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Hindi Kavita

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•हिंदी कविता• समर्पित है हिंदी भाषा में लिखी गई कविताओं को एवं हिंदी कवियों को। हमारी कोशिश है कि हिंदी कविताएँ तथा उनका पढ़ा जाना इस दौर में और लोकप्रिय हो।

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हम किसी और की नहीं
अपनी प्रतीक्षा कर रहे हैं :
हमें अपने से दूर गए अरसा हो गया
और हम अब लौटना चाहते हैं :
वहीं जहाँ चाहत और हिम्मत दोनों साथ हैं,
जहाँ अकेले पड़ जाने से डर नहीं लगता,
जहाँ आततायी की चकाचौंध और धूम-धड़ाके से घबराहट नहीं होती

अशोक वाजपेयी

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एक चिड़िया इसलिए नहीं गाती कि उसके पास उत्तर है। वह इसलिए गाती है कि उसके पास गीत है।

माया एंजेलो

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शत्रु से मैं खुद निबटना जानता हूँ,
मित्र से पर, देव ! तुम रक्षा करो।

रामधारी सिंह 'दिनकर'

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आपके रविवार को और बेहतर बना देगी नरेश जी की बांसुरी:)
शब्द नहीं हैं यहाँ लेकिन क्या आप संवाद सुन पा रहे हैं? ऐसे अजीब आलम में यही सूझा..
एक ठण्डी हवा का झोंका

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हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

बशीर बद्र

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सात संदूकों में भरकर दफ्न कर दो नफरतें
आज इंसान को मोहब्बत की जरुरत है बहुत

बशीर बद्र

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दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में
जिन्हें तुमने जीता है
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।

कुँवर नारायण

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धीरे-धीरे'—
मुझे सख़्त नफ़रत है
इस शब्द से।
धीरे-धीरे ही घुन लगता है
अनाज मर जाता है,
धीरे-धीरे ही दीमकें सब-कुछ चाट जाती हैं
साहस डर जाता है।
धीरे-धीरे ही विश्वास खो जाता है
संकल्प सो जाता है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

बशीर बद्र

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अल्ला हू..

इस सिंधी सूफ़ी कलाम के साथ भरतनाट्यम एक प्रयोग है लेकिन शायद आपको भी पूर्णतः सहज लगे. उत्तर और दक्षिण की परम्पराओं का यह मिलन शायद भोपाल में ही संभव था। कई तरह की सांस्कृतिक और इंसानी सुंदरताओं को समेटे यह काम अपराजिता को समर्पित है, ये उनके जाने का समय नहीं था..

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दालानों की धूप छतों की शाम कहाँ
घर के बाहर घर जैसा आराम कहाँ

बाज़ारों की चहल-पहल से रोशन है
इन आँखों में मंदिर जैसी शाम कहाँ

मैं उसको पहचान नहीं पाया तो क्या
याद उसे भी आया मेरा नाम कहाँ

बशीर बद्र

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भागो नहीं,
दुनिया को बदलो।

राहुल सांकृत्यायन

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हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

साहिर लुधियानवी

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ये दुनिया दो-रंगी है।
एक तरफ़ से रेशम ओढ़े, एक तरफ़ से नंगी है ।

साहिर लुधियानवी

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आपका कैसा भी मूड हो आपके चेहरे पर एक मुस्कान आ ही जाएगी :)

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याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा

मीर तक़ी मीर

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