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स्वामी संदीपानी

@swamisandeepani

श्री महंत - श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा। International Speaker! Mystically working for Human Transformation! Social-Reformer! Transcending lives! भज मन 🙏 ओ३म्

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In a world where social connections and community often define our sense of identity, the concept of 'belonging to oneself' can seem both radical and essential. This idea suggests a profound inner journey of self-discovery and self-acceptance, a path that often contrasts with the

In a world where social connections and community often define our sense of identity, the concept of 'belonging to oneself' can seem both radical and essential. This idea suggests a profound inner journey of self-discovery and self-acceptance, a path that often contrasts with the
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In a world where social connections and community often define our sense of identity, the concept of 'belonging to oneself' can seem both radical and essential. This idea suggests a profound inner journey of self-discovery and self-acceptance, a path that often contrasts with the

In a world where social connections and community often define our sense of identity, the concept of 'belonging to oneself' can seem both radical and essential. This idea suggests a profound inner journey of self-discovery and self-acceptance, a path that often contrasts with the
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|| वाणी पर नियंत्रण या शब्दों के दास ||
एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है।
यह बात दूर-दूर तक फैल गई आस-पास के लोग उस नौजवान से बचने लगे।
नौजवान परेशान हो गया, कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था।
एक बार गाँव में चोरी की एक वारदात हुई और

|| वाणी पर नियंत्रण या शब्दों के दास || एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है। यह बात दूर-दूर तक फैल गई आस-पास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया, कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था। एक बार गाँव में चोरी की एक वारदात हुई और
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क्याँ यह हो सकता है ?
Is it possible, Projecting your phone's screen onto the wall like a projection, using a wine glass ?

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'सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ । जहँ न राम पद पंकज भाऊ ॥ जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू । जहँ नहिं राम पेम परधानू ॥'
यह दोहा भगवान रामचंद्र जी के भक्ति और उनके प्रेम को स्वरूपित करता है, जो सत्य धर्म और आध्यात्मिक साधना की महत्ता को उजागर करता है। यह एक प्रेरणादायक दोहा है जो हमें सत्य,

'सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ । जहँ न राम पद पंकज भाऊ ॥ जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू । जहँ नहिं राम पेम परधानू ॥' यह दोहा भगवान रामचंद्र जी के भक्ति और उनके प्रेम को स्वरूपित करता है, जो सत्य धर्म और आध्यात्मिक साधना की महत्ता को उजागर करता है। यह एक प्रेरणादायक दोहा है जो हमें सत्य,
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ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है? मुक्ति कैसे मिलती है? वैराग्य कैसे प्राप्त होता है? कृपया इसे मुझे समझाइये, हे प्रभु।
कथं ज्ञानमवाप्नोति कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्यं च कथं प्राप्तमेतद्ब्रूहि मम प्रभो॥
श्लोक की व्याख्या: ज्ञान, मुक्ति और वैराग्य का मार्ग
यह श्लोक, अष्टावक्र गीता

ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है? मुक्ति कैसे मिलती है? वैराग्य कैसे प्राप्त होता है? कृपया इसे मुझे समझाइये, हे प्रभु। कथं ज्ञानमवाप्नोति कथं मुक्तिर्भविष्यति। वैराग्यं च कथं प्राप्तमेतद्ब्रूहि मम प्रभो॥ श्लोक की व्याख्या: ज्ञान, मुक्ति और वैराग्य का मार्ग यह श्लोक, अष्टावक्र गीता
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'न तुम पृथ्वी हो, न जल, न अग्नि, न वायु, न आकाश और न ही यह शरीर। इन सबके साक्षीस्वरूप चिद्रूप आत्मा को जानो, जो मुक्ति का साधन है।'
भारतीय दर्शन और वेदांत में कई गूढ़ श्लोक हैं जो आत्मा और मोक्ष के सिद्धांतों को समझाते हैं। ऐसा ही एक श्लोक है:
'न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न

'न तुम पृथ्वी हो, न जल, न अग्नि, न वायु, न आकाश और न ही यह शरीर। इन सबके साक्षीस्वरूप चिद्रूप आत्मा को जानो, जो मुक्ति का साधन है।' भारतीय दर्शन और वेदांत में कई गूढ़ श्लोक हैं जो आत्मा और मोक्ष के सिद्धांतों को समझाते हैं। ऐसा ही एक श्लोक है: 'न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न
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'हे तात (पुत्र), यदि तुम मुक्ति चाहते हो, तो विषयों को विष के समान त्याग दो। और क्षमा, सरलता, दया, संतोष और सत्य को अमृत के समान ग्रहण करो।'
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान्विषवत्त्यज।
क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज ॥
यदि हम मुक्ति या आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति करना चाहते हैं, तो

'हे तात (पुत्र), यदि तुम मुक्ति चाहते हो, तो विषयों को विष के समान त्याग दो। और क्षमा, सरलता, दया, संतोष और सत्य को अमृत के समान ग्रहण करो।' मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान्विषवत्त्यज। क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज ॥ यदि हम मुक्ति या आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति करना चाहते हैं, तो
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|| शिव को समर्पण: जीवन की संपूर्णता की कुंजी ||
भारतीय संस्कृति और धर्म में भगवान शिव का विशेष स्थान है। वे केवल एक देवता नहीं हैं, बल्कि एक जीवन शैली, एक दर्शन और एक अध्यात्मिक मार्गदर्शक भी हैं। शिव को महादेव कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'महान देवता'। वे विनाश के देवता हैं, जो नई

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भगवान शिव के अनेक रूप: भरतनाट्यम् के माध्यम से यहाँ प्रस्तुत हैं।
भगवान शिव, जिन्हें महादेव भी कहा जाता है, उनके अनेक रूप और अवतार हैं। उनके हर रूप का एक विशिष्ट महत्व और प्रतीकात्मकता है। यहाँ भगवान शिव के कुछ प्रमुख रूपों की नृत्य से दर्शन।

1. डमरुधर
डमरुधर शिव का वह रूप है

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मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति।
अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम्।।
'एक महान आत्मा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मर सकता है, परंतु कभी भी कायरता या दीनता को प्राप्त नहीं होता। जैसे अग्नि कभी ठंडी नहीं होती, वैसे ही एक सच्चा योद्धा कभी हतोत्साहित नहीं होता।'
इस

मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति। अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम्।। 'एक महान आत्मा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मर सकता है, परंतु कभी भी कायरता या दीनता को प्राप्त नहीं होता। जैसे अग्नि कभी ठंडी नहीं होती, वैसे ही एक सच्चा योद्धा कभी हतोत्साहित नहीं होता।' इस
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साहस का अर्थ यह नहीं होता कि आप डर का सामना नहीं करते। साहस का अर्थ यह होता है कि आप डर को आपको रोकने नहीं देते। यह एक शक्तिशाली अद्भुत गुण है जो हमें आगे बढ़ने में मदद करता है।

जीवन में हर किसी के सामने कभी-कभी डर खड़ा होता है। डर सामने आने वाली चुनौतियों और अनियांत्रित

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इस ब्रह्मांड में अपने अपनी संतानों को कर्म और धर्म का ज्ञान प्रदान करना सभी जीव मात्र का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख कर्तव्य है। 👇 वे हमारे विचारों, आचरण, और मूल्यों को अपनाते हैं, जो हम उन्हें सिखाते हैं। इसलिए, हमारा दायित्व है कि हम उन्हें सही मार्ग दिखाएं और उन्हें उचित ज्ञान

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यह श्लोक श्री भगवद गीता जी के अध्याय २, श्लोक ५० में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी से प्राप्त होता है। “मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति। अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम्।।' इसमें मनस्वी व्यक्ति को समर्थ और उत्साही होने की प्रेरणा दी जाती है। यह बताता है कि अपने

यह श्लोक श्री भगवद गीता जी के अध्याय २, श्लोक ५० में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी से प्राप्त होता है। “मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति। अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम्।।' इसमें मनस्वी व्यक्ति को समर्थ और उत्साही होने की प्रेरणा दी जाती है। यह बताता है कि अपने
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आज हमारे स्नेहिल श्री अतुल कृष्ण जी का जन्मदिवस है Atulkrishan
अतुल जी, आप एक अद्भुत और प्रेरणादायक व्यक्ति हैं, जो हमेशा हर कार्य में उत्साह, उम्मीद और संघर्ष के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। आपका जन्मदिवस धूमधाम से गुजरे और आपके जीवन के हर क्षण को

आज हमारे स्नेहिल श्री अतुल कृष्ण जी का जन्मदिवस है @iAtulKrishan1 अतुल जी, आप एक अद्भुत और प्रेरणादायक व्यक्ति हैं, जो हमेशा हर कार्य में उत्साह, उम्मीद और संघर्ष के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। आपका जन्मदिवस धूमधाम से गुजरे और आपके जीवन के हर क्षण को
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श्री गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'आकिञ्चन्ये न मोक्षोऽस्ति किञ्चन्ये नास्ति बन्धनम्। किञ्चन्ये चेतरे चैव जन्तुर्ज्ञानेन मुच्यते।।' यह श्लोक व्यक्ति को ज्ञान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। यह बताता है कि ज्ञान के प्राप्त होने से ही व्यक्ति अपने

श्री गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'आकिञ्चन्ये न मोक्षोऽस्ति किञ्चन्ये नास्ति बन्धनम्। किञ्चन्ये चेतरे चैव जन्तुर्ज्ञानेन मुच्यते।।' यह श्लोक व्यक्ति को ज्ञान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। यह बताता है कि ज्ञान के प्राप्त होने से ही व्यक्ति अपने
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Enlightening conversation with स्वामी संदीपानी ji who emphasized how Ashwatha Tree Books is connecting children with their values & culture. Life's journey begins with oneself. Connect your children with culture & values through .

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धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु भोजनवृत्तिषु।
अतृप्ताः मानवाः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।।
यह श्लोक विचारशीलता और नैतिकता की महत्वपूर्ण बातें व्यक्त करता है। यह कहता है कि वे लोग अतृप्त (असंतुष्ट) होते हैं, जो धन, जीवन, स्त्रियाँ, और भोजन की चीजों के प्रति संतुष्ट नहीं होते हैं।

धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु भोजनवृत्तिषु। अतृप्ताः मानवाः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।। यह श्लोक विचारशीलता और नैतिकता की महत्वपूर्ण बातें व्यक्त करता है। यह कहता है कि वे लोग अतृप्त (असंतुष्ट) होते हैं, जो धन, जीवन, स्त्रियाँ, और भोजन की चीजों के प्रति संतुष्ट नहीं होते हैं।
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सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।
इस श्लोक में एक महत्वपूर्ण सत्य व्यक्त किया गया है जो हमें मन की शांति और सुख की प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताता है। यह कहता है कि दुःख उसे प्राप्त होता है जो बाह्य परिस्थितियों के प्रति परवश है,

सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्। एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।। इस श्लोक में एक महत्वपूर्ण सत्य व्यक्त किया गया है जो हमें मन की शांति और सुख की प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताता है। यह कहता है कि दुःख उसे प्राप्त होता है जो बाह्य परिस्थितियों के प्रति परवश है,
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Beyond Pride: Unraveling the Depths of Love

In the intricate tapestry of human emotions, pride often stands as a barrier, obscuring the profound depths of love that lie beyond. Yet, where pride ends, love begins its transformative journey, weaving connections that transcend ego

Beyond Pride: Unraveling the Depths of Love In the intricate tapestry of human emotions, pride often stands as a barrier, obscuring the profound depths of love that lie beyond. Yet, where pride ends, love begins its transformative journey, weaving connections that transcend ego
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