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जानिए महर्षि चरक के बताए 8 अद्भुत नियम, जो आपकी पूरी जिंदगी बदल सकते हैं! भोजन केवल पेट भरने का माध्यम नहीं है — यह शरीर, मन और आत्मा का पोषण करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम में से 99% लोग रोज़ाना खाने के बुनियादी नियमों को तोड़ रहे हैं?

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हज़ारों साल पहले महर्षि चरक ने आयुर्वेद में भोजन के जो नियम बताए थे, वो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे। इन नियमों का पालन करके हम अनेक बीमारियों से बच सकते हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पा सकते हैं। आइए जानते हैं आयुर्वेद में बताए गए भोजन के 8 सबसे महत्वपूर्ण नियम –

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1. ऊष्णम् (Ushnam) – खाना गर्म और ताजा होना चाहिए महर्षि चरक कहते हैं कि भोजन हमेशा गर्म, ताजा और पकाया हुआ होना चाहिए। आज के समय में प्रोसेस्ड, फ्रोज़न और बासी भोजन आम हो गया है — यही आदत शरीर को रोगों का घर बना देती है। फ्रिज का खाना फिर से गर्म करके खाना पाचन को बिगाड़ता है

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2. स्निग्धम् (Snigdham) – भोजन में घी और तेल का संतुलित उपयोग करें हमारा शरीर सात धातुओं से बना है, जिनमें से अधिकांश चिकनाईयुक्त होती हैं। इसलिए भोजन में थोड़ी मात्रा में घी या तेल आवश्यक है। लेकिन यह तभी पचता है जब आपकी जठराग्नि (पाचन अग्नि) मजबूत हो। भोजन के साथ हल्का

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3. मात्रावत (Matravat) – भोजन की मात्रा उचित हो भोजन उतना ही करें जितना शरीर आराम से पचा सके। आयुर्वेद कहता है: 50% ठोस आहार + 25% तरल + 25% पेट खाली भोजन के बाद मन प्रसन्न हो, शरीर हल्का लगे – यही सही मात्रा का संकेत है।

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4. जीर्णे (Jirne) – पिछला भोजन पूरी तरह पचने के बाद ही अगला भोजन करें भोजन के बीच कम से कम 4–6 घंटे का अंतर होना चाहिए। अधपचा भोजन नया भोजन पचाने में रुकावट बनता है, जिससे गैस, सूजन, और अपच जैसी समस्याएं होती हैं। हर समय कुछ न कुछ खाते रहना आपकी पाचन शक्ति को कमजोर करता है।

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5. देशे देशे (Deshe Deshe) – शांत और सकारात्मक वातावरण में खाएं खाते समय मोबाइल, टीवी, तेज़ शोर, या बहस जैसे तनाव देने वाले माहौल से बचें। भोजन एक ध्यान साधना की तरह होना चाहिए। जिस वातावरण में आप खा रहे हैं, वही आपके पाचन और मनोदशा पर असर डालता है।

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6. सर्वोपकरणयुक्तं (Sarvopkaranayuktam) – सभी रसों (षडरस) से युक्त भोजन लें आयुर्वेद कहता है कि हर भोजन में 6 स्वाद (रस) होने चाहिए: मधुर (मीठा) अम्ल (खट्टा) लवण (नमकीन) कटु (तीखा) तिक्त (कड़वा) कषाय (कसैला) ये 6 रस न केवल स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि शरीर को संतुलित रखते

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7. ना बहुत तेज खाएं, ना बहुत धीरे – और भोजन को खूब चबाकर खाएं बहुत तेज खाने से पाचन बिगड़ता है, वात दोष बढ़ता है। धीरे-धीरे और हर कौर को 32 बार चबाकर खाने से पाचन तंत्र को कम मेहनत करनी पड़ती है। मोबाइल और टीवी देखते हुए खाना सबसे बड़ी गलती है। यह आदत आपको Overeating और अपच की

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8. शांत चित्त से, मन लगाकर भोजन करें – “अजल्पं, अहसनं, तन्मना भुञ्जीत” 👉 मतलब: भोजन करते समय बोलना नहीं, हँसना नहीं, और पूरी एकाग्रता से खाना चाहिए। जैसे ध्यान करते हैं, वैसे ही भोजन करना चाहिए। भोजन को सम्मानपूर्वक ग्रहण करना ही उसे “प्रसाद” बनाता है। 🙏 आभार के साथ भोजन

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आयुर्वेद हमें सिखाता है कि “हम जैसा खाते हैं, वैसे ही बनते हैं।” अगर आप इन 8 नियमों का पालन करते हैं, तो आपको डॉक्टर की ज़रूरत कम पड़ेगी। भोजन को दवा बना लें, ताकि आपको बीमारी के लिए दवा न लेनी पड़े।