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Adv vijay

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चिंतक/ आलोचक/ खाने का शौकीन

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calendar_today13-11-2019 14:32:41

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अभी कुछ दिन पहले तक बड़े-बड़े पत्रकार और सेलिब्रिटी ‘संस्कृति बचाओ’ मिशन पर निकले थे—पटाखे जलाओ, धर्म निभाओ! अब जब हवा में ऑक्सीजन से ज्यादा धुआं तैर रहा है, तो गोबर बुद्धि भक्त कैमरे के सामने मास्क लगाकर प्रदूषण पर प्रवचन दे रहे हैं। ये वही महानुभाव हैं जिनके घरों में अब एयर

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सोचिए... भारत में जितने भी दलित मुख्यमंत्री बने, किसी को भी 2 साल से ज्यादा सत्ता में नहीं रहने दिया गया। दामोदरम संजीवय्या (आंध्र) – 2 साल जगन्नाथ पहाड़िया (राजस्थान) – 1 साल सुशील कुमार शिंदे (महाराष्ट्र) – 10 महीने चरणजीत सिंह चन्नी (पंजाब) – 6 महीने दलित नेतृत्व को बस

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दलितों पर जब अत्याचार होते हैं, तब समाज के ठेकेदार खामोश रहते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव की घोषणा होती है, उन्हें दलित समाज की याद आने लगती है वोट की गिनती शुरू होने से पहले उनकी गिनती शुरू हो जाती है।

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दलितों के मसीहा बनने वाले कुछ नेता सिर्फ सोशल मीडिया के शेर हैं, वरना अब तक इस पर कानूनी कार्रवाई हो चुकी होती। Mayawati Chandra Shekhar Aazad Dr. Udit Raj Dr. Ratan Lal

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क्या #राजद जमीनी राजनीति में थी? #बिहार_चुनाव_अपडेट #BiharElection2025

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बिहार विधानसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस की रणनीतिक चूक हुई है। इस लेख को पढ़ें और समझें। #बिहार_चुनाव_अपडेट #BiharElection2025

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क्या यह भ्रम दूर हो चुका है कि युवा #राजद के साथ हैं? #BiharElection2025

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#BiharElection2025 में आरजेडी ने कुल 96 सीटों पर चुनाव लड़ा है और चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने कुल 29 सीटों पर। फिर भी कोई “अंतर” यानी सीटों में बड़ा फर्क क्यों नहीं दिख रहा, इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

#BiharElection2025 में आरजेडी ने कुल 96 सीटों पर चुनाव लड़ा है और चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने कुल 29 सीटों पर। फिर भी कोई “अंतर” यानी सीटों में बड़ा फर्क क्यों नहीं दिख रहा, इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
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#BiharElection2025 में राजद को उसके पारंपरिक M-Y बेस से पूरा समर्थन नहीं मिला। मुस्लिम वोटों में बँटवारा दिखा और यादव वोट भी पहले जितना एकजुट नहीं रहा। सवाल यह है कि क्या दलितों ने भी राजद का साथ इसलिए छोड़ा क्योंकि दलित उपमुख्यमंत्री की घोषण ही नहीं की गई थी?

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फिर कह रहा हूँ—चुनाव सोशल मीडिया पर नहीं जीते जाते। जीत वही पाता है जो सड़कों पर संघर्ष करता है, आंदोलनों में जनता के साथ खड़ा रहता है और उनके दिलों में जगह बनाता है। #बिहार_विधानसभा_चुनाव #BiharElection2025

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बिहार की राजनीति सिर्फ मुद्दों पर नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों और प्रतिनिधित्व पर भी टिकी होती है। 2024–25 के चुनाव ने यह साफ कर दिया कि महागठबंधन (राजद–कांग्रेस) ने अपनी रणनीति में एक अहम गलती की: उसने SC, EBC और गैर-यादव OBC को एक साझा राजनीतिक मंच पर नहीं ला पाया। यही चूक उसे

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भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद देश में वैज्ञानिक आधार पर राष्ट्र निर्माण की मजबूत नींव रखी जा रही थी। यह वही दौर था जब उठाए गए कदम आगे चलकर भारत की सामरिक और वैज्ञानिक शक्ति की बुनियाद बने। यह केवल तकनीकी पहल नहीं थी, बल्कि दूरदर्शी नेतृत्व का उदाहरण था, जिसने दिखाया कि भारत

भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद देश में वैज्ञानिक आधार पर राष्ट्र निर्माण की मजबूत नींव रखी जा रही थी। यह वही दौर था जब उठाए गए कदम आगे चलकर भारत की सामरिक और वैज्ञानिक शक्ति की बुनियाद बने। यह केवल तकनीकी पहल नहीं थी, बल्कि दूरदर्शी नेतृत्व का उदाहरण था, जिसने दिखाया कि भारत
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दलित राजनीति आज जिस रूप में दिख रही है, वह आंदोलन से अधिक सत्ता-साझेदारी तक सीमित हो चुकी है। पहले के नेता छोटे स्तर पर जमीनी संगठनों विचार और संघर्ष की राजनीति करते थे। उनका उद्देश्य था सामाजिक बराबरी, आत्मसम्मान और चेतना का विस्तार। अब नेता केवल वोट बैंक देखते हैं, समाज नहीं।

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केंद्रीय मंत्री ने इन्हें मंथरा कह दिया और मैडम खिलखिलाते हुए हीहीही करती रहीं। कोई और ऐसा बोल देता तो अब तक आसमान सिर पर उठा देतीं, मगर यहाँ तो सत्ता की छतरी है… इसलिए अपमान भी मज़ाक लगता है।

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लोकतंत्र की दुहाई देने और कसमें खाने वाले नेताओं की अपनी पार्टी में ही लोकतंत्र का जनाज़ा निकला हुआ है।

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यूपी का चुनावी भूगोल पूरी तरह जातीय समीकरणों पर टिका है। ABP Live के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक OBC है, जिनकी आबादी लगभग 42-43% है। इसके बाद SC लगभग 21%, मुस्लिम लगभग 19% और सवर्ण लगभग 17-19% हैं। ऐसे में किसी भी पार्टी की रणनीति तभी सफल होती है जब वह इन

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बिहार विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने गठबंधन किया। दलित समाज ने खुलकर AIMIM को वोट दिया, लेकिन क्या मुस्लिमों ने आजाद समाज पार्टी को समर्थन दिया? Priyanshu Kumar

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बिहार में जिस तरह महादलित वोट कटा, UP 2027 में मायावती जी अकेले लड़ेंगी तो क्या होगा? क्या #BSP फिर 20-25 सीटें जीत पाएगी? या गठबंधन जरूरी है? आप क्या सोचते हो?