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Jacinta Kerketta

@JacintaKerkett2

Poet, Writer, Independent Journalist.
तीन कविता संग्रह प्रकाशित: अंगोर, जड़ों की ज़मीन, ईश्वर और बाज़ार. पहला संग्रह इंग्लिश,जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में प्रकाशित.

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calendar_today15-04-2021 00:48:40

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Jharkhand Janadhikar Mahasabha(@JharkhandJanad1) 's Twitter Profile Photo

In today's press con, economists Jean Dreze and Reetika Khera explained the dire situation of informal workers. Real wages have barely risen in India since 2014-15, despite rapid GDP growth. 1/n nolina minj Siddharth Dipankar Bahujan Economists G Sampath Priscilla Jebaraj

In today's press con, economists Jean Dreze and Reetika Khera explained the dire situation of informal workers. Real wages have barely risen in India since 2014-15, despite rapid GDP growth. 1/n @knowleena @svaradarajan @Dipankar_cpiml @BahujanEcon @samzsays @prisjebaraj
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Ajeet Singh(@geoajeet) 's Twitter Profile Photo

जनगणना न होने से करीब 10 करोड़ लोग राशन से वंचित! अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा का कहना है कि स्वतंत्र भारत में पहली बार जनगणना नहीं हुई। इस कारण झारखंड के 44 लाख लोगों समेत देश की 10 करोड़ आबादी खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत राशन के हक से वंचित है। Road Scholarz Right to Food, India

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आज शाम कोलकाता में हिंदी,मैथिली,मराठी, कन्नड़,मलयालम,संस्कृत, पंजाबी भाषा के चार वरिष्ठ और चार युवा लेखक, कवि सम्मानित हुए. इस दौरान अपनी बातें और कविताएं साझा करना हुआ. भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता भारतीय भाषाओं और साहित्य को समृद्ध करने वाली देश की प्रतिनिधि सांस्कृतिक संस्था है.

आज शाम कोलकाता में हिंदी,मैथिली,मराठी, कन्नड़,मलयालम,संस्कृत, पंजाबी भाषा के चार वरिष्ठ और चार युवा लेखक, कवि सम्मानित हुए. इस दौरान अपनी बातें और कविताएं साझा करना हुआ. भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता भारतीय भाषाओं और साहित्य को समृद्ध करने वाली देश की प्रतिनिधि सांस्कृतिक संस्था है.
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कुछ दूर तक ढेर सारी तितलियां दिखती हैं. उड़ती हुई आती हैं और चेहरे से टकरा जाती हैं. फिर भाग जाती हैं. पेड़ों की कतारें कुछ दूर तक साथ चलती हैं. पहाड़ भी एक मोड़ तक आते हैं. फिर छोड़कर लौट जाते हैं. फिर आगे अकेले ही चलना होता है. बिना पेड़ों के, पहाड़ों के और तितलियों के.

कुछ दूर तक ढेर सारी तितलियां दिखती हैं. उड़ती हुई आती हैं और चेहरे से टकरा जाती हैं. फिर भाग जाती हैं. पेड़ों की कतारें कुछ दूर तक साथ चलती हैं. पहाड़ भी एक मोड़ तक आते हैं. फिर छोड़कर लौट जाते हैं. फिर आगे अकेले ही चलना होता है. बिना पेड़ों के, पहाड़ों के और तितलियों के.
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गांव में कई दलित परिवार हैं. उनसे मिलने जाने पर मैंने पूछा 'क्या कहूं आपको?' ' मां कहो.' उन्होंने कहा. इस रिश्ते से बहुत सारे परिवार मिले हैं. बहुत सारी माएं भी. इस वर्ष भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के युवा पुरस्कार की राशि दलित और आदिवासी परिवारों के कुछ बच्चों की शिक्षा को जाएगी.

गांव में कई दलित परिवार हैं. उनसे मिलने जाने पर मैंने पूछा 'क्या कहूं आपको?' ' मां कहो.' उन्होंने कहा. इस रिश्ते से बहुत सारे परिवार मिले हैं. बहुत सारी माएं भी. इस वर्ष भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता के युवा पुरस्कार की राशि दलित और आदिवासी परिवारों के कुछ बच्चों की शिक्षा को जाएगी.
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डरे हुए आदमी को
.........
डरे हुए आदमी को प्रेम
साहसी नहीं बनाता
उसे और अधिक डराता है।

© जसिंता केरकेट्टा
कविता संग्रह : 'प्रेम में पेड़ होना' से
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली.
amzn.in/d/9mKAT4w

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क्रूरता की संस्कृति से लबरेज समाज किसी भी तरह के फासीवाद के खिलाफ़ खड़ा होने का नैतिक साहस खो देता है. कैसे कोई समाज फासीवाद को जन्म देता है. अखिल जन साहित्य सम्मेलन,ओड़िशा में झारखंड के चर्चित उपन्यासकार, कथाकार, कवि रनेंद्र जी साहित्यिक सिद्धान्तकार ऐजाज़ अहमद को कोट करते हुए.

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इंसान जितना संकीर्ण होता है उसे व्यापक होने का उतना ही नाटक करना पड़ता है. धरती,आकाश और समुद्र को कोई नाटक नहीं करना पड़ता. उनके साथ जीते लोगों को भी. उन्हें सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.

(कवि हेमंत के साथ. वे गोंड आदिवासी समाज से हैं. उड़िया भाषा में लिखते हैं. यह ओड़िशा है.)

इंसान जितना संकीर्ण होता है उसे व्यापक होने का उतना ही नाटक करना पड़ता है. धरती,आकाश और समुद्र को कोई नाटक नहीं करना पड़ता. उनके साथ जीते लोगों को भी. उन्हें सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है. (कवि हेमंत के साथ. वे गोंड आदिवासी समाज से हैं. उड़िया भाषा में लिखते हैं. यह ओड़िशा है.)
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जंगल में सेमल, पलाश, सरई सारे फूल अपने-अपने रंग लेकर खिले हुए हैं. कुछ आदिवासी समुदाय इन दिनों फूलों का पर्व बाहा पर्व, बा: पर्व मनाते हैं. इसके बाद लोग प्रकृति पर्व सरहुल, खद्दी पर्व मनायेंगे. प्रकृति के पास सारे जीवंत रंग हैं. उसके बचे रहने से ही हमारे जीवन में रंग बचे रहेंगे.

जंगल में सेमल, पलाश, सरई सारे फूल अपने-अपने रंग लेकर खिले हुए हैं. कुछ आदिवासी समुदाय इन दिनों फूलों का पर्व बाहा पर्व, बा: पर्व मनाते हैं. इसके बाद लोग प्रकृति पर्व सरहुल, खद्दी पर्व मनायेंगे. प्रकृति के पास सारे जीवंत रंग हैं. उसके बचे रहने से ही हमारे जीवन में रंग बचे रहेंगे.
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'मेरी आंखें भीग गईं थी' एक दिन कविताएं सुनकर उन्होंने कहा. मैंने कहा 'ज़मीन पर खड़े होकर देश को देखें. यह अलग दिखता है.' वह मोटरसाइकिल यात्रा पर निकल गए. उस यात्रा ने नए अनुभव दिए. आज उसी क्षेत्र के नेतृत्व की तैयारी में हैं. लोगों के लिए समर्पित इस इंसान को शुभकामनाएं. Sasikanth Senthil

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एक विकास है जिसका पेट कभी नहीं भरता है. अपनी भूख मिटाने के लिए वह हमेशा आदिवासी इलाकों की तरफ़ ही आता है. पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों ने जिस प्रकृति को संभाल कर रखा है, वहां ज़मीन, जंगल, पहाड़, नदी सबकुछ खा जाता है. विकास की ऐसी भूख के खिलाफ़ ही लद्दाख में लोग 20 दिनों से अनशन पर हैं.

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देश न था
डोंगर देवा था

डोंगर देवा था तभी तो
धूप हो ताप हो
मिट्टी से,महुआ से,मधुछत्ते से
सूख नही रहा था रस
चाहे जितना भी दुह लो
भरता जा रहा था सलप का पेड़

हमारा वह हर्ताकर्ता ईष्ट देवा को
निगल जाने की खातिर
मुंह फैलाए
लो आज दौड़ आया है देश

पिशाच!

: कवितांश
कवि अखिल नायक

देश न था डोंगर देवा था डोंगर देवा था तभी तो धूप हो ताप हो मिट्टी से,महुआ से,मधुछत्ते से सूख नही रहा था रस चाहे जितना भी दुह लो भरता जा रहा था सलप का पेड़ हमारा वह हर्ताकर्ता ईष्ट देवा को निगल जाने की खातिर मुंह फैलाए लो आज दौड़ आया है देश पिशाच! : कवितांश कवि अखिल नायक
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ओड़िशा के कवि अखिल नायक जनकवि थे. वे आजीवन जल, जंगल, ज़मीन के लिए संघर्ष करते लोगों के लिए कविताएं लिखते रहे. उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने उनके नाम पर 'अखिल जन साहित्य सम्मेलन' का आयोजन किया है. 31 मार्च को ओड़िशा में कविता पाठ होगा. चारों तरफ़ से लोग जुटेंगे. उन्हें याद करेंगे.

ओड़िशा के कवि अखिल नायक जनकवि थे. वे आजीवन जल, जंगल, ज़मीन के लिए संघर्ष करते लोगों के लिए कविताएं लिखते रहे. उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने उनके नाम पर 'अखिल जन साहित्य सम्मेलन' का आयोजन किया है. 31 मार्च को ओड़िशा में कविता पाठ होगा. चारों तरफ़ से लोग जुटेंगे. उन्हें याद करेंगे.
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साधारण लोग समझते हैं कि अति शक्तिशाली नेता उन्हें भविष्य के संकटों से बचा सकता है. इसलिए वे अपना शासक चुन लेते हैं. पर शक्तिशाली नेता साधारण लोगों को विकास और शांति के नाम पर युद्ध में, दंगों में, हिंसा में झोंक देता है. और आमरण अनशन में बैठे लोगों को मरने के लिए छोड़ देता है.

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इस देश के भीतर कई देश हैं. सबकी अपनी भाषा, संस्कृति, जीवन शैली है. सबने अपनी भिन्नता के साथ इस देश को स्वीकार किया है. इसी स्वीकार से यह देश बना है. इस भिन्नता को स्वीकार करना चाहिए. लद्दाख में 12 दिनों से लोग अनशन पर बैठे हैं. देश से प्यार करने वालों को उन्हें सुनना चाहिए.

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