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Shakeel Akhtar

@shakeelNBT

Journalist, Commentator on current affairs.
Former Political Editor and Chief of Bureau
Navbharat Times

ID:1201108172

calendar_today20-02-2013 13:48:19

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बुंदेलखंड निर्माण मोर्चे ने लोकसभा के प्रथम चरण के मतदान से पहले राज्य निर्माण के लिए एक ओजस्वी गीत जारी किया है-

' कट भी जाएं सर हजारों
शौक से कट जाने दो
पर विरासत अपनी बुंदेली
न मिटने देंगे हम'

चुनाव के समय तेज हो गई मोर्चा की सक्रियता ने बुंदेलखंड में नई हलचल मचा दी है।

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राहुल को नेगेटिव मार्किंग शुरू कर देना चाहिए।

उन्होंने माहौल बना दिया है।

बेरोजगारी और महंगाई सबसे बड़े इशु बन गए हैं।

मगर कांग्रेसी ग्राउंड में इन इशू के साथ नहीं जा रहे हैं।

सोशल मीडिया में अपने वीडियो डालकर खुश हैं।

राहुल को और उदार बनने से इनकार करना होगा।

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बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा ने हमीरपुर सांसद पुष्पेन्द्र चंदेल के अलावा क्षेत्र के अन्य 8 सांसदों अनुराग शर्मा, भानू वर्मा, विष्णु शर्मा, वीरेंद्र खटीक, आरके पटेल, श्रीमती संध्या राय, श्रीमती लता वानखेड़े, राहुल सिंह को बुंदेलखंड निर्माण विरोधी बताते हुए वोट नहीं देने की अपील की है।

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जो श्मशान और कब्रिस्तान को मुद्दे बनाते हों वह मटन और सावन को नहीं बनाएंगे तो क्या बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी खर्चे पर शिक्षा देने, सरकारी इलाज देने को बनाएंगे?

वे राजस्थान के उण्डू काशमीर को भारत का मुकुट कश्मीर समझेंगे।

और अभी गढ़वाल के श्रीनगर को कश्मीर का श्रीनगर बताएंगे।

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जो भी जनता के बीच जाता है जाता रहता है उसे पहले से पता था कि यह दो मुद्दे बेरोजगारी और महंगाई जनता को सबसे ज्यादा कटोच रहे हैं।

नंबर एक पर बेरोजगारी इसलिए कि लोग कहते हैं कि अगर काम धंधा हो तो कुछ महंगा भी खरीद सकते हैं।
मगर जब रोजगार नहीं है तो महंगाई दोगुनी लगती है।

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इंडिया गठबंधन सही रास्ते पर जा रहा है बस शर्त यह है कि उसे भटकना नहीं चाहिए।

CSDS लोकनीति के हाल ही में आए चुनाव पूर्व सर्वे से भी साबित हो गया की सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी 27% और उसके बाद महंगाई 23% है।
राम मंदिर का मुद्दा कहीं नहीं है।

अब कोई कुछ कहे इन्हीं 2 पर डटना है।

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सब कीचड़ में उतरकर लड़ने लगे हैं कंगना से।

बीजेपी सफल हो गई।
उसने कंगना को उतारा ही इसीलिए था।

कंगना की बातों का जवाब कोई दे तो वह कंगना की श्रेणी में ही चला जाता है।

कांग्रेसी याद रखें इंदिरा गांधी ने कभी राजनारायण पीलू मोदी की बातों का जवाब नहीं दिया।

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मेदांता अस्पताल ने लूट लिया।
मेरी मां मर गई।

UP में मंत्री राजभर ने राज्य के सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं।

मगर क्या हुआ?

मेदांता के खिलाफ किसी जांच का ऐलान?
सरकारी अस्पतालों में स्थित क्यों खराब है इसकी कोई जांच।

कुछ नहीं।

मंत्री का कहना भी बेअसर।

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पहले चरण के मतदान में एक सप्ताह रह गया है।
कोई मुद्दा नहीं चल रहा।
इसलिए अब राष्ट्र प्रथम कह रहे हैं।

कोई सवाल मत करो दुख मत बताओ।
राष्ट्र प्रथम!

सही है।
कोई एतराज नहीं।
मगर राष्ट्र कौन सा?
खोखला या मजबूत!

राष्ट्र को खोखला करते जा रहे हो।
उसे मजबूत करके प्रथम करना है।

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असर तो पड़ता है।
मानना तो पड़ता है।
चाहे देर से मानो।

यह राहुल इंपैक्ट है।

अब मोदी जी कभी योगी जी को कभी पुष्कर धामी को हाथ पकड़ कर अपने सामने से निकाल रहे हैं।

राहुल आडवाणी का हाथ पड़कर उनके उठने बैठने में मदद करने से लेकर हर जगह सहज रूप से यह शिष्टाचार करते रहे हैं।

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यह खबर ज्यादा नहीं छपी।
Gulshan Rai Khatri ने इस पर अच्छा लिखा है। वे मेट्रो के एक्सपर्ट हैं।

मेट्रो को बड़ी राहत मिली है कि उसे 8000 करोड रुपए अनिल अंबानी को नहीं देना पड़ेंगे।

अगर यह पैसा देना पड़ते तो मेट्रो का भट्टा बैठ जाता।

और दूसरी बात गलती मेट्रो की नहीं। अंबानी भागा था।

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मोमोज बड़ी-बड़ी फैक्ट्री में बन रहा है। वहां से छोटे दुकानदारों को सप्लाई होता है। वेज ₹2 पर पीस के हिसाब से। और पनीर एवं नॉनवेज ₹3 पर पीस के हिसाब से।
सुबह से सप्लायर लड़के बड़े-बड़े बैगों में भरकर इन्हें सड़क किनारे के स्थान पर पहुंचाते हैं। ऐसे ही वेज चाप भी।

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की अरे सरकार क्या करे लोग ही ऐसे हैं।
त्योहारों के टाइम में अतिरिक्त ट्रेन और बसों का इंतजाम नहीं करने की बात अब कोई नहीं करता जनता पर ही दोष डाल दिया जाता है।
लोकतंत्र की इसे आप लास्ट स्टेज भी कह सकते हैं।
कह दिया जाएगा कि यह जनता लोकतंत्र नहीं चाहती।
उसके योग्य नहीं है।
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की दोष सिस्टम का है और मरने वाले सीधे मोक्ष को प्राप्त करेंगे।
हर चीज का दोष जनता का बताना दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी राजनीति का पुराना तरीका है।
इसमें खुद कुछ नहीं करना पड़ता केवल जनता को ही कसूरवार ठहरना पड़ता है।
और भोली जनता मान भी जाती है।
आपने हर जगह यह बात सुनी होगी
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कहा जाता है कि यह आवाज डबल इंजन सरकार के खिलाफ जा रही है। इसे बंद करो।
अस्पताल बनाने का काम सरकार का है मगर उसने 10 साल में कितने सरकारी अस्पताल बनाएं यह कोई नहीं पूछ सकता। हां मरीज और उनके घर वालों पर सवाल उठाकर चीजों को डाइवर्ट किया जा सकता है।
कोरोना में तो कहा ही गया था
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हैडिंग देख रहे थे कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर कह रहा है की घर वाले मरीज को भर्ती करने पर जोर डालते हैं अस्पताल बनवाने के लिए नहीं।
मतलब घर वाले अपने मरीज को भूलकर इस वक्त अस्पताल बनवाने के लिए आवाज़ उठाएं।
और आपको मालूम है आजकल आवाज उठाने पर कैसा व्यवहार होता है। सबसे पहले तो यही
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इनको सिखाया ही यह जाता है कि काम नहीं करो केवल माहौल बनाओ।
और दस साल में वह माहौल बन गया है।
जो काम खुद के करने के हैं सरकार के करने के हैं प्रशासन के करने के हैं उन्हें न करके सारा दोष जनता पर डाल दो।
और माहौल का असर कैसा होता है सब पर इसका असर पड़ता है। जाने अनजाने।
अभी एक
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