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हिंदी की अनुपम कविताओं, हिंदी गज़लों, नज़्मों को पाठकों तक पहुँचाने वाला अनूठा पटल✍️

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एक पीली खिड़की इस तरह खुलती है
जैसे खुल रही हों किसी फूल की पंखुड़ियाँ !

एक चिड़िया पिंजरे की सलाखों को ऐसे कुतरती है,
जैसे चुग रही हो अपने ही खेत में धान की बालियाँ !

~ गीत चतुर्वेदी
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एक पीली खिड़की इस तरह खुलती है जैसे खुल रही हों किसी फूल की पंखुड़ियाँ ! एक चिड़िया पिंजरे की सलाखों को ऐसे कुतरती है, जैसे चुग रही हो अपने ही खेत में धान की बालियाँ ! ~ गीत चतुर्वेदी #काव्य_कृति ✍️
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बाँचती उषा
प्रेम पत्र भोर का
मुस्काती धरा !
***
धो रही उषा
रात वाली ओढ़नी
झरे कोहरा !

~ शिवजी श्रीवास्तव
✍️

बाँचती उषा प्रेम पत्र भोर का मुस्काती धरा ! *** धो रही उषा रात वाली ओढ़नी झरे कोहरा ! ~ शिवजी श्रीवास्तव #हाइकु #लेखनी ✍️
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अरुणोदय की पहली लाली
इसको ही चूम निखर जाती,
फिर संध्‍या की अंतिम लाली
इस पर ही झूम बिखर जाती।

इस धरती का हर लाल खुशी से
उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का
कुछ ऐसा ही नाता है !

~ गोपाल सिंह नेपाली
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अरुणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती, फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती। इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है । गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ! ~ गोपाल सिंह नेपाली #सुहानी_भोर 🌄 #काव्य_कृति ✍️
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आरती सिंह 🕊️(@AarTee33) 's Twitter Profile Photo

राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास ।।20।।

वली

व्याख्या: राम-नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं वे मानो बरसते हुए

राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस। बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास ।।20।। #तुलसीदास #दोहावली #दोहा #काव्य_कृति #लेखनी व्याख्या: राम-नाम का आश्रय लिए बिना जो लोग मोक्ष की आशा करते हैं अथवा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चारों परमार्थों को प्राप्त करना चाहते हैं वे मानो बरसते हुए
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उषा काल में
खगों की आकुलता
डाल -डाल पे!
***
साँझ सावनी
शिमला क्षितिज पे
बदली घनी!

~ कुंवर दिनेश
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Narpati C Pareek 🇮🇳 लेखनी मधूलिका सिंह

उषा काल में खगों की आकुलता डाल -डाल पे! *** साँझ सावनी शिमला क्षितिज पे बदली घनी! ~ कुंवर दिनेश #हाइकु #लेखनी ✍️ @pareeknc7 @Lekhni_ @madhuleka
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सुखद भोर
खग-गीत गूँजते
मुक्तछंद में !
***
प्राची के माथे
तप्त अधर रखे
 प्रातःरवि ने !

~ कविता भट्ट
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Dr Kavita Bhatt 'शैलपुत्री'

सुखद भोर खग-गीत गूँजते मुक्तछंद में ! *** प्राची के माथे तप्त अधर रखे  प्रातःरवि ने ! ~ कविता भट्ट #हाइकु #लेखनी ✍️ @DrKavitaBhatt1
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आदमी अत्यधिक सुखों के लोभ से ग्रस्त है
यही लोभ उसे मारेगा।
मनुष्य और किसी से नहीं,
अपने आविष्कार से हारेगा !

~ दिनकर

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पहले मैं बुनता हूँ।
उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ।
ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा?
पर कोई है जो उसे बदल देगा,
जो उसे रसों में बोर कर रंजित करेगा, तभी तो वह खिलेगा !

~ अज्ञेय
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अपने हलके-फुलके उड़ते स्पर्शों से मुझको छू जाती है
जार्जेट के पीले पल्ले-सी यह दोपहर नवम्बर की..!!

~ धर्मवीर भारती

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सूरज थोड़ा चढ़ आया होगा
बसंती हवा भी
थोड़ी गर्माई होगी !
चौक पर चहल-पहल छाई होगी
कुल्हड़ की से
सोंधी खुशबू आई होगी।
कुछ इस तरह
मेरे गाँव का चौपाल सज रहा होगा !

~ दिनेश देवघरिया

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सूरज थोड़ा चढ़ आया होगा बसंती हवा भी थोड़ी गर्माई होगी ! चौक पर चहल-पहल छाई होगी कुल्हड़ की #चाय से सोंधी खुशबू आई होगी। कुछ इस तरह मेरे गाँव का चौपाल सज रहा होगा ! ~ दिनेश देवघरिया #अंतर्राष्ट्रीय_चाय_दिवस ☕ #लेखनी ✍️
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बीती रात, प्रात मुसकाया
बोलीं चिड़ियाँ-चूँ-चूँ !

द्वार-द्वार दे रहे दिखाई
दूध बाँटते ग्वाले !
खन-खन-खन खन लगे बोलने
गरम के प्याले !

सूरज की किरणों की छिटकी
सभी ओर है लाली !
फुलवारी में फूल बीनने
पहुँच गए हैं माली !

~ भीष्मसिंह चौहान
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बीती रात, प्रात मुसकाया बोलीं चिड़ियाँ-चूँ-चूँ ! द्वार-द्वार दे रहे दिखाई दूध बाँटते ग्वाले ! खन-खन-खन खन लगे बोलने गरम #चाय के प्याले ! सूरज की किरणों की छिटकी सभी ओर है लाली ! फुलवारी में फूल बीनने पहुँच गए हैं माली ! ~ भीष्मसिंह चौहान #सुहानी_भोर🌄 #काव्य_कृति✍️
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शाम की वो , जिसमें नेह संग बातें घुली-सी
आपके सानिध्य के प्रिय!, सच कहूँ पर्याय हैं ये।

व्यर्थ की बातें बहुत सी, और कुछ मनुहार होते।
कुछ कुँवारे स्वप्न होते,मध्य में जो प्रेम बोते।
तिक्त दिखते किन्तु स्वर्णिम, प्रेम के अध्याय हैं ये !

~ अनुराधा पाण्डेय
_दिवस☕

शाम की वो #चाय, जिसमें नेह संग बातें घुली-सी आपके सानिध्य के प्रिय!, सच कहूँ पर्याय हैं ये। व्यर्थ की बातें बहुत सी, और कुछ मनुहार होते। कुछ कुँवारे स्वप्न होते,मध्य में जो प्रेम बोते। तिक्त दिखते किन्तु स्वर्णिम, प्रेम के अध्याय हैं ये ! ~ अनुराधा पाण्डेय #चाय_दिवस☕
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जाने कब सूरज उगे, जाने कब हो भोर।
वैरी अँधियारा मिटे, जब हो सुखद अँजोर।।

भय, विनाश, का, रंग हुआ है लाल।
कौन रंग हो प्यार का, है यह कठिन सवाल।।

~ रंजना वर्मा
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खौफ़ अब का जड़ से मिटाना चाहिए,
नीड से भटके खगों को, फिर बसाना चाहिए।

हादसे हों नित नये, पैमाइशों पर धर्म की,
खेल ऐसा अब न बच्चो को सिखाना चाहिए !

~ सुनील त्रिपाठी
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