخیر ۔۔۔

दर्द से दिल छिलता है
फिर लहू में ढ़लता है,

तब आंखों में उभरता है 
फिर आंसुओं में मिलता है ,

तब कहीं जाकर,काग़ज़ पे
एक लफ़्ज़ उतरता है।

       सोचिए 

दर्द भरी इबारत लिखना
कितना  मुश्किल  होता है।
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ख़ूबसूरत है वो सोच जो दूसरे इंसान के लिए अच्छा सोचे, कहां गये वो लोग जो अच्छा सोचते थे, आज तो रहबर भी अपनों के लिए भी बुरा ही सोचते हैं, ख़ूबसूरत हैं वो इंसान, जिन्हें अल्लाह अच्छी सोच अता करता है, लोग ज़िन्दगी को अपनी मंज़िल समझते हैं, ज़िन्दगी मंज़िल नहीं बस एक सफर है।

ख़ूबसूरत है वो सोच
जो दूसरे इंसान के लिए अच्छा सोचे,

कहां गये वो लोग जो अच्छा सोचते थे,

आज तो रहबर भी अपनों के लिए 
भी बुरा ही सोचते हैं,

ख़ूबसूरत हैं वो इंसान,
जिन्हें अल्लाह अच्छी सोच अता करता है,

लोग ज़िन्दगी को अपनी मंज़िल समझते हैं,
ज़िन्दगी मंज़िल नहीं बस एक सफर है।