कोई वृंदावन जाने से ही भगवान को नहीं पा लेता है अथवा घर छोड़कर साधु बनने से ही भगवान को नहीं पा लेता है, लेकिन संसार के भोगों की इच्छा छोड़कर, कर्त्तव्य कर्म करे और यदि वो वासना छोड़ देता है और भीतर अपनी कलना को, फुरने को, वासना को, हरि के रस में तल्लीन करने से वो परमात्मा पद को