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Rishi Darshan™

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कथा सत्संग साधन भजन का मतलब यह है कि हमारी जो चेतसा है , वह अन्य गामिनी ना हो ।

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साल भर के बाद तेरी मृत्यु है।
अब यह धन जो है ना?
दान कर..अच्छे काम में तू तन-मन से,धन से अपने को जरा खर्च कर।
तेरी कामनाएं मिटेगी।
हो सकता है कि साल भर के बाद तेरी आयुष्य बढ़ जाए।
सेठजी लग गए,बाबा तो पहुँच गए वृंदावन।
हम तो खेल खेल के आए।
सेठ के जीवन को मोड के आए।

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वो बाबा स्थितिप्रज्ञ थे।
बोले- साल भर के बाद,ठीक आज के दिन,तुम्हारी मृत्यु होने वाली है,शाम को 7:30 बजे।लिख लेना..
बही भी छूट गई,चश्मा भी उतर गया, बाबा के पैर पकड़ लिए।
बाबा जी रुको..
अब मृत्यु से बचने का कोई उपाय बताओ,बाबा!
मैं जैसा-तैसा हूँ,तुम्हारा हूँ।

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एक बाबा जी थे।चल पड़े कलकत्ते।एक बड़ी पेढ़ी में घुस गए।सेठ ने देखा-कोई आया बाबा,लंगोटी वाला।उसने बही में देखना चालू कर दिया।
सेठजी,जरा एक बात सुन लो।
सेठ जी ने ऊपर नहीं देखा।
मुनीम-लो पैसा।
बाबा-मैं पैसा लेने को नहीं आया हूँ..जरा बात करो।
लेकिन सेठ ने बात नहीं की।

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उत्तम में उत्तम जो होते हैं साधक..उच्च कोटि के..वो तो ब्रह्म ज्ञान का वचन सुनते ही विश्रांति की जगह पर पहुंच जाते हैं । जैसे राजा जनक,खटवांग राजा,परीक्षित राजा,यह उत्तम अधिकारी हैं ।
सुनते ही,सातवें दिन में तक्षक काटे, उसके पहले कृष्ण तत्व में स्थित हो गए ।

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एक कथा सुनके आप बात को समझ लो..
चाहे 10 कथा सुनो..
चाहे 10000 कथा सुनो..
लेकिन पहुंचना वहीं है।
तो बार-बार सत्संग सुनने को क्यों कहा? कि आदत मन की बिगड़ी हुई है,बहिर्मुख होने की।
इसलिए बार-बार सत्संग सुने,ताकि अंतर्मुख होता जाए।

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आज संत श्री का अवतरण दिवस है ।
इस शुभ दिन की आप सभी को हार्दिक
आयो रे आयो रे शुभ दिन आयो रे
का
आयो रे !


1 साल की = मात्र 120 /-

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मोह सब व्याधियों का मूल है।लेकिन ये मोह दूर हो जाता है भगवान की कथा से,चर्चा से।
बार-2भगवान के दिव्य जन्म और कर्मों को सुनें और मानें तो आपके भी कर्म दिव्य होने लगेंगे।
आप भगवान के दिव्य जन्म और कर्मों को जानने लगोगे..और जो ऐसा जानता है,वो जन्म मरण से छूट जाता है।

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1 बड़े उच्च कोटि के संत थे।
उनसे मेरे मित्र संत ने पूछा कि आप ब्रह्मज्ञानी हो गए,अब आपके मन में क्या इच्छा है?
बोले-कि किसी संत-महापुरुष के जीवन-चरित्र की पुस्तक मिले तो पढ़ लूँ।
इससे मुझे बहुत लाभ हुआ है।
उनके जीवन-चरित्रों को सुनने से मेरा चित्त भगवन्मय हुआ।

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जन्म में दिव्यता लानी है तो योग का धन चाहिए।
कर्मों में दिव्यता लानी है तो निष्कामता का धन चाहिए।
जन्म तो जैसा हो गया..हो गया।
लेकिन कर्म तो दिव्य कर सकते हैं।
कर्म दिव्य हो गए तो भगवान के कर्मों को और जन्म को,दिव्य मानने के साथ, जानने की बुद्धि भी प्रकट हो जाएगी।

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2 प्रकार के अवतार माने जाते हैं-
●नित्य अवतार
संतों के हृदय में जो परब्रह्म परमात्मा विशेष रूप से अवतरित होता है,उसे नित्य अवतार कहते हैं।
●नैमित्तिक अवतार
बड़ा निमित्त लेकर जो सच्चिदानंद, परब्रह्म-परमात्मा मनुष्य रूप में अवतरित हुए,उसे नैमित्तिक अवतार कहते हैं।

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भगवान कृष्ण कहते हैं कि ये जीवात्मा अपने आप का मित्र है और अपने आप का ही शत्रु है।
अगर ये छोटी-छोटी चीजों से जुड़कर सुखी होने के लिए भागता है तो अपने आप का खतरनाक दुश्मन साबित होता है।
अगर ये बड़े तत्व के साथ प्रीति करके चलता है तो अपने आप का ये मित्र हो जाता है।

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आज है ।
आप सबको इस शुभ दिन की हार्दिक
हनुमानजी को मुनि, मौन की महत्ता जानने वाले..
सारगर्भित बोलने वाले..
और जब भी वे बोलते हैं तो उनकी परा वाणी पश्यंति में .. फिर मध्यमा में.. फिर वैखरी में आती है..
और उनकी वाणी सत्संग हो जाती है।

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किसी शासक का अपने सैन्य या राज्य पर उतना काबू नहीं होता,जितना फकीरों का अपने मन-इन्द्रियों पर काबू होता है।
राजाओं का राजा..वो फकीर महाराजा होता है।
ऐसा महाराजा पद पाना है तो कृष्ण कहते हैं-अहंकार छोड़कर..आत्म ज्ञान के पिपासुओं को उन महापुरुषों के पास जाना चाहिए।

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Shorts
आज जी की है।
आप सबको इस विशेष दिन ki ढेरों शुभकामनाएँ।
मैंने या आपने कभी नहीं सुना होगा कि अधिक विलासी,अधिक धनवान,अधिक अय्याश लोग मुक्त हो गए।
ये सुना कि अधिक अय्याशी किया तो पाण्डु को पाण्डु रोग रोग हो गया..
फलाने को ये हो गया..
फलाने नरक में पड़े..

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जो श्रद्धा से मुझे अंतरात्म-भाव से भजता है,वह सब योगियों में श्रेष्ठ है। संसारी,स्वार्थी आदमियों से तो योगी श्रेष्ठ है।
योगियों में भी जो आत्म-योग करता है,वह जल्दी मुझे पा लेता है।
वह परम श्रेष्ठ है।
क्योंकि उसे योग करते-करते ही आनंद आने लगता है।

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भलाई का बदला तो भलाई होता है।
लेकिन असावधानी से की हुई भलाई बुराई का रूप ले लेती है।
मेरा तो 1 ही पाँख कटा..
संसार के लोग अपने मन-रूपी चूहे को सत्ता देते हैं और व्यक्ति के ईश्वरीय उड़ान के दोनों पाँख वो कुतरता जाता है।
वो कब यार की यात्रा करेंगे? ये आश्चर्य है।

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वो ठिठुरे हुए चूहे को अपनी पाँखों में लेकर गर्मी देने लगा।
चूहे की ठंडी दूर हुई,फूँक मारता गया,उसकी पाँखें कुतरता हुआ मूल तक आया।
रक्त की धार बह चली..
और उसे थोड़ा पता चला।
अब उसको उड़ने की शक्ति शाँत हुई।
एक पँख से कैसे उड़े?
चूहे को कृतघ्न मानकर उसने छोड़ दिया।

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आज का पर्व है।
आप सब को इस शुभ दिन की खूब-2 बधाईयाँ।
यहाँ समझा रहे हैं कि कैसे भगवान राम स्वयं अमानी रहते हुए, दूसरों को मान देने से कभी नहीं चूकते थे।
रघुकुल के 30 राजाओं का वर्णन श्रीमद्भागवत में आता है...
( पूरा सत्संग पाएँ पर )

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के आखिरी दिन रामजी का प्रागट्य होता है ।
इसमें अर्थात् रचनात्मक जीवन,रचनात्मक संकल्प,रचनात्मक कार्य ।
○ शारदीय नवरात्रि में रामजी का समाज को शोषित करने वाले रावण पर विजय - विजयादशमी ।
ये विषय-विकारों में उलझे हुए पर विजय पाने के लिए ।

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