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गरिमा तिवारी

@Garima1907

श्वेत मरुस्थल के बीच
कृष्णवर्ण बादल
हठी-सा💙

मायसेल्फ फ्राम भिलेज एरिया।
#Team @humanaidint

https://t.co/vDZyIbQGG6

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linkhttps://mandli.in/post/author/garima-tiwari calendar_today28-09-2017 08:42:22

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ये मज़दूर का हाथ है कात्या!!
लोहा पिघलाकर आकार बदल देता है।
💪

ये मज़दूर का हाथ है कात्या!! लोहा पिघलाकर आकार बदल देता है। #International_LabourDay💪
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मैं चाहती हूं तुम्हारे सारे आँसू सोख लेना। इसलिए नहीं कि तुम मर्द हो, तुम्हें रोना नहीं चाहिए बल्कि इसलिए तुम्हारी आँखों से बहे आँसू मेरा अंतस जलाते हैं।
ठीक वैसे जैसे गर्म तवे पर गिरती पानी की बूँदें।
आओ! समेट लूँ इस धरोहर को, मेरे लिए ये अनमोल हैं।
तुम्हारे आँसू ❣️

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मैं नहीं देखती अब
लाशों के ढेर
बिखरे लोग
बहते आँसू ....
डर,क्षोभ,दुख
कुछ नहीं होता है।

मुझे दिखती हैं
बची हुई ज़िंदगी
रूके हुए लोग
थमे हुए आँसू....
प्रेम,वात्सल्य,मोह
अब भी होता है।

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'कब लौटोगे?'
इन दो शब्दों में ढेरों शिकायतें,इतने सारे आँसू, बहुत सारी हँसी और आकाश भर प्यार छुपा होता है।
स्वीकृति मन तरंग को झंकृत कर देती है।प्रतीक्षा के मनके फिरने लगते हैं।
अस्वीकृति नीले आसमान पर स्याह बादल सी छा जाती है,जो देर सवेर बरस ही जाते हैं।
जल्दी लौटना..

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आज सोचा तो
आँसू भर आए
मुद्दतें हो गई
मुस्कुराए ......

आज सोचा तो आँसू भर आए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए ......
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पुरुष हर रूप में
रिश्तों को मजबूती से थामे
कितना दृढ़ होता है
पर जब संवेदना उसे
झिंझोड़ती है
भाव आंदोलित होते हैं
तब
उसकी आँखों से आँसू
ज्वालामुखी के लावे से
बिखरते हैं
हृदय की चीख
किसे ही सुनाई देती है।
पर सुनो तुम!
मैं हूँ और रहूँगी
हर आँसू को समेटने।
क्योंकि तुम
अमूल्य हो।

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▶️ Ghoomne Chalo(@xGhoomneChalo) 's Twitter Profile Photo

गरिमा तिवारी So far, whatever (8, ved+puran) I have read, I haven't read the story.

But I heard this from an old relative many years ago.

Adding to that, later he became the god of Music (which is known fact).

I am not sure if in Shivpuran or what book it will be found.

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मैं अपनी फोटोग्राफी कला और गायन कला की एकमात्र प्रशंसक हूँ।

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श्री गोली जी का अत्यंत दुर्लभ वीडियो।
देखें और प्रशंसा करें।

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एक बार जो ढल जाएँगे
शायद ही फिर खिल पाएँगे।

फूल, शब्द या प्रेम
पंख, स्वप्न या याद
जीवन से जब छूट गए तो
फिर न वापस आएँगे।
~अशोक वाजपेयी

एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर खिल पाएँगे। फूल, शब्द या प्रेम पंख, स्वप्न या याद जीवन से जब छूट गए तो फिर न वापस आएँगे। ~अशोक वाजपेयी
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अगर कभी देना तो दो पंख दे देना भगवान जी!
खुला आकाश जो आँखों में तो है,बाँहों में नहीं।
दे सको तो देना निर्बाध उड़ान कि बिना उत्तर दिए हम बढ़ जाएंँ।
अदृश्य साँखलें कहीं अधिक पांवों को ज़ख्मी करती हैं।

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ऐसा क्यों होता है कि तुमसे अच्छा कोई और लगता ही नहीं?
ऐसा क्यों होता है कि तुमसे बातें करते वक्त को पंख लग जाते?
ऐसा क्यों होता है कि तुम्हारा नाम लेते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है?
ऐसा क्यों होता है कि हर रंग तुमसे ही खिलकर आते हैं?
ऐसा क्यों होता है कि तुम ही हमेशा याद आते हो?

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छोटी चिड़िया को लगता था कि बड़ी चिड़िया के पंख तले ही सारी दुनिया है।वो उसी से सांँस लेती है।
एकदिन बड़ी चिड़िया वापस नही लौटी। छोटी चिड़िया को लगा कि वो अब सांँस कैसे लेगी? उसकी दुनिया भी खत्म है और अब वो भी।
विधाता ने उसे पालना शुरू किया,उसे अपने जीवित होने का आश्चर्य ही है।..

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मध्यम वर्ग के लिए खरीदारी एक परीक्षा से कम नहीं
अनुपात समानुपात में ही रह जाना है
जो जेब में रखे पैसे हैं वो ऐच्छिक सामान के अनुपात में कम ही लगते
ज्ञानीजन चादर और पाँव का उदाहरण देंगे लेकिन सपने अमोल हैं और जीवन एक
ईश्वर या तो पंख दे या आँखों से सपने छीन ले
या फिर जूझना सिखा दे।

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हम बचपन कोई बड़ी शैतानी करके आते तो माँ दो छड़ी लगाकर पूछतीं,'बता!तूने ऐसा क्यों किया?'
हम चुपचाप मुंडी नीचे कर लेते,क्या बताते।
अंत में दादी आतीं और कहतीं,'मनसरङगही (मनमर्जी) के कवनो कारण ना होला,मन में आइल बदमासी हो गइल।'

सच में हर बात का कारण नहीं होता।सब मर्ज़ी के मालिक हैं

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आसपड़ोस के टाबर टिंगर अंताक्षरी खेल रहे थे।
एक ने ह से गाया 'हम तुम दोनों जब मिल जाएंगे,एक नया इतिहास बनाएंगे'
दूसरा बालक तुरंत बोला,'गाँधी जी टू नेहरू जी..'

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उपेक्षित होने का दंश, व्यक्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा देता है।
आखिर क्यों??

उपेक्षित होने का दंश, व्यक्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा देता है। आखिर क्यों??
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