Ashok Mushroof
@AMushroof
कवि,लेखक,विचारक
ID:1073086574294900736
13-12-2018 05:25:51
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सरकार द्वारा
तय मजदूर की मजदूरी से
सबसे पहले
सरकारी मंत्री, रौबदार अफ़सर,
दफ्तर का बाबू, बैंक कर्मचारी,
ग्रामप्रधान, ठेकेदार आदि
अपनी भूख मिटाते है
फिर
जो भी बचता है
उससे वह अमीर मजदूर
अपने गरीब बच्चों को
आधापेट भोजन के
फायदे गिनवाता है ।
#LabourDay
#InternationalWorkersDay
जिंदगी के रंजो ग़म गोद में उसकी भूल जायेगा
हम सफ़र क्या चीज़ है बुढ़ापे में समझ आयेगा
#अशोक_मसरूफ़
रास्ते में ये संग ओ खार ,
किसने बिछाए,हमने
शब की तीरी से बच रहे हैं
चले हैं हसीं ख़्वाब ढूंढने
तीरी-- अंधकार
#अशोक_मसरूफ़
तेरा हुस्न ख़्वाब है,तसकीन है,तमाशा है
एक अक्स चश्म में,चमकता बेतहाशा है
तेरा फूल सा चेहरा, पलकों से छू छू कर
रात को आइना किया,दिन को तराशा है
तसकीन--तसल्ली अक्स--प्रतिबिंब
#अशोक_मसरूफ़
सूरज को चरागों से चिढ़ाया है दवाम
आज जुगनू इत्तिका हैं काम न काम
दवाम-हमेशा इत्तिका-सहारा काम न
काम--मज़बूरी में
#अशोक_मसरूफ़
#लफ़्ज़_दिल_से
यहां हर किसी को बस
मतलब है तो ख़ुद से,,
अगले को क्या चाहिए उसका
तनिक मात्र भी इल्म नहीं!!
✍️✍️
उसके लबों से लब मिलाने को जी चाहता है
शाम होती है,चश्म में सुर्ख़ रंग उतर आता है
चश्म--आंख
#अशोक_मसरूफ़
हवाओं ने पत्तों को उठाया, ले जा के पटका दूर
तुमको पसंद आया,नातवाँ को ताज़ीर का दस्तूर
नातवाँ-दुर्बल ताज़ीर-सज़ा
#अशोक_मसरूफ़
ये सहरा ये आबशार क्या कीमत लगायेंगें
हम अपनी तिश्नगी समेट दहन में लौट आएंगे
आबशार--झरना दहन--मूँह तिश्नगी -प्यास
#अशोक_मसरूफ़
#मज़दूर से साहब ने जब पूछा,क्या चाहिये तुझे
बोला कुछ नहीं,कमीज़ उठाई पेट दिखा दिया
#अशोक_मसरूफ़
#विश्व_श्रमिक_दिवस
#LabourDay2024
ख़ामोश निगाहें कह देती हैं,दर्द हमारे दिल के
इन हंसते होठों के,झूठे नगमों से क्या होता है
#अशोक_मसरूफ़
रात भर कोशिश के बाद सूरज उगेगा,और उजाला होगा अभी
हम ठहरे अंधेरो के कोहना आशिक़,उजाला तो होगा अज़नबी
कोहना-- पुराने
#अशोक_मसरूफ़
कर्म भूमि संसार ये #श्रम हर एक को करना है
उसने तो लकीरें खींच दी रंग हमको भरना है
#अशोक_मसरूफ़
#laboursday
रास्ते में ये संग ओ खार ,
किसने बिछाए,हमने
शब की तीरी से बच रहे हैं
चले हैं हसीं ख़्वाब ढूंढने
तीरी-- अंधकार
#अशोक_मसरूफ़