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sree radhe radhe radhe ! sree radhe radhe radhe !

@balmurligokul

when we surrender to Krishna, He imparts sufficient knowledge and understanding about Himself in a subtle manner.-in devotional service - sree radhe

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calendar_today10-07-2009 03:09:25

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sree radhe radhe radhe ! sree radhe radhe radhe !(@balmurligokul) 's Twitter Profile Photo

Remembrance of Lord Kṛṣṇa’s lotus feet destroys everything inauspicious and awards the greatest good fortune.

It purifies the heart and bestows devotion for the Supreme Soul,

Remembrance of Lord Kṛṣṇa’s lotus feet destroys everything inauspicious and awards the greatest good fortune. It purifies the heart and bestows devotion for the Supreme Soul,
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The senses are always indulgent in sense gratification, and busy taking enjoyment from other people. He who can take away our desire to enjoy is 'Hari'.

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उसके साथ मीठी मिश्री खाने का अर्थ है कि जीवन में प्रेम रूपी माखन तो हो पर वह प्रेम फीका यानि दिखावे से भरा न हो,

बल्कि उस प्रेम में *भावना और समर्पण* की मिठास भी हो.

 *ऐसा होने पर ही जीवन के वास्तविक आनंद और सुख पाया जा सकता है.....!*

उसके साथ मीठी मिश्री खाने का अर्थ है कि जीवन में प्रेम रूपी माखन तो हो पर वह प्रेम फीका यानि दिखावे से भरा न हो, बल्कि उस प्रेम में *भावना और समर्पण* की मिठास भी हो.  *ऐसा होने पर ही जीवन के वास्तविक आनंद और सुख पाया जा सकता है.....!*
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इस प्रकार से कृष्ण को प्रिय *''माखन मिश्री''* से तात्पर्य है'' ऐसा ह्रदय जो प्रेम रूपी मिठास संपूर्णतः पूरित हो.

मिश्री के माखन के साथ खाने की बात है तो इसका अर्थ यह है कि माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है.

लेकिन माखन स्वाद में फीका भी होता है.

इस प्रकार से कृष्ण को प्रिय *''माखन मिश्री''* से तात्पर्य है'' ऐसा ह्रदय जो प्रेम रूपी मिठास संपूर्णतः पूरित हो. मिश्री के माखन के साथ खाने की बात है तो इसका अर्थ यह है कि माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है. लेकिन माखन स्वाद में फीका भी होता है.
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कान्हा को *'' माखन मिश्री''* बहुत ही प्रिय है.

मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है की जब इसे माखन में मिलाया जाता है तो माखन का कोई भी हिस्सा नहीं बचता,

उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समां जाती है.

कान्हा को *'' माखन मिश्री''* बहुत ही प्रिय है. मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है की जब इसे माखन में मिलाया जाता है तो माखन का कोई भी हिस्सा नहीं बचता, उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समां जाती है.
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. मिश्री का स्वाद मीठा होता है इस प्रकार मीठे स्वाद की तरह ही मिश्री भी वाणी और व्यवहार में मिठास घोलने का संदेश देती है.

इसी तरह *श्री कृष्ण जी* का नाम है धीरे धीरे कहो मानो मिश्री चूस रहे हो,तभी आनंद आता है.

और जब हम कृष्ण कहते है तब हमारा मुह भी थोडा टेढ़ा हो जाता है.

. मिश्री का स्वाद मीठा होता है इस प्रकार मीठे स्वाद की तरह ही मिश्री भी वाणी और व्यवहार में मिठास घोलने का संदेश देती है. इसी तरह *श्री कृष्ण जी* का नाम है धीरे धीरे कहो मानो मिश्री चूस रहे हो,तभी आनंद आता है. और जब हम कृष्ण कहते है तब हमारा मुह भी थोडा टेढ़ा हो जाता है.
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इसी तरह *श्री कृष्ण* नाम मिश्री जैसे मिश्री होती है, यदि मिश्री को हम मुह में रखकर एकदम से चबा जाए गे तो उतना आनंद नहीं आएगा

जितना आनंद मुह में रखकर धीरे धीरे चूसने में आएगा और जब हम मिश्री को मुह में रखकर चूसते है

इसी तरह *श्री कृष्ण* नाम मिश्री जैसे मिश्री होती है, यदि मिश्री को हम मुह में रखकर एकदम से चबा जाए गे तो उतना आनंद नहीं आएगा जितना आनंद मुह में रखकर धीरे धीरे चूसने में आएगा और जब हम मिश्री को मुह में रखकर चूसते है
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इसी प्रकार गोपाल नाम खीर है अर्थात यदि हम गोपाल गोपाल गोपाल जल्दी जल्दी कहे तभी आनंद आता है

मानो जैसे खीर का सरपट्टा भर रहे हो.

इसी प्रकार गोपाल नाम खीर है अर्थात यदि हम गोपाल गोपाल गोपाल जल्दी जल्दी कहे तभी आनंद आता है मानो जैसे खीर का सरपट्टा भर रहे हो.
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माखन को नवनीत भी कहते है ये नवनीत बहुत सुन्दर शब्द है.नवनीत का एक अर्थ है जो नित्य नया है. मन भी रोज नया चाहिए.

बासी मक्खन भगवान को अच्छा नहीं लगता. इसलिए शोक और भविष्य की चिंता से मुक्त हो जाओ. पर ऐसा कब होगा, जब वर्तमान में विश्वास कायम करेगे.

माखन को नवनीत भी कहते है ये नवनीत बहुत सुन्दर शब्द है.नवनीत का एक अर्थ है जो नित्य नया है. मन भी रोज नया चाहिए. बासी मक्खन भगवान को अच्छा नहीं लगता. इसलिए शोक और भविष्य की चिंता से मुक्त हो जाओ. पर ऐसा कब होगा, जब वर्तमान में विश्वास कायम करेगे.
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न *'संत ह्रदय नवनीत समाना'* ,
अर्थात संतो का ह्रदय नवनीत अर्थात माखन के जैसा कोमल होता है इसलिए भगवान संतो के ह्रदय में वास करते है.

और वे उनके ह्रदय को ही चुराते है.

अगर हमारा मन नवनीत जैसा है, तो भगवान तो माखन चोर हैं ही. वह हमारा मन चुरा ले जायेगे.

न *'संत ह्रदय नवनीत समाना'* , अर्थात संतो का ह्रदय नवनीत अर्थात माखन के जैसा कोमल होता है इसलिए भगवान संतो के ह्रदय में वास करते है. और वे उनके ह्रदय को ही चुराते है. अगर हमारा मन नवनीत जैसा है, तो भगवान तो माखन चोर हैं ही. वह हमारा मन चुरा ले जायेगे.
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मन ही माखन है.

भगवान को मन रूपी माखन का भोग लगाना है. क्योकि भोग तो भगवान लगाते है

भक्त तो प्रसाद ग्रहण करता है,

इसलिए हम भोक्ता न बने,

बस मन माखन जैसा कोमल हो, कठोर न हो.
कहते हैं

मन ही माखन है. भगवान को मन रूपी माखन का भोग लगाना है. क्योकि भोग तो भगवान लगाते है भक्त तो प्रसाद ग्रहण करता है, इसलिए हम भोक्ता न बने, बस मन माखन जैसा कोमल हो, कठोर न हो. कहते हैं
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So here it is said, Lord Kṛṣṇa says, : 'If you dovetail your activities in Kṛṣṇa love, then you become liberated from all reactions, either good or bad.' Transcendental. Because in Kṛṣṇa consciousness you are not achieving any future reactionary resultant...

So here it is said, Lord Kṛṣṇa says, : 'If you dovetail your activities in Kṛṣṇa love, then you become liberated from all reactions, either good or bad.' Transcendental. Because in Kṛṣṇa consciousness you are not achieving any future reactionary resultant...
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भगवान शिव कहते है _हे पुत्र ! तीनशत कल्प सतत गङ्गादि निखिल तीर्थ स्नान करने से जो फल लाभ होता है। 'नारायण' शब्द का सकृत् उच्चारण के द्वारा उक्त फल का अधिकारी मानव होता है*

*_स्कन्द पुराण*

भगवान शिव कहते है _हे पुत्र ! तीनशत कल्प सतत गङ्गादि निखिल तीर्थ स्नान करने से जो फल लाभ होता है। 'नारायण' शब्द का सकृत् उच्चारण के द्वारा उक्त फल का अधिकारी मानव होता है* *_स्कन्द पुराण*
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सभी संबंधों से मुक्त होकर ध्यान करना चाहिए। उनके जन्म से ही मानव आठ भ्रूणों से बंधा है: घृणा, शर्म, परिवार की स्थिति, अच्छा आचरण, भय, प्रसिद्धि, जाति का अभिमान और अहंकार।

ईश्वर को एकाग्र मन के साथ बुलाना चाहिए, सभी बंधनों को दूर करके।''

सभी संबंधों से मुक्त होकर ध्यान करना चाहिए। उनके जन्म से ही मानव आठ भ्रूणों से बंधा है: घृणा, शर्म, परिवार की स्थिति, अच्छा आचरण, भय, प्रसिद्धि, जाति का अभिमान और अहंकार। ईश्वर को एकाग्र मन के साथ बुलाना चाहिए, सभी बंधनों को दूर करके।''
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