सुमन्त
@sumantkabir
24 साल हिंदी-अंग्रेजी के राष्ट्रीय कारोबारी मीडिया में रहा। विद्वान नहीं, जिज्ञासु हूँ। चंबल में गाय चराता हूं।
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11-02-2013 06:48:15
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कम मित्रों को जानकारी होगी, हिंदी साहित्य शिरोमणि पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी के भाई पंडित रमानाथ द्विवेदी जी प्रकांड आयुर्वेदाचार्य थे। काशी के भेलुपुरा में रहते थे। उन्हें #वैद्य_वृहस्पति की उपाधि मिली थी।
मित्रों की जानकारी के लिए।
कौन सी बड़ी बात है? यह काम तो राहुल गांधी भी कर सकते हैं। बस Jairam Ramesh आइडिया दे दें।
हिन्दू के सामने उसका कोई #धर्मग्रन्थ जलाएंगे तो वह इस्लाम या ईसाई की तरह हिंसक प्रतिक्रिया नहीं देगा। एक अनपढ़ हिन्दू को भी मालूम है, शब्द, कागज स्थूल जगत का विषय है, जबकि #शब्द_ऊर्जा का अस्तित्व #अंनत_ब्रह्मांड में सुरक्षित है। भले शब्दों में इस भाव को व्यक्त ना कर सके।
अब्रह्मिक सियासत के तहत हिन्दू समाज में जाति/आस्था के परचम तले जो भी #विभेदकारी_सोच घुसेड़ी गई है, उनका जीवन लंबा नहीं है। #प्रकृति का मूल नियम #स्वीकारना है। #बांधना या #खारिज करना नहीं। हिन्दू चेतना के संसार की आधारशिला में #स्वीकार्यता है। इस्लाम और इसाईत्व #खारिज करता है।
हिन्दू की मूल चेतना #ओरिएंटेशन यानी #माध्यम है। जीव-निर्जीव सभी में #ईश्वरत्व को स्वीकारता है। जबकि इस्लाम #किबला यानी #डायरेक्शन है। वह कहता है, अल्लाह ही एकमात्र है। इस्लाम में #ईश्वरत्व नहीं है। इसलिए एक #धर्मनिष्ठ को स्वीकार्य नहीं है। #खारिज करने में हमारी आस्था नहीं।
बंगाल और बिहार..इस बार निर्णायक परिवर्तन का संदेश देंगे। यह बात मोदी की रैली से नहीं, #कथित_मुख्यधारा को ध्वस्त कर #भदेस_भारत में उठते उफान से कह रहा हूं।
सोशल मीडिया पर कभी लिखा था, बहुसंख्य समाज का #सांस्कृतिक_नवोन्मेष जब गति पकड़ेगा...फ़िल्म, कला, पेंटिंग, खेल, साहित्य, राजनीति, इतिहास...यानी जीवन का कोई क्षेत्र नहीं बचेगा, जिसमें आमूल परिवर्तन ना हो। सत्ता संघर्ष इस जागरण का बहुत छोटा हिस्सा है। पुरखों की देय शक्ति को समझिए।
95 वर्ष की उम्र में जब तुलसीदास जी की कुंडलिनी जाग्रत हुई तो उन्होंने कहा, मुझे #पार्वती_मैया से मिला दो। राम, कृष्ण या महादेव किसी को याद नहीं किया। मेरी दृष्टि में #तुलसीदास_पार्वती_मैया का सन्दर्भ संसार का सर्वश्रेष्ठ #मां_पुत्र संबध का उदाहरण है। कथा पढ़ी है?
#मातृ_दिवस
आज #महाकवि_सूरदासजी जन्मदिन है। पर धिक्कार है जो हिंदी की रोटी खाने वाले किसी प्रोफेसर या शिक्षक ने उन्हें याद किया हो। हिंदी पट्टी में राजनीति ही सब कुछ हो चुकी है। चकित रह जाता हूं, जन्मना नेत्रहीन महाकवि के बाल कृष्ण की लीलाएं और यशोदा मैया के अनुभव संसार को पढ़कर। संभव है?